Karwa Chauth Vrat Katha : सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत बेहद महत्वपूर्ण होता है. यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि में मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. इस बार करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर को रखा जाएगा. करवा चौथ के दिन व्रत के साथ ही करवा चौथ की कथा सुनी जाती है. इसी के बाद व्रत पूर्ण होता है. इस व्रत में कथा का महत्व काफी ज्यादा होता है.
करवा चौथ व्रत कथा (Karwa Chauth Katha)
पहली कथा
एक समय की बात है. एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन थी. बहन का नाम वीरवती था. सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे. यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे. एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी. शाम को भाई जब अपना कार्य बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी. सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जला व्रत है. वह खाना सिर्फ चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही खा सकती है. चूंकि, चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है. तब उसके भाइयों ने पीपल की आड़ में महताब आदि का सुन्दर प्रकाश फैला कर बनावटी चन्द्रोदय दिखला दिया और उसके बाद वीरवती को भोजन करवा दिया. परिणाम यह हुआ कि उसका पति तुरंत अदृश्य हो गया. फिर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत किया. अगले साल फिर करवा चौथ आने पर उसने व्रत किया और अपने पति को पुनः प्राप्त किया.
दूसरी कथा
करवा चौथ के व्रत का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है. पांडवों पर लगातार आ रही मुसीबतों को दूर करने के लिए द्रौपदी ने भगवान कृष्ण से मदद मांगी, तब श्री कृष्ण ने उन्हें करवा चौथ के व्रत के बारे में बताया. जिसे देवी पार्वती ने भगवान शिव की बताई विधियों के अनुसार रखा था. कहा जाता है कि दौपद्री के इस व्रत को रखने के बाद न सिर्फ पांडवों की तकलीफें दूर हो गईं, बल्कि उनकी शक्ति भी कई गुना बढ़ गई.
तीसरी कथा
करवा चौथ के व्रत को सत्यवान और सावित्री की कथा से भी जोड़ा जाता है. इस कथा के अनुसार जब यमराज सत्यवान की आत्मा को लेने आए. तो सावित्री ने खाना-पीना सब त्याग दिया. उसकी जिद के आगे यमराज को झुकना ही पड़ा और उन्होंने सत्यवान के प्राण लौटा दिए.
चौथी कथा
एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी. एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया. स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया. वह मनुष्य करवा-करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा. उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया. मगर को बांधकर वो यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी, "हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उस मगर को नरक में ले जाओ." यमराज बोले, "अभी मगर की आयु शेष है, अतः मैं उसे नहीं मार सकता." इस पर करवा बोली, "अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी." सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया. करवा के पति को दीर्घायु दी. हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना.
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)
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