Punishment for Rape: न जेल, न फांसी...महाभारत और गरुड़ पुराण में बलात्कारियों के लिए है ये भयानक सजा, मरने के बाद नहीं मिलती मुक्ति

Written By ऋतु सिंह | Updated: Aug 26, 2024, 02:45 PM IST

पुराणों में बलात्कारियों के लिए किस सजा का है प्रावधान:( तस्वीर AI जेनरेटेड है)

क्या आपको पता है कि महाभारत या गरुण पुराण में रेपिस्ट को किस तरह की सजा का प्रावधान था.

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या के मामले को लेकर लोग गुस्से में हैं. इसी बीच महाराष्ट्र के बदलापुर से छोटी स्कूली लड़कियों के यौन शोषण का मामला सामने आया. गुस्साए लोग इस मामले के दोषियों को कायर बता रहे हैं और फांसी की सजा की मांग कर रहे हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि पुराणों में यह अपराध कितना बड़ा पाप माना गया है? और इसके लिए किस तरह की सजा का प्रावधान किया है.

किसी भी सभ्य समाज में बलात्कार और बलात्कार जैसे कृत्य को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता. संस्कृति और संस्कारों की भूमि भारत में बलात्कार, व्यभिचार और व्यभिचार को इतना जघन्य पाप माना जाता है कि इनका कोई प्रायश्चित नहीं है. कई पुराणों में कठोर दंड भुगतने के बावजूद भी इस पाप से मुक्ति न मिलने का उल्लेख है. गरुड़ पुराण, नारद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण में बलात्कार को हत्या और अन्य पापों से भी बदतर कृत्य बताया गया है और इन सभी में इसकी सजा काफी भयानक बताई गई है.

गरुड़ पुराण में बलात्कार की सजा

गरुड़ पुराण में बलात्कार को एक नश्वर पाप माना गया है. इन पापियों को न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक पीड़ा का भी सामना करना पड़ता है. घोर तपस्या से भी दुष्कर्म के पाप से बचने का कोई उपाय नहीं है.

गरुड़ पुराण में बलात्कारियों की सजा के लिए एक श्लोक दिया गया है. आप इसे पढ़ेंगे तो हिल जायेंगे. इसमें उल्लेख है कि पापी को न केवल पृथ्वी पर बल्कि नरक में भी दंडित किया जाता है. 

ताम्रयसि स्त्री संसक्तो यस्य पापवन्.
नरके पच्यते घोरे यावच्चन्द्रादिवकरौ.

'बलात्कारी के लिए सज़ा बहुत कड़ी है. बलात्कारी को किसी महिला की गर्म लोहे की मूर्ति से गले लगाना चाहिए. जब तक सूर्य और चंद्रमा मौजूद हैं, तब तक शरीर से निकलने वाली आत्मा को शांति मिलती है. इस श्लोक का उद्देश्य अपराधी को मृत्युदंड से भी कम सज़ा दिलाना है...

महाभारत में यौन संबंध के लिए सज़ा

महाभारत में भी, व्यभिचार (विवाहेतर संभोग या अनैतिक शारीरिक संबंध) को गंभीर पाप माना जाता है और कड़ी सजा दी जाती है. महाकाव्य बार-बार धार्मिक और सामाजिक नियमों के पालन के महत्व पर जोर देता है और कहता है कि बुरे व्यक्ति के लिए समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. महाभारत के शांति पर्व में व्यभिचार और अन्य पापों के लिए दंड का उल्लेख है. उनका कहना है कि जो व्यक्ति व्यभिचार करता है उसे सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं.

न चावमन्येत कदाचिदर्थं धर्मार्थं न हरेण मुदः.
धर्मेण यस्यैव सप्तनामिच्छद्वयभिचारिणं तं निहन्याच्च राज्यः॥ (महाभारत, शांति पर्व)

अर्थ: 'कभी भी धर्म, धन और काम का अपमान नहीं करना चाहिए.' जो मूर्ख धर्म के विरुद्ध कार्य करे तथा व्यभिचार करे उसे राजा द्वारा दण्डित करना चाहिए.

महाभारत में कहा गया है कि व्यभिचारियों को दंड देना राजा का कर्तव्य है, ताकि समाज में नैतिकता और धार्मिकता बनी रहे. ऐसे अपराधों के लिए न केवल सांसारिक दंड बल्कि आध्यात्मिक दंड और कठोर यातना का भी उल्लेख किया गया है. महाभारत में कहा गया है कि व्यभिचार सामाजिक और पारिवारिक ढांचे को इतना नुकसान पहुंचाता है कि वह राष्ट्र की सबसे छोटी इकाई, परिवार को नष्ट कर देता है. ऐसे अपराधी को समाज में कलंकित जीवन जीना पड़ता है.

शिव पुराण में बलात्कार और व्यभिचार की सजा

शिव पुराण भी व्यभिचार (विवाहेतर या अनैतिक संबंध) को सबसे गंभीर पापों में से एक मानता है और इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान करता है. व्यभिचार के लिए शिव पुराण में एक महत्वपूर्ण श्लोक इस प्रकार वर्णित है:

यो हि धर्मं परित्यज्य भजते व्यभिचारिणीम्.
स नरः पतितो लोके नरके च बिना किल्बिषम्.

अर्थ: 'जो व्यक्ति धर्म को त्यागकर व्यभिचारिणी स्त्री का संग करता है, वह इस लोक में अपमानित होता है और वह स्त्री भी नरक की भागी बनती है.' व्यभिचारी को पहली सजा अपमान ही मिलती है. दूसरी सजा है सामाजिक अपमान और बहिष्कार, तीसरी सजा है मौत और चौथी सजा है नरक की कठोर यातनाएं.

शिव पुराण, गरुड़ पुराण और कई अन्य ग्रंथों में व्यभिचारी को नर्क में मिलने वाली सजाओं और दंडों का उल्लेख है, जो बहुत भीषण है.

गर्म लोहे की छवि को गले लगाना: व्यभिचार के पापी को किसी पुरुष या महिला की गर्म लोहे की छवि को गले लगाना पड़ता है. ये बहुत दर्दनाक सज़ा है. पापी को इतना दर्द सहना पड़ता है कि उसे उस दंश का अहसास होता है जो उसने पीड़ित को दिया है.

गर्म तेल की कड़ाही में फेंकना : गरुड़ पुराण के अनुसार, व्यभिचारी को मरने के बाद नर्क में ले जाया जाता है और गर्म तेल की कड़ाही में फेंक दिया जाता है. वह लगातार इस तेल में जलता रहता है, जिससे उसकी आत्मा को बहुत पीड़ा होती है.

गर्म लोहे के बिस्तर पर लेटना: व्यभिचारी को नरक में गर्म लोहे के बिस्तर पर लेटने के लिए मजबूर किया जाता है. यह बिस्तर इतना गर्म होता है कि इंसान की रूह तक असहनीय दर्द होता है.

दंडकारण्य (कांटों के जंगल) से गुजरना: पापी को कांटों के जंगल से गुजरना पड़ता है, जहां कांटे उसके शरीर को छेदते हैं और उसे बहुत पीड़ा पहुंचाते हैं.

जहरीले जीवों को नर्क में छोड़ना: एक व्यभिचारी की आत्मा को कीड़े, सांप और अन्य जहरीले जीवों द्वारा पीछा करके नर्क में दंडित किया जाता है. यह दर्द बहुत कष्टकारी होता है.

गर्म धातु पिलाना : गरुड़ पुराण में कहा गया है कि व्यभिचार करने वाले व्यक्ति को नरक में गर्म धातु (गर्म पिघली हुई धातु) पिलाई जाती है, जिससे उसकी आत्मा को असहनीय जलन और पीड़ा होती है.

नारद पुराण में बलात्कारी को सजा

नारद पुराण के अनुसार बलात्कारी को यमराज के दरबार में पेश किया जाता है, जहां उसके पापों का हिसाब-किताब किया जाता है. इस अपराध के लिए उसे भयानक नरक में भेजा जाता है, जहां उसे असहनीय पीड़ा और यातनाएं दी जाती हैं.

नर्क में कठोर यातनाएं : अपराधी को घोर नर्क में भेजा जाता है, जहां उसे ऐसी यातनाओं का सामना करना पड़ता है जो उसकी आत्मा को लंबे समय तक पीड़ा देती हैं.

पुनर्जन्म में कठिन जीवन :  नारद पुराण में भी उल्लेख है कि बुरे कर्मों के पाप के कारण अगले जन्म में अत्यंत कठिन परिस्थिति में जीवन जीना पड़ता है. उनका जीवन दुःख और पीड़ा से भरा है.

सामाजिक अपमान: इस पाप के कारण व्यक्ति को समाज में अपमान और तिरस्कार सहना पड़ता है. समाज में उसे कभी भी अपने किये की माफ़ी नहीं मिलती और वह हमेशा समाज के गुस्से का शिकार होता है. नारद पुराण में यह भी कहा गया है कि बलात्कार जैसा जघन्य अपराध करने वाले व्यक्ति के लिए भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करना बेहद मुश्किल हो जाता है. प्रायश्चित स्वरूप उसे कठोर तपस्या करनी पड़ती है और सच्चे मन से पश्चाताप करना पड़ता है, लेकिन फिर भी उसका पाप इतना बड़ा होता है कि उसका दुष्प्रभाव उसे पुनर्जन्म तक भुगतना पड़ता है

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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