Kolkata Kalighat Mandir: नवरात्रि में इस शक्तिपीठ के जरूर करें दर्शन, इस दिन पुरुषों को नहीं मिलती एंट्री

सुमन अग्रवाल | Updated:Sep 26, 2022, 01:16 PM IST

Kolkata Kalighat मंदिर में 56 प्रकार के भोग लगते हैं, इस शक्तिपीठ की बहुत मान्यता है, दशमी के दिन मंदिर में पुरुषों की एंट्री नहीं होती है,क्यों

डीएनए हिंदी: Kolkata Kalighat Temple in Hindi- नवरात्रि के समय में आदि शक्तिपीठों का दर्शन करना काफी शुभ माना जाता है. जहां जहां देवी सती के शरीर के अंग गिरे हैं वहां वहां शक्तिपीठ बने हैं. हर साल मां के भक्त वहां दर्शन के लिए जाते हैं. कोलकाता के कालीघाट में भी मां का शक्तिपीठ है. हर साल नवरात्रि पर यहां हजारों की भीड़ लगती है. आईए जानते हैं इस मंदिर की महिमा और महत्व 

कालीघाट मंदिर का इतिहास (Kalighat Mandir History)
 
कालीघाट मंदिर का निर्माण साल 1809 में हुआ था. इस मंदिर को शहर के सबर्ण रॉय चौधरी नाम के धनी व्यापारी के सहयोग से बनाया गया था. वहीं कालीघाट मंदिर में गुप्त वंश के कुछ सिक्के भी मिले थे जिसके बाद ये पता चला कि गुप्त काल के दौरान भी इस मंदिर में श्रद्धालुओं का आना-जाना रहता था. कालीघाट मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है. इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आ रही हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला है. उनके हाथ में कुछ कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं,कमर में कुछ नरमुंड भी बंधे हुए हैं.उनकी जीभ बाहर निकली हुई है. जीभ से कुछ रक्त की बूंदे टपक रही हैं.मां की प्रतिमा का काफी कुछ सोने से बना हुआ है. दांत और जीभ सोने की है.

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कथाओं के अनुसार देवी किसी बात पर गुस्सा हो गयी थी उसके बाद उन्होंने नरसंघार करना शुरू कर दिया, उनके मार्ग में जो भी आता वो मारा जाता उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गए. देवी ने गुस्से में उनकी छाती पर भी पैर रख दिया उसी समय उन्होंने भगवान शिव को पहचान लिया और फिर नरसंघार बंद कर दिया. यहां उनकी पैर की ऊंगलियां गिर गई थी.

पहले भागीरथी के किनारे था कालीघाट मंदिर

कोलकाता का कालीघाट मंदिर पहले हुगली नदी (भागीरथी) के किनारे स्थित हुआ करता था लेकिन समय के साथ भागीरथी दूर होती चली गई और अब कालीघाट मंदिर आदिगंगा नहर के किनारे स्थित है जो हुगली नदी से जाकर मिलती है. 

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मंदिर में क्या खास है 

बंगाल में काली पूजा के दिन जहां घरों एवं मंडपों में देवी काली की आराधना होती है, वहीं इस शक्तिपीठ में लक्ष्मी स्वरूपा देवी की विशेष पूजा-अर्चना होती है. दुर्गापूजा के दौरान षष्ठी से दशमी तक मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. दुर्गोत्सव में दशमी को सिंदूर खेला के लिए इस कालीमंदिर में दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक सिर्फ महिलाएं प्रवेश करती हैं, इस दौरान पुरुषों का प्रवेश वर्जित रहता है, यहां रोज मां काली के लिए 56 भोग लगाया जाता है

मंदिर पहुंचे कैसे 

हावड़ा जंक्शन कालीघाट मंदिर से 10 किमी दूर है. आप चाहें तो ट्रेन से भी जा सकते हैं या फिर फ्लाइट भी ले सकते हैं. अगर ट्रेन से आ रहे हैं तो ट्रेन से उतरकर मंदिर पहुंचने के लिए टैक्सी कर सकते हैं. 

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