Krishna Janmashtami 2022: जानिए क्या था कृष्ण के बांसुरी बजाने का रहस्य, क्यों जन्माष्टमी में खास माना जाता है इसे

Written By सुमन अग्रवाल | Updated: Aug 17, 2022, 10:22 PM IST

Krishna Janmashtami Flute Rahasya: कृष्ण के प्यार का हर कोई दीवाना था, उनकी बांसुरी की तान से सखियां, राधा, माता यशोदा हर कोई खिंचकर चला आता था. जानिए आखिर क्या था बांसुरी का रहस्य और कब मनाई जा रही है इस बार जन्माष्टमी.

डीएनए हिंदी : कृष्ण जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami 2022) आते ही हमें कान्हा की सभी प्रिय चीजें याद आने लगती हैं, जैसे कान्हा गोपियों के लिए बांसुरी (Krishna Flute) बजाते थे, अपनी मां को माखन के लिए सताते थे, कान्हा की सभी लीलाएं जैसे आंखों के सामने आने लगती हैं. कई लोग कृष्ण (Krishna Love) के इन भावों के दीवाने हैं लेकिन इनके पीछे कई रहस्य भी छिपे हैं. कोई कृष्ण को पुत्र की तरह पाना चाहते हैं तो कोई पति के रूप में पाना चाहते हैं. कृष्ण को किसी भी रूप में बुलाएं वो दौड़े चले आते हैं, बस मन के भाव सच्चे होने चाहिए. कृष्ण की बांसुरी (Lord Krishna Flute Mystery) की तान ही ऐसी है कि हर कोई खींचा चला आता है, इस बांसुरी के पीछे एक रहस्त छिपा है. 

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कान्हा का प्यार और उनका माधुर्य भाव (Lord Krishna's Love and Feelings)

प्रभु को निकट महसूस करने के लिए आपके अंदर वो भाव होना चाहिए जो आपकी आत्मा को उनसे जोड़ सके. अगर भक्ति नहीं है तो ईश्वर की निकटता नहीं मिल सकती. हर कोई ईश्वर को अपने अपने भावों से अपनाता है और वो उन्हें प्राप्त भी होता है. अपने- अपने संस्कार के अनुरूप ब्रज के कृष्ण को मनुष्य ने तीन दृष्टिकोण से अपनाकर देखा था. नंद-यशोदा, इन्होंने कृष्ण को लिया था वात्सल्य भाव से. परमपुरुष को अपनी संतान (Mata Yashoda) मानकर उसको प्यार करना और उसे लेकर ही मस्त रहना, इसका नाम है वात्सल्य भाव.  इस वात्सल्य भाव से कृष्ण के लौकिक पिता वासुदेव व लौकिक माता देवकी वंचित थे, उन्होंने तो पुत्र को बड़ा होने पर पाया. 

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तुम संग खेलूं, तुम संग खाऊं, तुम संग प्रीत लगाऊं (Radha's Love for Krishna in Hindi)

राधा और कृष्ण का प्रेम भी कुछ ऐसा ही था. राधा ने तन मन और धन यानी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक सभी पहलुओं से खुदको एक बिंदु में प्रतिष्ठित किया और फिर कृष्ण को महसूस किया. तभी तो कह पाई तुम संग बैठूं, खेलूं खाऊं और आनंद भी तुम संग पाऊं. यही है राधा का भाव, माधुर्य़ भाव.  ब्रज के कृष्ण भी उसी प्रकार बांसुरी बजाकर उस माधुर्य की ओर अपने को बढ़ा देते हैं. यही है माधुर्य भाव. रस में सराबोर माधुर्य से मनुष्य पहली बार परमपुरुष को अनुभव करता है और उसे पा भी लेता है.

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राधा की भाषा में, यह कृष्ण कैसे हैं, उनकी कजरारी आंखों में डूबने से ऐसा लगता है जैसे घने बादल आसमान पर छा गए हैं, उनकी बांसुरी की तान दिल के अंदर घर कर जाती है, उनके गुलाब की पंखुरी जैसे होंठ मन को तृप्त कर देते हैं, ऐसे हैं मेरे कृष्ण 

सखा भाव से कन्हैया को पाकर धन्य हुए देवता (Krishna As a Friend) 

वात्सल्य रूप में जिसे पाकर यशोदा और नंद आनन्दित हुए, देवता जिन्हें सखा भाव में पाकर धन्य हुए और बाद में कहा कि तुम ही सब कुछ हो,तुम सखा तो हो ही, उससे भी अधिक हो, हे कृष्ण, हे ब्रज के कृष्ण, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं. ब्रज के गोपालक जिन्हें सख्य भाव में पाते हैं,राधा ने उन्हें पाया था माधुर्य भाव में.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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