डीएनए हिंदी: Dantewada Danteshwari Temple Shaktipeeth History and Significance- छत्तीसगढ़ का दंतेवाड़ा जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, वहां आदि शक्ति के 52 शक्तिपीठों में से एक है. यहां माता सती के दांत गिरे थे. इसलिए इसे दंतेश्वरी का मंदिर कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के तीन दिन ही माता मंदिर से बाहर निकलती हैं. अलग अलग शहरों से लो यहां दर्शन के लिए आते हैं. यहां तीन नवरात्र मनाए जाते हैं. आमतौर पर सभी जगह चैत्र और शारदीय दो नवरात्र मनाए जाते हैं लेकिन यहां फाल्गुन मास में भी एक नवरात्र मनाया जाता है.आईए जानते हैं 700 साल पुराने इस मंदिर का इतिहास, तांत्रिकों की साधना और क्या है इसकी महिमा.
क्या है खासियत (Significance)
इस मंदिर की एक खासियत है कि यहां दशहरे पर माता बस्तर दशहरा में शामिल होने मंदिर से बाहर निकलतीं हैं. बस्तर दशहरा में रावण का दहन नहीं बल्कि रथ की नगर परिक्रमा करवाई जाती है, जिसमें माता का छत्र विराजित किया जाता है. जब तक दंतेश्वरी माता दशहरा में शामिल नहीं होती हैं तब तक यहां दशहरा नहीं मनाया जाता है. माता महा-अष्टमी के दिन दर्शन देने निकलती हैं, बस्तर में मनाए जाने वाला दशहरा पर्व की रस्में 75 दिनों तक चलती हैं, इस दौरान मेला लगता है.
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नक्सलियों की दहशत हुई कम
पहले नक्सलियों की दहशत ज्यादा होती थी लेकिन बदलते वक्त के साथ वह कम होती गई, अब लोग बगैर डर के यहां आते हैं और खूब धूमधाम से दशहरा मनाते हैं. महाराष्ट्र, तेलंगाना, ओड़िशा से लोग यहां आते हैं. तीन दिन तक खूब आनंद होता है. ऐसा माना जाता है कि बस्तर में होने वाला कोई भी विधान माता की अनुमति के बगैर नहीं किया जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने अपने चक्र से सती के शरीर को 52 भागों में विभक्त किया था, तो उनके शरीर के 51अंग देशभर के विभिन्न हिस्सों में गिरे, 52वां अंग उनका दांत यहां गिरा था.इसलिए देवी का नाम दंतेश्वरी और जिस ग्राम में दांत गिरा था उसका नाम दंतेवाड़ा पड़ा. मंदिर परिसर में मौजूद गरुड़ स्तंभ की मान्यता है कि इस स्तंभ को जो भी अपने दोनों हाथों में समा ले और उसके दोनों हाथों की उंगलियां आपस में मिल जाएं तो उसकी मन्नत पूरी हो जाती है.
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दशहरा मनाने जगदलपुर जाती हैं देवी
दशहरा पर्व में शामिल होने हर साल शारदीय नवरात्र की पंचमी पर आराध्य देवी मां दंतेश्वरी को निमंत्रण देने के लिए बस्तर के राज परिवार के सदस्य मंदिर आते हैं. यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. अष्टमी पर माता अपने भक्तों को आशीर्वाद देने मंदिर से निकलती हैं और डोली में बिठाकर उन्हें ले जाया जाता है. इस दौरन जगह-जगह माता की डोली और छत्र का भव्य रूप से स्वागत किया जाता है
तीन बार होती है नवरात्रि पूजा (Three Time Navratri Puja)
देवी मां दंतेश्वरी के मंदिर में साल में तीन बार विशेष पूजा होती है. पहला शारदीय नवरात्र,दूसरा चैत्र नवरात्र और तीसरा फागुन मडई होता है. फागुन मड़ई को तीसरा नवरात्र भी कहा जाता है. फागुन मड़ई में भी 9 दिनों तक देवी की पूजा अर्चना की जाती है. इसमें बहुत से विधान होते हैं. यहां एक अखंड ज्योत 7 दिनों तक जलती रहती है. यहां हजारों में दीपक जलाए जाते हैं, देश विदेश से भक्त आते हैं और पहले से ही बुकिंग लेते हैं.
भैरव बाबा हैं माता के अंगरक्षक (Bhairav Baba)
गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ दो बड़ी मूर्तियां भी स्थापित हैं. चार भुजाओं वाली यह मूर्तियां भैरव बाबा की है. कहा जाता है कि, भैरव बाबा मां दंतेश्वरी के अंगरक्षक हैं. ग्रंथों में भी कहा गया है कि माई जी का दर्शन करने के बाद भैरव बाबा के दर्शन करना भी जरूरी है. अगर भक्त भैरव बाबा को प्रसन्न कर लें तो वे उनकी मुराद माता तक पहुंचा देते हैं. ऐसी मान्यता है कि इससे भक्तों की मुराद जल्द पूरी हो जाती है. यहां आज भी जंगलों में गुफाओं तांत्रिकों की साधना चलती है.
कैसे जाएं मंदिर (Route to Reach Mandir)
दंतेवाड़ा जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिण बस्तर में स्थित है. दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में माता का मंदिर है. यदि कोई भक्त रायपुर से माता के दरबार आना चाहता है तो सड़क मार्ग से करीब 400 किमी की दूरी तय करनी होगी. रायपुर के बाद धमतरी, कांकेर,कोंडागांव और अंतिम बस्तर (जगदलपुर) जिले की सरहद पार कर दंतेवाड़ा पहुंचा जा सकता है. इसके अलावा हैदराबाद और रायपुर से भक्त फ्लाइट से जगदलपुर और फिर वहां से सड़क मार्ग के सहारे दंतेवाड़ा पहुंच सकते हैं
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