Mokshada Ekadashi 2022: आज है मोक्षदा एकादशी, व्रत नियम-पूजा विधि और कथा से लेकर पारण समय तक जानें सब-कुछ

Written By ऋतु सिंह | Updated: Dec 03, 2022, 08:03 AM IST

मोक्षदा एकादशी व्रत

Mokshada Ekadashi 2022: मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष को मोक्षदा एकादशी आज है. व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के साथ व्रत के नियम और कथा जान लें.

डीएनए हिंदीः  3 दिसंबर दिन शनिवार को मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. यह एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है. हर महीने में दो एकादशी होती है सबका अपना अलग-अलग महत्व और प्रभाव है. मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी  का विधिवत व्रत रखने और पूजन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं मोक्षदा एकादशी व्रत के बारे में.

मोक्षदा एकादशी पूजा मुहूर्त 2022 | Mokshada Ekadashi 2022 Puja Muhurat

मोक्षदा एकादशी तिथि आरंभ - 2 दिसम्बर 2022 को रात 5 बजकर 39 मिनट से शुरू

मोक्षदा एकादशी तिथि समाप्त - 3 दिसम्बर 2022 को रात 5 बजकर 34 मिनट तक

पारण का (व्रत खोलने का) समय - 4 दिसंबर 13:14 से 15:19 तक

वैष्णव मोक्षदा एकादशी- 4 दिसम्बर 2022, रविवार

वैष्णव एकादशी के लिए पारण का समय - 5 दिसंबर सुबह 06:59 से 09:04 तक

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मोक्षदा एकादशी पूजन विधि  | Mokshada Ekadashi Pujan Vidhi

मोक्षदा एकादशी पर स्नान के बाद व्रत और भगवान विष्णु की पूजा का संकल्प लें और फिर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर को पूजा स्थान पर स्थापित करें. पंचामृत से अभिषेक करें और फिर चंदन, रोली लगाएं. पीले फूल, वस्त्र, अक्षत्, धूप, दीप, पान, तुलसी पत्र आदि अर्पित करें. इस दिन प्रभु को खीर, केला, श्रीफल और केसर भात का भोग लगाएं. घी का दीपक जलाएं. इसके बाद विष्णु चालीसा, विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें. ​अब मोक्षदा एकादशी व्रत कथा का श्रवण करें. 
एकादशी कथा के समापन के बाद भगवान विष्णु की विधिपूर्वक आरती करें. उसके बाद अपनी मनोकामना व्यक्त कर दें. पूरे दिन फलाहार करते हुए भगवत भजन करें और रात्रि प्रहर में जागरण करें. अगले दिन प्रात: स्नान आदि करके भगवान विष्णु की पूजा करें और पारण करके व्रत को पूरा करें. पारण से पहले द्वादशी को किसी गरीब या फिर किसी ब्राह्मण को दान भी दें. इस प्रकार मोक्षदा एकादशी व्रत का पूजन पूरा होता है.

मोक्षदा एकादशी व्रत-नियम | Mokshada Ekadashi Vrat Niyam
एकादशी तिथि से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि के दिन से ही एकादशी व्रत के नियम लागू हो जाते हैं. चावल, लहसुन-प्याज, मांस-मछली, किसी का अपमान आदि करने से बचें. मोक्षदा एकादशी व्रत के दौरान पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें. व्यवहार और आचरण सही रखें. व्रत की अवधि में कम बोलें और किसी की चुगली करने से खुद को बचाएं. जुआ, शराब, हिंसा, क्रोध, झूठ अन्य बुरे कर्मो से दूर रहें. इस दिन बाल भी नहीं कटवाने चाहिए यदि भूलवश कोई गलती हो जाए तो उसी क्षण सूर्य भगवान के दर्शन कर श्रीहरि का पूजन करके क्षमा याचना करनी चाहिए.

मोक्षदा एकादशी की कथा 

कथा के अनुसार, पौराणिक काल की वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चंपक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे. वे अपनी प्रजा का पुत्र की भांति पालन करते थे. इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नीच योनि में पड़ा हुआ देखा. उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और सुबह से समय ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया. 

राजा बोले- ब्रह्माणों ! मैंने अपने पितरों को नरक में गिरा हुआ देखा है. वे बारंबार रोते हुए मुझसे कह रहे थे कि  'तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो' द्विजवरो ! इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं मिलता. क्या करुं, कहां जाऊं? मेरा हृदय रुंधा जा रहा है. द्विजोत्तमो ! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जाएं, बताने की कृपा करें. मुझ बलवान और साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं! इसलिए ऐसे पुत्र से क्या लाभ है ?

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ब्राह्मण बोले - राजन् ! यहां से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है. वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं. नृपश्रेष्ठ ! आप उन्हींके पास चले जाइए. ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गए और वहां उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया. मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी. 

राजा बोले- स्वामिन् ! आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल हैं किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं. इसलिए बताएं कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहां से छुटकारा होगा.
राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यान की स्थिति में रहे. इसके बाद वे राजा से बोले महाराज! मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष में जो मोक्षदा नाम की एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो.  उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से उद्धार हो जायेगा. 

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- युधिष्ठिर ! मुनि की यह बात सुनकर राजा पुन: अपने घर लौट आए. जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार 'मोक्षदा एकादशी' का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरोंसहित पिता को दे दिया. पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. वैखानस के पिता पितरोंसहित नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले- 'बेटा ! तुम्हारा कल्याण हो'  यह कहकर वे स्वर्ग में चले गए.

राजन् ! जो इस प्रकार कल्याणमयी 'मोक्षदा एकादशी' का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है . यह मोक्ष देनेवाली 'मोक्षदा एकादशी' मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है . इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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