डीएनए हिंदी: Durga Maa Vidai Niyam- नवरात्रि के नौ दिन खत्म होते ही मां की विदाई का वक्त आ जाता है. मां के भक्तों के लिए यह सबसे भावुक समय है लेकिन मां की विदाई में कहीं कोई कमी नहीं रहती है. पूरे रीति रिवाज के साथ दुर्गा मां की प्रतिमा का विसर्जन होता है. दशहरे के दिन मां को एक बेटी की तरह धूमधाम से ही विदा किया जाता है. आईए जानते हैं मां की विदाई पर होने वाली रस्में क्या हैं.
सिंदूर की होली के साथ होती है मां दुर्गा की विदाई (Sindur Khela)
मां दुर्गा की विदाई के दौरान अनेक परंपराएं निभाई जाती है, हर राज्य में दुर्गा पूजा (Durga Puja) के त्योहार को अपने अलग और खास रंग-ढंग से मनाने की परंपरा है. इस पर्व का खासा उत्साह पश्चिम बंगाल में देखने को मिलता है. दुर्गा पूजा में बंगाली समाज का ‘सिंदूर खेला’ अपने आप में अनोखा उत्सव माना जाता है, जो मां दुर्गा की विदाई के समय मनाया जाता है. इस रस्म में मां दुर्गा के साथ-साथ महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर खुशियां मनाती हैं. सुहाग के लंबे उम्र की कामना करती हैं. मां के गालों पर सिंदूर लगाकर उसी सिंदूर को अपने हाथों की चूड़ियां और माथे पर लगा लेती हैं. विसर्जन के दिन होने वाली इस रस्म में महिलाएं पान के पत्ते से मां के गालों को स्पर्श करती हैं, जिसके बाद मां दुर्गा की मांग में सिंदूर भरती हैं और माथे पर सिंदूर लगाती हैं.
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निभाई जाती है देवी बोरन की रस्म
मां दुर्गा के विदाई के समय देवी बोरन की रस्म निभाई जाती है, जहां विवाहित महिलाएं देवी को अंतिम अलविदा कहने के लिए कतार में खड़ी होती हैं और बोरन थाली में सुपारी, सिंदूर, आलता, अगरबत्ती और मिठाइयां होती हैं. इस दौरान अपने दोनों हाथों में सुपारी लेती हैं और मां के चेहरे को पोंछती हैं. जिसके बाद मां को सिंदूर लगाया जाता है. अंत में लाल और सफेद चूडिंयां पहना कर मां को विदाई दी जाती हैं.
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विशेष नृत्य धुनुची का आयोजन
दुर्गा उत्सव के दौरान और अंतिम दिन एक विशेष तरह का नृत्य प्रस्तुत किया जाता है जिसे धुनुची डांस का कहा जाता है. इस नृत्य में एक विशेष तरह के मिट्टी के पात्र में सूखे नारियल के छिलकों को जलाकर माता की आरती की जाती है. आरती के वक्त इस धुनुची डांस में कई तरह के करतब भी दिखाए जाते हैं.
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ढाक ढोल और आरती
दशमी के दिन माता की विदाई के समय धुनुची डांस के दौरान ढाक ढोल बजाया जाता है. यह यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है. ढाक ढोल की ताल पर भक्त नाचते और झूमते रहते हैं और मां को दोबारा आने का न्योता देते हैं.
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सिंदूर, पान और मिठाई के साथ दी जाती है विदाई
दशमी के दिन महिलाएं पूरी विधि विधान के साथ मां दुर्गा की पूजा अर्चना करती हैं. इस दौरान थाल में सिंदूर, पान और मिठाई का भोग लगा कर उनकी पूजा करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शुभ कार्य करने के लिए पान और मीठे के भोग से मां को विदाई दी जाती है और अगले वर्ष जल्दी आने का न्योता दिया जाता है. मां को बताशे का भोग लगाया जाता है. यह वहां की परंपरा है.
पानी में विसर्जन के वक्त जाच्छे कोथाय नदीर धारे, आसबे कबे बछर पोरे..ये स्लोगन गाया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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