डीएनए हिंदी: गुरुकुल में दीक्षा लेने के पहले जनेऊ धारण करना सभी के लिए जरूरी होता था. जनेऊ को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है. जनेऊ धारण करने को ही यज्ञोपवित संस्कार कहते हैं. हिंदू धर्म में हर पुण्य कार्य और पूजन में पुरुषों को जनेऊ धारण करना जरूरी होता है. इस जनेऊ का महत्व पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं हैं.
जनेऊ धारण करने वाले को निभाने पड़ते हैं कई नियम
जनेऊ का धार्मिक महत्व आज जरूर जानते होंगे, लेकिन आज इस खबर में हम इसके वैज्ञानिक महत्व और सेहत के फायदे भी बताएंगें. जनेऊ धारण करने वाले जातक को कई नियमों का सख्ती से पालन करना होता है. साफ सफाई से लेकर खानपान और शौच तक के लिए नियम तय हैं. धारणाओं के अनुसार जनेऊ से कई स्वास्थ्य फायदे होते हैं हालांकि इनका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिलता है.
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क्या कहती हैं आम धारणाएं
पुरानी मान्यता है कि जनेऊ से हृदय रोग का खतरा भी कम होता है. जनेऊ धारण करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. लोगों का यह भी कहना जनेऊ को कान पर बांधने से कान के अंदर की नसें पर दबाव बनता है और इसका सीधा संबंध दिमाग की नसों से होता है. इससे याददाश्त भी तेज होती हैं. इसके अतिरिक्त यह भी माना जाता है कि -
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नोट: 6 महीने से ज्यादा एक जनेऊ नहीं पहनना चाहिए और यदि घर में किसी बच्चे का जन्म या किसी की मृत्यु हो जाए तो सूतक के बाद जनेऊ जरूर बदलना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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