Jagadguru Rambhadracharya: 2 माह की उम्र में गंवाई आंखों की रौशनी, भविष्यवाणियां भी होती हैं सच, जानें कौन हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य

Written By नितिन शर्मा | Updated: Feb 18, 2024, 10:04 AM IST

रामभद्राचार्य जी महाराज नेत्रहीन होने के बाद भी 22 से अधिक भाषाओं के जानकारी और 100 से भी अधिक भाषाओं के जानकार हैं. पद्मविभूषण से सम्मानित जगद्गुरु ने रामजन्मभूमि फैसले में अहम भूमिका निभाई है.

हिंदू धर्म में बड़े साधु संत जगद्गुरु राभद्राचार्य जी (Jagadguru Rambhadracharya Maharaj) महाराज भी है. उन्हें 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जाएगा. इस पर पीएम से लेकर यूपी के सीएम योगी (Pm Modi And Cm Yogi) ने राभद्राचार्य जी महाराज बधाई दी है. अभी रामभद्राचार्य जी महाराज का स्वास्थ्य सही नहीं है. उनकी हाल ही में हार्ट सर्जरी के बाद दिल्ली के एम्स में ट्रांसफर किया गया है, जहां रामभद्राचार्य जी महाराज (Jagadguru Rambhadracharya Health Update) का इलाज चल रहा है. रामभद्राचार्य जी महाराज जन्म के दो महीने बाद से ही सूरदास हो गये थे. इसके बावजूद वह 22 भाषाओं के ज्ञाता और 100 धार्मिक ग्रंथ लिख चुके हैं. आइए जानते हैं दार्शनिक, लेखक, संगीतकार, गायक, नाटककार, बहुभाषाविद और 100 ग्रंथों के रचयिता पद्मविभूषण से सम्मानित जगद्गुरु श्री रामभद्राचार्य जी स्वामी महाराज की उपलब्धियां...

 


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मानव कल्याण के लिए समर्पित कर दिया जीवन

जन्म के दो महीने बाद ही रामभद्राचार्य जी महाराज (Jagadguru Rambhadracharya) नेत्रहीन हो गये थे. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 14 जनवरी 1950 सरयूपारीण ब्राह्मण परिवार में मकर संक्राति के दिन हुआ था. रामभद्राचार्य जी महाराज के माता पिता ने उनका नाम गिरधर मिश्रा रखा. दो माह की उम्र में ही रामभद्राचार्य जी को ट्रेकोमा संक्रमण हो गया था. इसके बाद से ही वह नेत्रहीन हो गये.नेत्रहीन होने के बाद भी उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त थी. यही वजह है कि मात्र 4 साल की उम्र में रामभद्राचार्य कविताएं करने लगे और 8 साल की उम्र में उन्होंने रामकथा और भागवत का जाप शुरू कर​ दिया था. 

ब्रेल लिपि के बिना कर दी बड़ी रचनाएं

रामभद्राचार्य जी महाराज नेत्रहीनों को पढ़ाई और सिखाई जानें वाली ब्रेल लिपि नहीं आती है. वह खुद देख भी नहीं सकते हैं. इसके बावजूद वह तमाम ग्रंथों की रचना कर चुके हैं. वह केवल सुनकर सीखते हैं और बोलकर रचनाओं को लिखवाते हैं. दो माह की उम्र से ही नेत्रहीन होने के बाद भी जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी को रामचरितमानस, गीता, वेद, उपनिषद और वेदांत तक सभी कुछ कंठस्थ है. उनकी तमाम भविष्यवाणी सच साबित हुई हैं.

22 भाषाओं का ज्ञान और 100 से ज्यादा लिखी किताबें

रामभद्राचार्य हिंदी, मैथिली और अवधी समेत 22 भाषाओं के जानकार हैं. वह अब तक 100 से अधिक धार्मिंक ग्रंथ और किताबें लिख चुके हैं. जन्म से धार्मिंक ग्रंथों को पढ़ने में बड़ी रुचि रखने वाले रामभद्राचार्य महाराज एक विद्वान्, शिक्षाविद्, बहुभाषाविद्, रचनाकार, प्रवचनकार, दार्शनिक और हिंदू धर्मगुरु हैं. वह रामानन्द संप्रदाय के मौजूदा चार जगद्गुरु में से एक हैं और इस पद पर 1988 से हैं.

 


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दुनिया का पहला नेत्रहीन विश्वविद्यालय किया स्थापित

रामभद्राचार्य जी महाराज जगद्गुरु होने के साथ ही चित्रकुट नेत्रहीन विश्वविद्यालय के संस्थापक है. उनके इस विश्वविद्यालय को राज्य सरकार ने अपने अधिन कर कर लिया. साथ ही रामभद्राचार्य जी महाराज इस विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति हैं. 

महाकाव्य की कर चुके हैं रचना

रामभद्राचार्य जी महाराज चार महाकाव्य की रचना कर चुके हैं. इनमें दो हिंदी और दो संस्कृत के महाकाव्य शामिल हैं. उन्हें भारत में तुलसीदास पर सबसे बेहतरीन विशेषज्ञों में गिना जाता है. 

पद्मविभूषण से लेकर अब तक मिली उपाधि

रामभद्राचार्य जी महाराज (Jagadguru Rambhadracharya Maharaj) को अब तक दर्जनों उपाधि मिल चुकी हैं. इनमें भारत सरकार पद्मविभूषण से लेकर जगदगुरु के धर्म चक्रवर्ती, महामहोपाध्याय, श्री चित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर, जगद्गुरु रामानंदाचार्य, महाकवि, प्रस्थानत्रयी भाष्यकार मिली है. साथ ही देवभूमि पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, बादरायण पुरस्कार और राजशेखर सम्मान से नवाजा जा चुका है. 

 


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राम जन्मभूमि मुकदमे में रहा अहम योगदान

राम जन्मभूमि मामले में भी जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने बड़ी भूमिका निभाई है. वह रामजन्मभूमि (Ram Janambhoomi ) मामले में अहम गवाह थे. जगद्गुरु ने कोर्ट में वेद-पुराणों के उदाहरणों के अलावा अयोध्या के विवादित स्थल में श्रीराम जन्मभूमि के साक्ष्य पेश किये थे. जगद्गुरु की गवाही ने कोर्ट के फैसले का रुख मोड़ दिया था. खुद को जजों ने इसे भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार माना था कि जो व्यक्ति देख नहीं सकता, कैसे वह वेदों और शास्त्रों से विशाल संसार से उदाहरण दे सकते हैं, इसे ईश्वरीय शक्ति ही माना जाता है.

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