Kawad Yatra 2023: हरिद्वार से ही क्यों जल उठाते हैं कावड़िये, जानें कांवड़ यात्रा का महत्व

Aman Maheshwari | Updated:Jul 03, 2023, 10:35 AM IST

Kawad Yatra 2023

Kawad Yatra 2023: सावन में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है. शिव भक्त कांवड़ यात्रा कर जल लाकर महादेव को चढ़ाते हैं.

डीएनए हिंदीः सावन महीने (Sawan Month 2023) में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व होता है. 4 जुलाई 2023 से सावन (Sawan Month 2023) की शुरुआत हो रही है. सावन में भोलेनाथ को जल चढ़ाने और सोमवार का व्रत करने से महादेव भक्तों की सभी समस्याओं को दूर करते हैं. इस साल का सावन (Sawan Month 2023) बहुत ही खास है अधिकमास होने से सावन (Sawan Month 2023) दो महीने का होगा जिसमें 59 दिन हैं. सावन के महीने (Sawan Month 2023) में 8 सोमवार के व्रत पड़ रहे हैं. इन दिनों कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra 2023) का भी विशेष महत्व होता है. शिव भक्त कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra 2023) कर जल लाकर महादेव को चढ़ाते हैं. कांवड़ यात्रा (Kawad Yatra 2023) क्यों कि जाती है और कांवड़ यात्रा का जल अधिकांश कावड़िए (Kawad Yatra 2023) हरिद्वार से ही लाते हैं इसके पीछे क्या वजह है चलिए आपको बताते हैं.

हरिद्वार से ही क्यों जल उठाते हैं कावड़िये (Kawad Yatra 2023 Haridwar)
भारत में बहुत से प्रसिद्ध गंगा घाट है जहां पर स्नान करने से भक्तों को पापों से मुक्ति मिलती है. भारत में ऋषिकेश, वाराणसी, सोरों घाट, त्रिवेणी घाट बहुत ही प्रसिद्ध है. यहां पर भी कावड़िये जल लेने के लिए जाते हैं. हालांकि सबसे अधिक कावड़िये हरिद्वार से ही जल उठाते हैं.

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सावन महीने में हरिद्वार में होते हैं भोलेनाथ
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव सावन महीने में अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी में रहे हैं. वह सावन महीने में हरिद्वार के कनखल में रहे हैं. यहीं वजह है कि कावड़िये यात्रा कर जल लेने के लिए हरिद्वार आते हैं.

कांवड़ यात्रा का महत्व (Kawad Yatra 2023 Mahatva)
सावन के महीने में हर साल लाखों कावड़िये जल लेने के लिए हरिद्वार जाते हैं. कांवड़ में गंगाजल भरने के बाद वह पैदल यात्रा कर शिवालयों में पहुंचते हैं और चतुर्दशी के दिन अभिषेक करते हैं. ऐसा मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था उसे भगवान शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए पी लिया था. जिसके बाद उनका कंठ निला पड़ गया था. विष का सेवन करने के बाद उनके शरीर में जलन होने लगी थी. तब देवताओं ने शिव जी के ऊपर जल अर्पित किया था. इसी मान्यता के तहत कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी.

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रावण था पहला कावड़िया
समुद्र मंथन के समय शिव जी के विष पीने के बाद उन्हें कष्ट होने लगा था. जिसे शांत करने के लिए शिव भक्त रावण ने तप किया था. रावण ने कांवड़ में जल भरकर शिव जी की जलाभिषेक किया था. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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