Kullu Dussehra 2022: क्यों विश्व प्रसिद्ध है कुल्लू का दशहरा, क्या है महत्व? पहली बार PM होंगे शामिल

सुमन अग्रवाल | Updated:Oct 05, 2022, 09:54 AM IST

आज कुल्लू दशहरे का आगाज होगा, पीएम मोदी मेले में शिरकत करेंगे, क्या खास है, क्या इतिहास और कहानी जुड़ी है इस दशहरे से, आईए जानते हैं

डीएनए हिंदी: Kullu Dussehra 2022, PM Modi Visit Todfay- आज दशहरे का त्योहार है और देश में कई ऐसी जगह हैं जहां का दशहरा विश्व प्रसिद्ध हैं, उनमें से एक है हिमाचल प्रदेश का कुल्लू का दशहरा,(Kullu Dusseha) जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है. लाखों की तादाद में लोग इस दशहरे में शिरकत करने आते हैं. इस साल खास बात यह है कि 372 साल के इतिहास में पहली बार कोई प्रधानमंत्री दशहरे में शिरकत करने जा रहे हैं. (PM Modi Visit Kullu Dussehra) इसलिए यह दशहरा और भी खास बनने वाला है. 5 अक्टूबर यानि आज से शुरू होकर यह उत्सव 11 अक्टूबर तक चलेगा. चलिए जानते हैं इस दशहरे की कुछ खास बातें, इसका महत्व और इतिहास भी. 

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कुल्लू का दशहरा पर्व,परंपरा,रीतिरिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है. जब पूरे भारत में विजयादशमी की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का रंग और भी अधिक बढ़ने लगता है. कुल्लू में विजयदशमी (Vijayadashmi) के पर्व मनाने की परंपरा राजा जगत सिंह के समय से मानी जाती है. आश्विन मास की दशमी तिथि से इस त्योहार की शुरुआत होती है. इस पर्व की शुरुआत 5 अक्टूबर यानि आज से हो रही है. ऐसा कहा जा रहा है कि पीएम मोदी मेला का आगाज कर सकते हैं. 



महत्व (Significance)

प्रदेश के इस अनोखे दशहरे की शुरुआत भी तब होती है जब बाकी सारी दुनिया दशहरा मना लेती है. बाकी जगहों की तरह यहां एक दिन का दशहरा नहीं होता बल्कि 7 दिनों तक उत्सव मनता है, लेकिन यहां कोई रावण दहन नहीं होता. यहां के लोगों का मानना है कि करीब 1000 देवी-देवता इस अवसर पर देव लोक से पृथ्‍वी पर आकर इसमें शामिल होते हैं. यही यहां की परंपरा रही है. हिमाचल की संस्कृति,परंपरा,रीति-रिवाज और ऐतिहासिक नजर से बेहद अहम है. भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा से दशहरा शुरू होता है और सभी स्थानीय देवी-देवता ढोल-नगाड़ों की धुनों पर देव मिलन में आते हैं.

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दरअसल हिमाचल के लगभग हर गांव का अलग देवता होता है और लोग उन्हें कर्ता-धर्ता मानते हैं. उनका मानना है कि बर्फीली ठंड और सीमित संसाधनों के बावजूद वे इन पहाड़ों पर देवताओं की कृपा से ही रह पा रहे हैं. इनमें 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को सजी हुई पालकियों पर बैठाकर शामिल किया जाता है.

क्या है कहानी, इतिहास (Kullu Dussehra Kahani, History of Raja Jagat Singh and Lord Raghunath, Ram)

कहा जाता है कि जब कुल्लू के राजा जगत सिंह किसी गंभीर रोग से पीड़ित थे,तब एक साधु ने उन्हें इस रोग से ठीक होने के लिए भगवान रघुनाथ जी की स्थापना की सलाह दी थी. सन्यासी ने राजा को बताया था कि उनके स्वस्थ ठीक होने का यही एकमात्र उपाय है. इसलिए साधु कि सलाह अनुसार राजा जगत सिंह ने कुल्लू में भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति की स्थापना की और उसके बाद अयोध्या से भगवान रघुनाथ जी (श्रीराम) की प्रतिमा को कुल्लू लाया गया और उसकी स्थापना की गई. अयोध्या से लाई गई मूर्ति के कारण राजा के स्वास्थय में सुधार होने लगा और कुछ ही दिनों में वह पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए. इस घटना के बाद से राजा ने अपना संपूर्ण राज्य एवं जीवन भगवान रघुनाथ जी की सेवा में समर्पित कर दिया.

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कैसे मनता है दशहरा, नहीं जलता रावण का पुतला

दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है. लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ की पावन सवारी को मोटी मोटी रस्सी से खींचकर दशहरे की शुरआत होती है. राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा में छड़ी लेकर उपस्थित रहते हैं, आसपास कुल्लू के देवी-देवता शोभायमान रहते हैं. कु्ल्लू दशहरे में रावण,मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते लेकिन लंका दहन जरूर होता है. इसमें भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका को जलाने जाते हैं. शाही परिवार की कुलदेवी होने के नाते देवी हिडिंबा भी यहां विराजमान रहती हैं

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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