जो व्यक्ति बुरे कर्मों अर्थात गलत तरीके से अर्जित धन से धन कमाता है, वह बहुत समृद्ध होता है, जिससे व्यक्ति को बहुत प्रतिष्ठा मिलती है. वह अपने विरोधियों पर विजय प्राप्त करता है, परंतु अंत में वह सारा धन नष्ट हो जाता है, क्योंकि ऐसा धन अधिक समय तक टिकता नहीं है.
चाणक्य, महर्षि वेदव्यास, महर्षि मनु जैसे महर्षियों ने अपने-अपने धर्मग्रंथों में व्यक्ति को उचित तरीके से धन कमाने का निर्देश दिया है, निष्पक्षता से कमाया गया धन व्यक्ति और उसके परिवार के लिए अच्छा होता है. लेकिन बुरा काम, गलत तरीके से कमाया गया लाभ कभी अच्छा नहीं होता. आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसा धन केवल परेशानियां लेकर ही आता है.
मनुस्मृति अध्याय 4 श्लोक 174 में महर्षि मनु गलत तरीके से कमाए गए धन के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि गलत तरीके से कमाए गए धन के नष्ट होने की एक समय सीमा होती है.
आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति के पंद्रहवें अध्याय के छठे श्लोक में अन्यायपूर्ण धन के बारे में भी जानकारी दी है. वे कहते हैं कि गलत तरीके से कमाया गया लाभ अधिकतम दस वर्षों तक रहता है और ग्यारहवें वर्ष में ब्याज सहित नष्ट हो जाता है. यह तुम्हें दुखी कर देगा.
कैसी धन-दौलत कभी नहीं होती नष्ट?
धर्मग्रंथों, वेदों, पुराणों में वर्णित रहस्य आम आदमी के लिए अधिकतर अज्ञात हैं. आम लोगों की भलाई के लिए धर्मशास्त्र और नीतिशास्त्र की रचना की गई, जिसमें बताया गया कि धन कैसे कमाना चाहिए.
यदि आप जो काम करते हैं उसमें आपको खुशी मिलती है, अगर आपको उसे करने से कोई डर नहीं है, कड़ी मेहनत से अर्जित धन जो आपके विवेक के खिलाफ नहीं है, आपको कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है और जिसे कोई छीन नहीं सकता है, वह हमेशा आपके पास रहेगा.
भगवान कृष्ण भी गीता में कहते हैं कि धन तभी अच्छा है जब यह किसी के परिवार और समाज में खुशी लाता है. अर्थात् सात्विक धन ही सात्विक प्रवृत्ति और शुभ गुणों का निर्माण कर सकता है. असात्विक (गलत तरीके से अर्जित) धन शरीर में रोग, मन में परेशानी और मानसिक परेशानी का कारण बनता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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