Holi 2023: इस बार दो दिन पड़ रहा होली का त्योहार, जानें कब है सही तारीख और तिथि

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Mar 05, 2023, 01:00 PM IST

होली की तारीख को लेकर इस साल असमंजस की स्थिति बनी हुई है. इसकी वजह फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि का दो दिन तक होना है. 

डीएनए हिंदी: होली खेलने से लेकर इस दिन पूजा पाठ करने वाले लोग त्योहार की तारीख और तिथियों को देखने लगे हैं, लेकिन इस बार होली के दिन को लेकर उलझन की स्थिति बनी हुई है. इसकी वजह इस साल यानी 2023 में होली एक दिन नहीं ​बल्कि दो दिन मनाई जाएगी. इसकी वजह इस बार तिथियों में बड़ा फेरबदल दिखाई देना है. हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन किया जाता है. इसके अगले दिर चैत्र मास के कृष्ण प्रतिपदा में धुलंडी यानी रंग वाली होली मनाई जाती है, लेकिन इस बार पूर्णिमा तिथि में बड़ा बदलाव दिख रहा है. यह तिथि दो दिनों तक दिख रही है. 

किस तारीख को मनाई जाएगी होली

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 6 मार्च 2023 की शाम 04:17 बजे से शुरू होकर 7 मार्च 2023 की शाम 06 बजकर 09 मिनट तक रहेगी. वहीं, होलिका दहन 7 मार्च 2023  को किया जाएगा. इसके अगले दिन यानी 8 मार्च 2023 को रंग वाली होली खेली जाएगी. बात की जाए, भद्रा काल आरंभ की तो यह आरंभ 6 मार्च 2023 को शाम 4 बजकर 48 मिनट से लेकर 7 मार्च 2023 की सुबह 5:14 मिनट पर भद्रा का समापन होगा. ऐसे में होली का त्योहार दो दिनों तक मनाया जाएगा. 

होलाष्टक 2023

हिन्दू पंचांग के अनुसार, होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं, इसलिए इस वर्ष 28 फरवरी से होलाष्टक शुरू हो रहे हैं, जो कि 7 मार्च तक है. 7 मार्च 2023 को होलिका दहन किया जाएगा और रंग वाली होली 8 मार्च को खेली जाएगी.

होली त्योहार का महत्व

होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला हंसी-खुशी का पर्व है. भारतीय त्योहारों में होली का बड़ा ही महत्व है. होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इस त्योहार को सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक भी कहते हैं. इस दिन लोग आपसी मतभेदों को भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाकर गले लगते हैं. यह त्योहार लोगों के बीच एकता और प्यार लाता है. इस दिन विशेष रूप से खान-पान, रंग महोत्सव, नृत्य गायन किया जाता है.

होली की पौराणिक कथा

होली की कथा की सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कहानियों में से एक हिरण्यकश्यप नाम का एक दुष्ट राजा शामिल है. हिरण्यकश्यप खुद को भगवान से ऊपर मानता था और जो भी किसी देवी-देवता की पूजा करता था, वह उनको दण्ड देता था. राजा हिरण्यकश्यप का बेटा प्रह्लाद जो भगवान विष्णु का परम भक्त था. बेटे की भक्ति से राजा को ईर्ष्या होने लगी और उसने बेटे प्रह्लाद को मारने का निर्णय लिया. इसके लिए हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी. वहीं होलिका को ब्रह्माजी के वरदान से एक चादर प्राप्त था, जिसे ओढ़ने के बाद वह आग में जल नहीं सकती थीं. इसका लाभ उठाकर होलिका अग्नि में प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ जाती है. तभी भगवान विष्णु अपना चमत्कार दिखाते हैं और चादर उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ जाता है. इस तरह प्रह्लाद की जान बच जाती है और होलिका जल जाती है.  तब से हर साल होलिका दहन कर अधर्म पर धर्म की जीत का जश्न मनाया जाता है.

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