Guru Nanak Jayanti 2022: कौन थे सिखों के 10 गुरु, मुगलों के खिलाफ लड़ी थी धर्म पंथों ने लड़ाई

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Nov 02, 2022, 03:38 PM IST

कौन थे सिखों के 10 गुरु, इन गुरुओं ने मुगलों के खिलाफ ऐसे लड़ी लड़ाई

All Ten Sikh Gurus: गुरु नानक देव के बाद सिख धर्म के 9 गुरु हुए, यहां जानिए कौन थे सिखों के 10 और उनसे जुड़ी कुछ खास बातें..

डीएनए हिंदी: (Know About All Ten Sikh Gurus)सिख धर्म के पहले गुरु नानक देव जी हुए जिनके जन्म सके बाद से ही सिख धर्म की स्थापना हुई. सिख धर्म की नींव हिंदू धर्म की संत परंपरा से निकाल कर रखी गई. इस धर्म की स्थापना का मुख्य उद्देश्य गुरुमत था जिसका अर्थ है अपने गुरु के आदर्शों पर चलना व उसका पालन करना. गुरु नानक देव जी सिख धर्म के पहले गुरु हुए जिनके बाद 9 अन्य गुरु (10 Sikh Guru Name In Hindi) हुए जिन्होंने सिख धर्म के उपदेशों व शिक्षाओं को आगे बढ़ाने का काम किया.

अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह जी के बाद सिख धर्म के 300 वर्षों के इतिहास व इसके उपदेशों को एक पुस्तक में समेटा गया जिसका नाम गुरु ग्रंथ साहिब या आदि ग्रंथ पड़ा. इस पुस्तक को सिख धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक मानी जाती है. चलिए जानते हैं सिख धर्म के सभी 10 गुरुओं के बारे में... 

1. गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev)

सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में ‘तलवंडी’ नामक स्थान पर हुआ था. नानक जी के जन्म के बाद इस स्थान का नाम ननकाना साहिब पड़ा.नानक देव जी ने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था. गुरु नानक की पहली ‘उदासी’ यानी विचरण यात्रा 1507 ई . से 1515 ई . तक रही. इस यात्रा में नानक देव जी ने हरिद्वार , अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया.

2. गुरु अंगद देव जी (Guru Angad Dev)

 गुरु नानक देव जी ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. जो सिखों के दूसरे गुरु बने. अंगद देव जी का जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था. अंगद देव जी को ‘लहिणा जी’ के नाम से भी जाना जाता है. अंगद देव जी पंजाबी लिपि ‘गुरुमुखी’ के जन्मदाता माने जाते हैं . लगभग सात साल तक अंगद देव जी  गुरु नानक देव के साथ रहे और फिर सिख पंथ की गद्दी संभाली. गुरु अंगद देव जी ने जात -पात के भेद से हटकर लंगर प्रथा चलाई और पंजाबी भाषा का प्रचार शुरू किया.

3. गुरु अमर दास जी (Guru Amar Das Ji) 

गुरु अमर दास जी सिख धर्म के तीसरे गुरु हुए.  अमर दास जी ने जाति प्रथा, ऊंच -नीच, कन्या-हत्या, सती प्रथा जैसी कुरीतियों को समाप्त करने में अहम योगदान दिया उनका जन्म 23 मई, 1479 को अमृतसर के एक गांव में हुआ था. अमर दास जी ने 61 साल की उम्र में गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु बनाया और लगातार 11 वर्षों तक उनकी सेवा की. सेवा और समर्पण को देखते हुए गुरु अंगद देव जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंप दी. जिसके बाद गुरु अमर दास का 1 सितंबर, 1574 में निधन हो गया. गुरु अमर दास जी ने अपने जीवनकाल में सिख धर्म को हिंदू धर्म की कुरीतियों से मुक्‍त किया. इसके अलावा अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा दिया, विधवाओं के पुनर्विवाह की अनुमति दी और सती प्रथा का घोर विरोध किया.

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4. गुरु रामदास जी (Guru Ram Das Ji)

अमरदास जी के मृत्यु के बाद रामदास जी ने 1574 ई. में गुरु पद प्राप्त किया था. इस पद पर ये 1581 ई.  रामदास जी सिखों के तीसरे गुरु अमर दास जी के दामाद थे. रामदास जी का जन्म लाहौर में हुआ था.  बाल्यावस्था में ही इनकी माता का देहांत हो गया था और लगभग सात वर्ष की आयु में उनके पिता का भी निधन हो गया जिसके बाद वह अपनी नानी के साथ रहने लगे थे. गुरु रामदास जी की सहनशीलता, नम्रता व आज्ञाकारिता के भाव देखकर गुरु अमर दास जी ने अपनी छोटी बेटी की शादी इनसे कर दी. 

गुरु रामदास जी ने 1577 ई . में ‘अमृत सरोवर’ नामक एक नगर की स्थापना की जो आगे चलकर अमृतसर के नाम से प्रसिद्ध हुआ. रामदास जी बड़े साधु स्वभाव के थे इसी वजह से सम्राट अकबर भी उनका सम्मान करता थे कहा जाता है गुरु रामदास के कहने पर अकबर ने एक साल तक पंजाब से लगान नहीं लिया था

5. गुरु अर्जुन देव जी (Guru Arjan Dev Ji)

गुरु अर्जुन देव जी का जन्म 25 अप्रैल, 1563 में हुआ था. वह सिख धर्म के चौथे गुरु रामदास जी के पुत्र थे. ये 1581  सिख गुरुओं ने अपना बलिदान देकर मानवता की रक्षा करने की जो परंपरा स्थापित की थी उनमें सिखों के पांचवें गुरु अर्जुन देव का बलिदान को बेहद महान माना जाता है. अर्जुन देव जी ने ‘अमृत सरोवर’ का निर्माण कराकर उसमें ‘हरमंदिर साहब’ यानी स्वर्ण मंदिर का निर्माण कराया. कहा जाता है इसकी नींव सूफी संत मियां मीर के हाथों से रखवाई गई थी.

6. गुरु हरगोविंद सिंह जी (Guru Har Gobind Sahib Ji)

गुर हरगोविंद सिखों के पांचवें गुरु अर्जन देव के पुत्र थे. जिन्होंने सिखों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रेरित किया और सिख पंथ को योद्धा चरित्र प्रदान किया. कहा जाता है वे स्वयं एक क्रांतिकारी योद्धा थे. इनसे पहले सिख पंथ निष्क्रिय था. सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जुन देव को फांसी दिए जाने के बाद उन्होंने गद्दी संभाली. जिसके बाद उन्होंने एक छोटी -सी सेना इकट्ठी की. इस वजह से नाराज होकर जहांगीर ने उनको 12 साल तक कैद में रखा. कहा जाता है रिहा होने के बाद उन्होंने शाहजहां के खिलाफ़ बगावत कर दी और 1628 ई. में अमृतसर के निकट संग्राम में शाही फौज को हरा दिया. जिसके बाद 1644 ई . में कीरतपुर, पंजाब में उनकी मृत्यु हो गई.

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7. गुरु हर राय जी (Guru Har Rai Ji)

गुरु हरराय का जन्म 16 जनवरी, 1630 ई . में पंजाब में हुआ था. गुरु हरराय जी सिख धर्म के छठे गुरु के पुत्र बाबा गुरदिता जी के छोटे बेटे थे. कहा जाता है गुरु हरराय ने मुगल शासक औरंगजेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद की थी. गुरु हरराय जी की मृत्यु सन् 1661 ई. में हुई 

8. गुरु हरकिशन साहिब जी (Guru Har Krishan Ji)

गुरु हरकिशन साहिब का जन्म 17 जुलाई, 1656 को किरतपुर साहेब में हुआ था. इन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही गद्दी प्राप्त हुई थी. जिस वजह से मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसका विरोध किया. जिसके बाद इस मामले का फैसला करने के लिए औरंगजेब ने गुरु हरकिशन को दिल्ली बुलाया. जब वह दिल्ली पहुंचे, तो वहां हैजे की महामारी फैली हुई थी. जिसके बाद उन्होंने वहां लोगों का उपचार शुरू कर दिया इस दौरान उन्हें चेचक निकल आया. ऐसे में  09 अप्रैल 1664 को मरते समय उनके मुंह से ‘बाबा बकाले’ शब्द निकला, जिसका अर्थ था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव से कोई बने. साथ ही गुरु देव ने सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यु पर नहीं रोएगा


9. गुरु तेग बहादुर सिंह जी (Guru Tegh Bahadur Ji)

गुरु तेग बहादुर सिंह जी का जन्म 18 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था. वह सिख धर्म के छठें गुरु हरगोविंद जी के पुत्र थे. गुरु तेग बहादर सिंह जी ने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. जब मुगल शासक जबरन लोगों का धर्म परिवर्तन करवा रहे थे तब इससे परेशान होकर कश्मीरी पंडित गुरु तेग बहादुर के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार उनपर ‍इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार किया जा रहा है. तब गुरु तेग बहादुर जी ने पंडितों से कहा कि आप जाकर औरंगजेब से कह ‍दें कि यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म स्वीकार कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे. औरंगजेब ने यह स्वीकार कर लिया. जिसके बाद औरंगजेब ने उन्हें तरह-तरह के लालच दिए, उनपर ज़ुल्म किए गए, उन्हें कैद कर लिया गया, दो शिष्यों को मारकर गुरु तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गई, पर वे नहीं माने. जिसके बाद उसने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया तब गुरु जी ने 24 नवंवर, 1675 को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया. 

10. गुरु गोविंद सिंह जी (Guru Gobind Singh Ji)

गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु हुए उनका जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई. को पटना में हुआ था. गुरु गोविंद जी नौवें गुरु तेग बहादुर जी के पुत्र थे. गुरु गोविंद सिंह के जन्म के समय देश पर मुगलों का शासन था. 

गुरु गोविंद सिंह ने धर्म, संस्कृति व राष्ट्र की आन-बान और शान के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था. गुरु गोविंद सिंह के बड़े पुत्र बाबा अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह ने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थी. इसके अलावा छोटे बेटों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था. जिसके बाद में गुरु गोविंद सिंह जी ने गुरु प्रथा समाप्त कर गुरु ग्रंथ साहिब को ही एकमात्र गुरु मान लिया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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