डीएनए हिंदी : जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा की मान्यताएं बहुत है और इस त्यौहार को पूरे देश भर में मनाया जाता है. हर कहीं रथ यात्राएं निकलती हैं, हजारों की संख्या में लोग रथ के दर्शन करने के लिए जुटे होते हैं.पुरी एक पर्यटन स्थल के अलावा भगवान जगन्नाथ के लिए ज्यादा जाने जाता है, कहते हैं चार धाम की यात्रा तब तक अधूरी है जब तक जगन्नाथ पुरी के दर्शन नहीं किए.
चलिए आज हम आपको इस यात्रा की पीछे की रोचक कहानी, कुछ पौराणिक कथाएं बताते हैं.साथ ही आपको मंदिर के इतिहास से भी रू-ब-रू कराते हैं.(Jagannath Puri Rath Yatra 2022)
अमरनाथ यात्रा के पीछे की कहानी नहीं सुनी तो यात्रा रह जाएगी अधूरी
रोचक कथाएं (Mythological Stories behind Jagannath Puri Yatra and Mandir in Hindi)
- कुछ लोग का मानना है कि कृष्ण की बहन सुभद्रा अपने मायके आती है और अपने भाइयों से नगर भ्रमण करने की इच्छा व्यक्त करती है, तब कृष्ण बलराम, सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर घुमने जाते हैं, इसके बाद से ही रथ यात्रा का पर्व शुरू हुआ.
- इसके अलावा कहते हैं, गुंडीचा मंदिर में स्थित देवी कृष्ण की मासी है, जो तीनों को अपने घर आने का निमंत्रण देती है. श्रीकृष्ण, बलराम सुभद्रा के साथ अपनी मासी के घर 10 दिन के लिए रहने जाते हैं.
- श्रीकृष्ण के मामा कंस उन्हें मथुरा बुलाते हैं, इसके लिए कंस गोकुल में सारथि के साथ रथ भिजवाता है. कृष्ण अपने भाई बहन के साथ रथ में सवार होकर मथुरा जाते है, जिसके बाद से रथ यात्रा पर्व की शुरुवात हुई.
- कुछ लोग का मानना है कि इस दिन श्री कृष्ण कंस का वध करके बलराम के साथ अपनी प्रजा को दर्शन देने के लिए बलराम के साथ मथुरा में रथ यात्रा करते है.
- कृष्ण की रानियां माता रोहिणी से उनकी रासलीला सुनाने को कहती है.माता रोहिणी को लगता है कि कृष्ण की गोपीयों के साथ रासलीला के बारे सुभद्रा को नहीं सुनना चाहिए,इसलिए वो उसे कृष्ण,बलराम के साथ रथ यात्रा के लिए भेज देती है.तभी वहां नारदजी प्रकट होते है, तीनों को एक साथ देख वे प्रसन्नचित्त हो जाते है और प्रार्थना करते है कि इन तीनों के ऐसें ही दर्शन हर साल होते रहे.उनकी यह प्रार्थना सुन ली जाती है और रथ यात्रा के द्वारा इन तीनों के दर्शन सबको होते रहते है.
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जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा इतिहास ( Jagannath Puri Rath Yatra History in Hindi)
श्रीकृष्ण की मौत के बाद जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया जाता है,तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्याधिक दुखी होते हैं और कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद जाते हैं, उनके पीछे-पीछे सुभद्रा भी कूद जाती है.इसी समय भारत के पूर्व में स्थित पूरी के राजा इन्द्रद्विमुना को स्वप्न आता है कि भगवान् का शरीर समुद्र में तैर रहा है और उन्हें कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए. इसके साथ ही मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए.उन्हें स्वप्न में देवदूत बोलते है कि कृष्ण के साथ,बलराम,सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनाई जाए और श्रीकृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रखा जाये.
राजा का सपना सच हुआ,उन्हें कृष्ण की आस्तियां मिल गई, लेकिन अब वह सोच रहा था कि इस प्रतिमा का निर्माण कौन करेगा. माना जाता है, शिल्पकार भगवान् विश्वकर्मा एक बढई के रूप में प्रकट होते है, और मूर्ती का कार्य शुरू करते है. कार्य शुरू करने से पहले वह सभी से बोलते हैं कि उन्हें काम करते वक़्त परेशान ना किया जाए,नहीं तो वे बीच में ही काम छोड़ कर चले जायेगें
कुछ महीने हो जाने के बाद मूर्ती नहीं बन पाती हैं, तब उतावली के चलते राजा इन्द्रद्विमुना बढई के रूम का दरवाजा खोल देते हैं, ऐसा होते ही भगवान् विश्वकर्मा गायव हो जाते हैं. मूर्ती उस समय पूरी नहीं बन पाती है, लेकिन राजा ऐसे ही मूर्ती को स्थापित कर देते हैं, वो सबसे पहले मूर्ती के पीछे भगवान कृष्ण की अस्थियां रखते हैं और फिर मंदिर में विराजमान कर देते हैं
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