Kushotipatni Amavasya 2022: शनिवार 27 अगस्‍त को है कुशोत्पाटिनी अमावस्या, जानें कुश का महत्व-मंत्र और पूजा विधि

ऋतु सिंह | Updated:Aug 26, 2022, 02:05 PM IST

कुशोत्पाटिनी अमावस्या

27 अगस्त भाद्रपद माह (Bhadrapad Mass) की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या (Kushotpatini Amavasya) या कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं. इसी दिन शनिश्चिरी अमावास्‍या (Shani Amavasya) भी है क्‍योंकि अमावस्‍या शनिवार को पड़ रही है. इस दिन कुश को तोड़कर पूरे साल के लिए रखा जाता है. हिंदू धर्म में कोई भी पूजा बिना कुश के पूरी नहीं होती. तो चलिए जानें कुश के महत्‍व और इसे तोड़ने के मंत्र से जुड़ी कई और बातें.

डीएनए हिंदी:  कुशोत्पाटिनी अमावस्या (Kushotipatni Amavasya) पर ही कुश की घास को तोड़कर पूजा के लिए रखा जाता है. इस दिन तोड़े कुश से ही पूरे एक साल पूजा की जाती है. बीच में कुश को नहीं तोड़ा जाता है. कुश का उपयोग गृह प्रवेश, शादी, श्राद्ध और अन्य सभी मांगलिक कायों में करते हैं.

वहीं  भाद्रपद अमावस्या पर पितरों के लिए श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. स्‍नान कर दान का विधान है और इस दिन पितरों के नाम से पूजा जरूर करनी चाहिए और दक्षिण मुख कर उन्‍हें जल देना चाहिए. 

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हिंदू धर्म में जानें क्‍या है कुश का महत्व
कुश का मूल ब्रह्मा, मध्य विष्णु और अग्रभाग शिव को माना गया है. कुश में देवताओं का वास होता है इसलिए किसी भी मंत्र, ब्राह्मण, अग्नि, तुलसी और कुश को बिना स्‍नान किए न बोलना चाहिए न छूना. 

भगवान विष्णु का रोम माना जाता है कुश
अथर्ववेद में कुश को भगवान वि‍ष्‍णु का रोम यानी रोआं माना गया है. इसे साथ रखने मे मनुष्‍य अपने क्रोध को नियंत्रित कर सकता है. 

कुश की उत्पत्ति कथा
मत्स्य पुराण के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था और हिरण्याक्ष का वध किया था. फिर से पृथ्वी को समुद्र से निकालकर सभी प्राणियों की रक्षा की थी. उस समय जब भगवान वराह ने अपने शरीर को झटका था, तब उनके शरीर के कुछ रोम धरती पर गिर गए थे. उन्हीं से कुश की उत्पत्ति हुई. इस वजह से कुश पवित्र माने जाते हैं.

कुश और अमृत कलश से जुड़ा प्रसंग
महाभारत में कुश से जुड़ा एक प्रसंग है. एक समय की बात है, जब गरुड़ देव स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आ रहे थे, तब उन्होंने कुछ देर लिए अमृत कलश को जमीन पर कुश पर रख दिया. इस पर अमृत कलश रखने के कारण यह पवित्र माना जाता है.

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कुश से पितर होते हैं तृप्त
महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने अपने पितरों का तर्पण करने के लिए कुश का उपयोग किया था. तब से माना जाता है कि जो भी व्यक्ति कुश पहनकर अपने पितरों का श्राद्ध करता है तो उसके पितर देव उससे तृप्त हो जते हैं.

कुश से जुड़े नियम
 कुश ऐसा होना चाहिए जिसकी घास में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और वो हरा हो. ऐसा ही कुश देवताओं और पितरों की पूजा के लिए श्रेष्ठ होता है. कुश को इस अमावस्या पर सूर्योदय के वक्त लाना चाहिए. यदि आप सूर्योदय के समय इसे न ला पाएं तो उस दिन के अभिजित या विजय मुहूर्त में घर पर लाएं.

सूर्यास्त के बाद कुश को नहीं तोड़ना चाहिए. यदि कुश गंदे स्थान पर उगा है तो उसे न लाएं. कुश से आसन और अंगुठी बनाते हैं. कुश घास से बना आसन अच्छा माना जाता है. कुश आसन पर बैठकर पूजा करने से अधिक पुण्य प्राप्त होता है.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कुश के आसन पर बैठक पूजा करने से शरीर की ऊर्जा जमीन में नहीं जाती है. मांगलिक कार्यों एवं पूजा-पाठ में कुश से अंगुठी बनाएं और उसे दाएं हाथ की रिंग फिंगर में पहनें. फिर पूजा करने से पवित्रता बनी रहती है. 'ऊं हूं फट ' के मंत्र जाप के साथ कुशा ग्रहण करनी चाहिए.
 

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