डीएनए हिंदी: कैकई की दासी मंथरा ने ही राजा दशरथ से लिए उन दो वचन की याद दिलाई थी और इसी वचन को रखकर कैकेई ने दशरथ से श्रीराम को वनवास और भरत को राजा बनाने की मांग कर डाली थी. न चाहते हुए भी राजा दशरथ को ये वचन पूरे करने पड़े थे.
भगवान श्रीराम के वनवास जाने के पीछे की पटकथा कुछ ऐसे शुरू हुई थी. राजा दशरथ जब राम को राज-पाट सौंपने का मन बना रहे थे तब तक कैकेई को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा था लेकिन जब मंथरा को ये बात पता चली तो उसने कैकेई के कान भरने शुरू कर दिए.
मंथरा ने महारानी को समझाने का प्रयास किया कि राम का राज्याभिषेक होते ही कौशल्या पटरानी बन कर बैठ जाएंगी और राम भरत को जेल में डाल देंगे. आपको कौशल्या की नौकरानी बन कर रहना पड़ेगा.
कौशल्या ने इन सबकी पहले ही योजना बना ली है तभी उसने दशरथ से कह कर इस मौके पर भरत को ननिहाल भिजवा दिया है. राजतिलक की तैयारियां शुरू हुए पंद्रह दिन बीत गए फिर भी तुम्हें कोई खबर नहीं दी गई.
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कैकेयी बोलीं, मुझे तो इन स्थितियों में कुछ नहीं सूझ रहा
मंथरा ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए महारानी कैकेयी को तरह- तरह की कहानियां सुनाईं. मंथरा की बात का इतना प्रभाव पड़ा कि महारानी बोलीं, मुझे तेरी बातें सत्य समझ में आ रही हैं. मेरी दाहिनी आंख रोज फड़का करती है, मुझे रात में बहुत ही बुरे सपने आया करते हैं किंतु अपनी अज्ञानता कारण किसी से चर्चा नहीं करती थी. उन्होंने दासी को सखी बताते हुए पूछा कि अब मुझे क्या करना चाहिए क्योंकि मुझे तो कुछ सूझ ही नहीं रहा है. वह बोलीं कि मैंने अपने होश में तो कभी किसी का बुरा नहीं किया है फिर न जाने किस पाप के कारण यह दुख मिल रहा है. रानी ने दीन भावना से कहा कि वह तो अपने नैहर में जाकर रह लेंगी लेकिन अपनी सौत की गुलामी नहीं सहेंगी.
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मंथरा ने कैकेयी से कहा, तुम दुख न करो
मंथरा ने कैकेयी से कहा कि तुम क्यों दुख करती हो, तुम्हारा सुख और सुहाग तो दिन दूना और रात चौगुना बढ़ेगा. फल तो उसे ही मिलेगा जिसने तुम्हारी बुराई सोची है. उसने अपनी सोच बताते हुए कहा कि जब से यह समाचार उसे सुनाई पड़ा है तब से न तो दिन में भूख लगती है और न ही रात में नींद आती है, बस दिन रात भरत की चिंता सताती रहती है. ज्योतिषियों ने भी कुंडली देख कर यही कहा है कि भरत ही राजा होंगे.
राजा दशरथ से वर मांगने का यही समय है
मंथरा ने रानी कैकेयी को सुझाव देते हुए कहा कि यदि तुम राजी हो तो एक रास्ता है क्योंकि राजा तुम्हारे वश में हैं. कैकेयी ने मंथरा पर विश्वास व्यक्त करते हुए कहा कि तुम कहोगी तो कुएं में भी कूद सकती है, पुत्र और पति को भी छोड़ सकती हूं क्योंकि तुम ही तो सच्ची हितैषी हो. मंथरा ने कैकेयी को याद दिलाया कि एक बार महाराज ने उनसे दो वरदान मांगने को कहा था. वह मांगने का यही समय है. एक से भरत को अयोध्या का राज और दूसरे से राम को वनवास मांग लो. बस इस वरदान को मांगने के लिए तुम अभी से कोपभवन में चली जाओ और जब राजा मनाने आएं तो राम की सौगंध दिलाकर मांग लेना.
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