Rishi Panchami: ऋषि पंचमी पर विधिवत पूजा कैसे करे? क्या आप जानते हैं मंत्र और पूजा का महत्व?

ऋतु सिंह | Updated:Sep 08, 2024, 07:17 AM IST

ऋषि पंचमी की विधिवत पूजा

ऋषि पंचमी आज यानी 8 सितंबर को मनाई जा रही है. यह हमारे देश में हुए अनेक महान संतों को गौरवान्वित करने का दिन है. ऋषि पंचमी की विधिपूर्वक पूजा कैसे करें, किस मंत्र का जाप करें, इसके लिए यह लेख पढ़ें.

Rishi Panchami Puja Vidhi: भाद्रपद शुद्ध पंचमी यानि ऋषि पंचमी का स्मरण ऋषि पंचमी के दिन किया जाता है. साथ ही साधु-संतों के लिए व्रत भी रखा जाता है. अगर आप ऋषि पंचमी का व्रत कर रहे हैं और पूजा अनुष्ठान करना चाहते हैं तो यह लेख पढ़ें. पत्री पूजा के साथ सप्तर्षि पूजा की विस्तृत जानकारी दी गई है.

ऋषि पंचमी पूजा विधि

ऋषि पंचमी पूजा संकल्प लेने के बाद ही शुरू करनी चाहिए. सबसे पहले आचमन की क्रिया करनी चाहिए. फिर बाएं हाथ से दाएं हाथ से पहले तीन बार एक करछुल पानी लें और ऊं केशवाय नम:, ऊं नारायणाय नम: कहें. ॐ माधवाय नमः. इसलिए हर समय हाथ पर लिया हुआ पानी पियें.
 
चौथी बार जल हाथ पर लेकर ॐ गोविंदाय नमः का जाप करें. अत: इसे सामने ही छोड़ देना चाहिए. हाथ सुखाकर भगवान को प्रणाम करें.
 
इस आचमन अनुष्ठान के बाद संकल्प के संकल्प के लिए दाहिने हाथ में एक और लोटा जल लें और निम्नलिखित संकल्प बोलें-

"इस शुभ दिन पर, रजस्वला अवस्था में, जाने-अनजाने, मेरे द्वारा किए गए संपर्क के कारण होने वाली बुराइयों से बचने के लिए, इस शुभ दिन पर, मैं कश्यप और अरुंधति सहित सात ऋषियों की पूजा करूंगा, ताकि मैं रजस्वला अवस्था में रह सकूं." पुराणों में वर्णित फल.
 
सप्तऋषि को नमस्कार है

अत: हाथ में जो जल है उसे अपने सामने छोड़ दें. हाथ पोंछकर चौरंग/पटवारी में सप्त ऋषियों के सात पान के पत्तों को सप्त ऋषि मानकर प्रणाम करना चाहिए. आठवीं सुपारी को नमस्कार सती अरुंधति के लिए है.
 
जुड़े हुए हाथों से, घुमावदार और नुकीले विशाल सूर्यकोटिसमप्रभ. निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा.. श्री महागणपति को नमस्कार ऐसा कहकर गणपति या गणपति के रूप में रखी सुपारी को स्नान, सुगंध, पुष्प, अक्षत, दूर्वा देना चाहिए. इसके बाद धूप निरंजन करें और गुड़ और नारियल चढ़ाएं. हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि सभी पूजाएं बिना किसी परेशानी के पूरी हो जाएं. विदा को गणपति के सामने रखना चाहिए. फल को दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिए.

सप्तऋषि का ध्यान

इसके बाद कलश, घंटी और दीपक की पूजा करनी चाहिए. फिर एक कप पानी में थोड़ा सा गौमूत्र डालें और उस पानी को तुलसी के पत्तों के साथ पूजा स्थल के रूप में उपयोग करें. प्रत्येक वस्तु को पदार्थ तथा स्वयं पर छिड़क कर शुद्ध करना चाहिए. इसके बाद चौरंग पट पर आठों सुपारियों को नमस्कार करते हुए सप्तर्षि और अरुंधति का ध्यान करते हुए कहना चाहिए-
मूर्तब्रह्मण्यदेवस्यब्राह्मणस्तेजुत्तमम्. सूर्यकोटिकासामिश्रिबन्ध की चिन्ता.
 
सप्तर्षि का आवाहन करें

अब निम्नलिखित प्रत्येक नाम का उच्चारण करके उन ऋषियों को अर्पित करने वाली प्रत्येक सुपारी पर अक्षत प्रवाहित करना चाहिए-
  
ॐ श्री कश्यपाय नमः. मैं कश्यप को प्रणाम करता हूं.
ॐ श्री अनये नमः. मैं भोजन के लिए बुला रहा हूँ.
ॐ श्री भर्वदाजाय नमः. मैं भारवदाजा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
ॐ श्री विश्वामित्र नमः. मैं विस्वामिन को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.
ॐ श्री गौतम नमः. मैं गौतम को प्रणाम करता हूं |
ॐ श्री जामदग्न्य | मैं जमदग्नि अग्नि का आह्वान करता हूँ ||
ॐ श्री वसिष्ठ | मैं वसिष्ठ को प्रणाम करता हूँ.
हे सती अरुन्धती! मैं अरुंधति को बुलाता हूं.
 
यह अरुंधति सहित कश्यप के नेतृत्व वाले सात ऋषियों को दिया गया प्रसाद है. मैं आह्वान करता हूं. इसलिए सभी सुपारी पर अक्षत डालें. मग सप्तऋषि. पंचामृत स्नान कराएं. इसलिए सभी सुपारियों पर फूल चढ़ाकर पंचामृत छिड़कें. पंचामृत स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान कराती हूं. इसलिए सभी चुकंदर पर फूल सहित शुद्ध जल छिड़कें. ॐ सप्तऋषिभ्य नमः. मैं कपड़े और सूती कपड़ा पेश करता हूं. इसलिए पहली सात सुपारियों को सूती कपड़े पहनाना चाहिए.

 
उन सात ऋषियों को नमस्कार जो सुगंध अर्पित करते हैं और अखंड अनाज ले जाते हैं . मैं मरहम के लिए चंदन चढ़ाता हूं. इसलिए उन्हें सूंघना चाहिए.

ॐ सप्तऋषिभ्य नमः. मैं सभी आभूषणों पर अक्षत चढ़ाता हूं. इसलिए उन्हें अक्षत अर्पित करना चाहिए.

ॐ सप्तऋषिभ्य नमः. मैं तुम्हें धूप दीप, निरंजन दीप दिखाता हूं. वैसे तो सभी को उदबती निरंजन को अपनाना चाहिए.

सप्तर्षिभ्यो नमः. मुखवासरत के लिए पुघी फलों के टेंट की पेशकश की गई. अत: उनके सामने एक-एक विदा फल दक्षिणा में रखना चाहिए. हैलो कहें.

सती अरुंधति की पूजा
उसके बाद आठवीं सुपारी को सती अरुंधति के रूप में पूजन करना चाहिए. उनको प्रणाम. कंचुकि सौभाग्य अलंकारं मारपयामि. इसलिए उन्हें हल्दी-कुंकु लगाएं. उनकी चोली और सौभाग्य लेनी यानि चूड़ियाँ. मंगलसूत्र काजल आदि. की पेशकश की जानी चाहिए. उसे सुगंधित फूल रखने चाहिए. फिर अरुंधतिसहित कश्यपादि सप्तर्षिभ्यो नमः. नैवेद्य में पंचामृत और प्रसाद नैवेद्य समर्पयामि अर्पित करना चाहिए.

कश्यप और अरुंधति सहित सात ऋषियों को ॐ. मैं सादर प्रणाम करता हूं. तो आइए हम सब मौन होकर प्रार्थना करें.

हमारे ऋषि मुनि प्रकृति के सान्निध्य में रहते थे और उनके आसपास के विभिन्न वृक्षों से उनका अटूट रिश्ता था. उस पेड़ के प्रति उनका अगाध प्रेम.
ऐसा कहा जाता है कि पितृपूजा उन्हीं की याद में की जाती है.

यदि आप ऋषि पंचमी के दिन नीचे दिए गए पेड़ के पत्तों को इकट्ठा करके उन ऋषियों को पूजा-अर्चना करेंगे तो वे आपसे प्रसन्न होंगे. इससे उपासक को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

नाम पूजा

इस ऋषि पंचमी पूजा के एक भाग के रूप में, इन सभी ऋषियों की पूजा करने और उन्हें विभिन्न कंद और पकी हुई सब्जियाँ चढ़ाने का भी एक खंड है. तदनुसार निम्नलिखित नामों का उच्चारण करके उस सुपारी को नम्रतापूर्वक नमस्कार करना चाहिए.

ॐ श्री कश्यपाय नमः. ॐ श्री अन्नाय नमः. ॐ श्री भर्वदाजाय नमः.
ॐ श्री विश्वमिन्नय नमः. ॐ श्री गौतम नमः. ॐ श्रीजमदग्न्ये नमः .
ॐ श्री वशिष्ठाय नमः. और ओमे अरुंधति.
जिसके बाद मैं अरुंधति सहित कश्यप आदि सप्त ऋषियों को फल अर्पित करता हूं || इसलिए उन्हें तरह-तरह के फल अर्पित करें.

अर्घ्यदान पूजा
इस ऋषि पंचमी व्रत पूजा का समापन अर्घ्यदान के साथ करना चाहिए. इसके लिए हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और जल और दक्षिणा लें.

फिर मैं पूजा की पूर्णता के लिए अरुंधति सहित कश्यप आदि सात ऋषियों को अर्घ्य अर्पित करूंगा. यही संकल्प है. सुगंधित तेल, अक्षत, पुष्प, फल और स्वर्ण अर्पित करना चाहिए.

इस नाम का उच्चारण करने के बाद हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और जल और दक्षिणा छोड़ दें. फिर अनेन पूजनेन अरुंधति सह सप्तर्षय: प्रियतम. अत: पूजा की पूर्णता का उदक तम्हन में ही छोड़ देना चाहिए. गीले हाथों को आंखों पर लगाना चाहिए. नमस्कार और परिक्रमा को जोड़ा जाना चाहिए. सभी को नमस्कार ताकि अरुंधति सहित ऋषियों का आशीर्वाद हमें प्राप्त हो सके.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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