Jagannath Mandir MahaPrasad : उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ पूरी मंदिर की देश में बड़ी मान्यता है. यहां हर दिन लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. इतना ही नहीं, जगन्नाथ पूरी मंदिर सभी मंदिरों में एक ऐसा स्थान है, जहां के प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है. इसकी वजह यहां के महाप्रसाद का बड़ा महत्व होने के साथ ही रहस्य छिपा है. आइए जानते हैं कि आखिर जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को ही महाप्रसाद क्यों कहा जाता है.
पौराणिक कथाओं में बताया जाता है कि एक बार महाप्रभु वल्लभाचार्य एकादशी व्रत पर जगन्नाथ मंदिर पहुंचे थे. यहां जगन्नाथ भगवान ने वल्लभाचार्य के निष्ठा की परीक्षा लेने का मन बनाया. उन्होंने वल्लभाचार्य को व्रत के दिन चावल समेत 56 तरह की चीजों से बना भोग प्रसाद के स्वरूप में दिया. वल्लभाचार्य ने वो प्रसाद ले तो लिया, लेकिन उसे दिन रात बीतने के बाद भी नहीं खाया. अगले दिन द्वादशी स्तवन समाप्त होने पर वल्लभाचार्य जी ने प्रसाद ग्रहण किया. बताया जाता है कि इसी के बाद यहां प्रसाद को महाप्रसाद का गौरव प्राप्त हुआ. वहीं कहा जाता है कि जगन्नाथ पूरी का प्रसाद चमत्कारी है. यहां जब भी प्रसाद तैयार होता है. तब जगन्नाथ भगवान रसोई में जरूर जाते हैं. इसलिए भी जगन्नाथ पूरी के प्रसाद को महाप्रसाद कहा गया है.
देश में सबसे बड़ी है जगन्नाथ पूरी की रसोई
जगन्नाथ मंदिर की रसोई देश के सभी मंदिरों से बड़ी रसोई है. इसमें करीब 500 रसोइए और 300 सहयोगी काम करते हैं. 50 हजार से भी ज्यादा लोगों के लिए हर दिन महाप्रसाद तैयार किया जाता है. जगन्नाथ मंदिर की रसोई में चावल समेत 56 तरह की सब्जी और भोग बनाया जाता है. यहां प्रसाद को आधुनिक युग के साथ गैस या फिर स्टील के बर्तनों में तैयार नहीं किया जाता. इसे सिर्फ मिट्टी के चूल्हे और मिट्टी के बर्तन यानी मटकों को बनाया जाता है.
अलग तरह से बनता है प्रसाद
जगन्नाथ मंदिर की रसोई में बनने वाला प्रसाद भोग अलग तरह से बनता है. यहां मिट्टी के चूल्हों पर एक के बाद एक 7 मिट्टी के बर्तन रखे जाते हैं. इनमें सबसे नीचे की जगह सबसे ऊपर वाले बर्तन में रखा खाना और सब्जी पकती है. इसे प्रभु का चमत्कार ही माना जाता है. वहीं इस रसोई में कभी भी खाना खत्म नहीं होता. प्रसाद के तैयार होते ही भगवान जगन्नाथ, उनके भाई और बहन को भोग लगाया जाता है. इसके बाद भक्तों में महाप्रसाद वितरीत किया जाता है.
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