हरियाली तीज पर बहुएं सांस को देती हैं बायना, जानें इसका महत्व और बायने में दी जानें वाली चीजें

Written By Aman Maheshwari | Updated: Aug 15, 2023, 07:14 AM IST

Hariyali Teej 2023

Hariyali Teej 2023: हरियाली तीज पर मां पार्वती और शिव जी की पूजा के साथ ही बायना निकालने का भी विधान होता है. सुहागिन महिलाएं बायना अपनी सांस और ननद को देती हैं.

डीएनए हिंदीः सावन महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को हरियाली तीज (Hariyali Teej 2023) का पर्व मनाया जाता है. पंचांग के अनुसार, यह तिथि 19 अगस्त 2023 के दिन है. ऐसे में इस दिन हरियाली तीज (Hariyali Teej 2023) का व्रत रखा जाएगा. हरियाली तीज का व्रत मां पार्वती और भगवान शिव जी की पूजा के लिए बहुत ही खास होता है. इस व्रत (Hariyali Teej 2023) को सुहागिन महिलाएं रखती है. सुहागिन महिलाओं के इस व्रत को करने से उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और उनकी आयु बढ़ती है. हरियाली तीज पर पूजा-अर्चना (Hariyali Teej 2023 Puja) के कई सारे नियम होते हैं.

बता दें कि, इस दिन मां पार्वती और शिव जी की पूजा के साथ ही बायना निकालने का भी विधान होता है. परंपरा के अनुसार, सुहागिन महिलाएं बायना (Hariyali Teej Bayna) अपनी सांस और ननद को देती हैं. बायने का अर्थ समान पूर्वक दान के लिए भेट की गई सामग्री से होता है. चलिए आज आपको बताते हैं कि सांस को बायना (Hariyali Teej Bayna) किस तरह देना चाहिए और बायना देने का क्या महत्व होता है.

 

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हरियाली तीज पर बायना देना का महत्व (Hariyali Teej 2023 Bayna Significance)
पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिन महिलाएं यह व्रत करती हैं. इस दिन कुंवारी कन्याएं भी व्रत करती है इससे उन्हें अच्छे सुहाग की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि हरियाली तीज के दिन मां पार्वती ने भी यह व्रत किया था जिससे उन्हें पत्नी के रूप में शिव जी ने स्वीकार किया था. इस दिन पूजा-अर्चना के साथ ही बायना निकालने का भी महत्व होता है. सांस-बहु में प्यार बना रहे इसके लिए बायना का विशेष योगदान होता है. वैसे बायना देना का रिवाज यह होता है कि बायना पुजारी को देते हैं. हालांकि हरियाली तीज पर यह सास को देते हैं.

ऐसे दें सास को बायना
हरियाली तीज का व्रत करने के बाद अपनी सास को बायना देने का रिवाज होता है. बायने में सोलह श्रृंगार का सामान, साड़ी, फल, मिठाई देना होता है. बायना देने के लिए एक कटोरी में बाजरी और मोंठ रख दें. इसके साथ ही रोली और अक्षत रखकर पल्लू से ढकने के बाद इसके ऊपर से चार बार हाथ फेरें. बाद में खुद को तिलक लगाएं और फिर अपनी सांस को तिलक लगाने के बाद बायना दें और सांस के पैर छूकर आशीर्वाद लें.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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