डीएनए हिंदी : हिन्दू धर्म के तीन सर्वश्रेष्ठ देवों में एक शिव की पूजा लिंग अक्सर रूप में होती है. इस रूप को शिवलिंग कहा जाता है. दरअसल यह उपासना केवल शिव के लिंग रूप(Shivling Puja) की नहीं होती है, शिव लिंग चारो ओर एक गोल घेरा होता है. माना जाता है कि यह घेरा योनि है और उस पल का प्रतीक है जब लिंग और योनि आपस में जुड़ते हैं. यह शिव और शक्ति के मेल को दिखाता है. शिव और शक्ति के मेल को सृष्टि की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है.
ब्रह्माण्ड का प्रतीक है Lingam
शिवलिंग को ब्रह्माण्ड के रूपक(Mystery Of Shivling) के रूप में भी लिया जाता है. इसे अध्यात्म के द्वार के तौर पर भी देखा जाता है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार जब सृष्टि की रचना की जाने वाली थी तब ब्रह्मा और विष्णु के बीच बहस शुरू हो गई कि उनमें बेहतर कौन है. तभी उन्हें एक दिव्य आवाज़ सुनाई दी कि उनमें से जो भी ज्वाला के आदि और अंत का पता लगा लेगा, वह सर्वोत्तम होगा.
वे दोनों आदि और अंत का पता लगाने की ज़द्दोज़हद में थे. विष्णु ने अंत का पता लगाने की कोशिश की और उन्हें कुछ भी नहीं मिला. उन्होंने हार मान ली. ब्रम्हा ने झूठ बोल दिया कि उन्होंने शुरुआत देख ली है. ब्रह्मा को अपने इस झूठ की सजा मिली. कथा के अनुसार शिवलिंग में समाहित यह ज्वाला दुनिया भर की ऊर्जा थी.
Shivling की अनंत शक्ति
भगवान शिव के जिस लिंग रूप(Worshipping Shivling) की पूजा होती है उसके दो हिस्से हैं. पहला हिस्सा लिंग है जिसे अध्यात्म द्वार माना जाता है वहीं दूसरा हिस्सा पनापट्टम कहलाया जाता है. यह शिव के अक्षत स्वरुप का उत्तेजित रूप है जबकि योनि सृष्टि कर्ता के स्त्री रूप को दर्शाती है.
भृगु का श्राप
एक कथा यह भी कहती है कि जब त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ देव के चुनाव की बारी आई तो महर्षि भृगु को यह काम सौंपा गया. तीनों देवताओं से मिलने के क्रम में भृगु जब शिव के पास पहुंचे, शिव देवी पार्वती के साथ रति क्रिया में लीन थे. भृगु के कई बार आवाज़ देने पर भी जब वे नहीं सुने तो उन्होंने शिव को उस रति रूप में अर्थात पार्वती की योनि में समाहित रूप में पूजे जाने का श्राप दे दिया.
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