डीएनए हिंदी : Hartalika Teej 2022 date vrat- माता पार्वती ने भगवान शिव (Lord Shiva) को पाने के लिए 12 साल कठोर तपस्या की थी, इस दौरान उन्होने जो व्रत किए उसे हरतालिका तीज या फिर तीजा भी कहा जाता है. यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर मनाया जाता है. इस दिन कुंवारी कन्यााएं और सुहागिन महिलाएं भगवान शंकर और माता पार्वती की सच्चे मन से पूजा करती हैं, सुहागिन के लिए इस व्रत का काफी महत्व है.
यह व्रत प्रमुख तौर पर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत में पूरे दिन निर्जल रहते हैं. पूजा के बाद ही इस व्रत को तोड़ा जाता है.
व्रत का महत्व (Significance of Hartalika Teej in Hindi)
हरतालिका तीज के व्रत को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से वैवाहिक जीवन में सुख और संतान की प्राप्ति होती है.धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक हरतालिका तीज त्रेता युग से मनाया जा रहा है. इस दिन जो महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पुराणों में वर्णन है कि हरतालिका तीज के दिन ही पार्वती माता की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार किया था.
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क्या है इसके पीछे की कथा (Vrat Katha in Hindi)
इस व्रत के पीछे माता पार्वती और भगवान शिव की कथा काफी प्रचलित है. कहा जाता है कि पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देवी सती सहन नहीं कर पाई. उन्होंने खुद को यज्ञ की अग्नि में भस्म कर दिया, अगले जन्म में उन्होंने राजा हिमाचल के यहां जन्म लिया और पूर्व जन्म की स्मृति शेष रहने के कारण इस जन्म में भी उन्होंने भगवान शंकर को ही पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या की. देवी पार्वती ने तो मन ही मन भगवान शिव को अपना पति मान लिया था और वह सदैव भगवान शिव की तपस्या में लीन रहतीं थीं. पुत्री की यह हालत देखकर राजा हिमाचल को चिंता होने लगी.
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इस संबंध में उन्होंने नारदजी से चर्चा की तो उनके कहने पर उन्होंने अपनी पुत्री उमा का विवाह भगवान विष्णु से कराने का निश्चय किया.पार्वतीजी विष्णुजी से विवाह नहीं करना चाहती थीं, पार्वतीजी के मन की बात जानकर उनकी सखियां उन्हें लेकर घने जंगल में चली गईं. इस तरह सखियों द्वारा उनका हरण कर लेने की वजह से इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत पड़ा.भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि के हस्त नक्षत्र मे माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया, उन्होंने अन्न का त्याग भी कर दिया. ये कठोर तपस्या 12 साल तक चली, तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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