Kaal Bhairav Jayanti : 16 नवंबर को ब्रह्म योग में है काल भैरव जयंती, ये है सुबह और निशिथा पूजा मुहूर्त का शुभ समय

ऋतु सिंह | Updated:Nov 10, 2022, 12:21 PM IST

16 नवंबर को ब्रह्म योग में है काल भैरव जयंती, ये है सुबह और निशिथा पूजा मुहूर्त का शुभ समय

काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी तिथि को होगी. बता दें कि इस तिथि पर भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप की उत्पत्ति हुई थी.

डीएनए हिंदीः भगवान शिव के उग्र रूप महाकाल यानी काल भैरव हैं और ये भोले बाबा का रौद्र रूप माना जाता है. इस बार काल भैरव जयंती 16 नवंबर को है, तो चलिए जानें बाबा के पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व क्या है. 
मान्यता है कि काल भैरव की पूजा करने से सभी प्रकार की नकारात्मकता और बुरी शक्तियां दूर होती हैं. काल भैरव तंत्र-मंत्र के देवता भी माने गए हैं, इसलिए उनकी पूजा साधक निशिता मुहूर्त में भी करते हैं. इस बार महाकाल की जयंती 16 नवंबर दिन बुधवार को होगी. काल भैरव जयंती के दिन ब्रह्म योग भी बन रहा है.

काल भैरव जयंती 2022 तिथि
पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 16 नवंबर दिन बुधवार को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से हो रहा है. यह तिथि अगले दिन 17 नवंबर गुरुवार को सुबह 07 बजकर 57 मिनट तक है. ऐसे में उदयातिथि के आधार पर काल भैरव जयंती 16 नवंबर को मनाई जाएगी. इस दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 44 मिनट पर होगा.

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काल भैरव जयंती 2022 पूजा निशिता मुहूर्त
काल भैरव तंत्र मंत्र के देवता हैं, इसलिए मंत्रों की सिद्धि के लिए निशिता मुहूर्त में उनकी पूजा अर्चना की जाती है. काल भैरव जयंती पर निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 40 मिनट से देर रात 12 बजकर 33 मिनट तक है.

काल भैरव जयंती 2022 पूजा सुबह का मुहूर्त
सुबह में काल भैरव की पूजा सुबह 06 बजकर 44 मिनट से सुबह 09 बजकर 25 मिनट के मध्य होगी. इसके अलावा शाम को 04 बजकर 07 मिनट से शाम 05 बजकर 27 मिनट, शाम 07 बजकर 07 मिनट से रात 10 बजकर 26 मिनट तक पूजा का शुभ मुहूर्त है.

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ब्रह्म योग में काल भैरव जयंती
ब्रह्म योग 16 नवंबर को सुबह से लेकर देर रात 01 बजकर 09 मिनट तक है. उसके बाद इंद्र योग शुरू हो जाएगा. ब्रह्म योग को मांगलिक कार्यों के लिए शुभ माना जाता है.

 भगवान शिव के पूजा मंत्र

ॐ हराय नम:।।

ॐ महेश्वराय नम:।।

ॐ शूलपाणये नम:।।

ॐ पिनाकवृषे नम:।।

ॐ शिवाय नम:।।

ॐ पशुपतये नम:।।

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काल भैरव जयंती का महत्व
इस तिथि पर भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप की उत्पत्ति हुई थी. जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ के हवन कुंड में आत्मदाह कर लिया, तब भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और दक्ष को दंड देने के लिए अपने अंशावतार काल भैरव को प्रकट किया. काल भैरव ने राजा दक्ष को शिव के अपमान और सती के आत्मदाह के लिए दंडित किया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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