डीएनए हिंदी : सत्रहवीं शताब्दी में द्वैतवाद के जो सबसे महत्वपूर्ण संत हुए उनमें राघवेंद्र स्वामी का विशेष स्थान है. द्वैत वाद आत्मा और परमात्मा को दो अलग-अलग चीज़ मानने का सिद्धांत है. इस मत में जीव, संसार और ईश्वर को अलग-अलग माना जाता है. उन्हें माधव संत भी कहा जाता है. उन्होंने 1621 से 1671 तक कुम्बकोनम मठ के प्रमुख रहे. उन्होंने आंध्र प्रदेश के मंत्रालय में एक नया वृन्दावन भी बनवाया था.
अडोनी के नवाब से बंजर गांव लिया था स्वामी राघवेंद्र ने
अडोनी के नवाब और स्वामी राघवेंद्र(Raghavendra Swamy) का किस्सा बेहद आश्चर्यचकित करने वाला है. जब स्वामी जी अदोनी के नवाब से मिलने गए तो उन्होंने स्वामी राघवेंद्र को संत मानने से मन कर दिया, फिर अपने एक अधिकारी के कहने पर उन्होंने स्वामी जी से मिलना तय किया. नवाब ने स्वामी जी को उपहार के तौर पर मांस से भरा थाल दिया जिसे अपने मंत्रों से स्वामी जी ने फल से भरे थाल में बदल दिया था. नवाब यह देखकर चौंक गए थे.
उन्होंने राघवेंद्र स्वामी((Raghavendra Swamy) से क्षमा मांग कर अपने पाप का प्रायश्चित करने की बात की तो राघवेन्द्र ने एक बंजर गांव मांगा. नवाब उन्हें कोई उपजाऊ ज़मीन देना चाहते थे पर वे बंजर गांव पर ही अड़े रहे. उस बंजर गांव पर ही उन्होंने नए वृंदावन को बसाया.
सबको एक समान नज़र से देखते थे Raghavendra Swamy
माधव परंपरा के इस अद्भुत संत के बारे में ख्यात है कि वे अपने सभी अनुयाइयों और चाहने वालों को एक नज़र से देखते थे. उनके सामने अमीर-गरीब, जाति और धर्म का कोई भेद नहीं था. कहा जाता है कि अपने जीवनकाल में उन्होंने हज़ारों लोगों के दुःख दूर किए.
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