Maa Kushmanda: जो जैसा भी है उसे स्वीकार करके प्रेम करना सिखाती हैं मां कूष्मांडा - ब्रह्माकुमारीज

सुमन अग्रवाल | Updated:Sep 29, 2022, 09:48 AM IST

Maa Kushmanda हमें लोगों को प्रेम करना सिखाती हैं. ब्रह्माकुमारीज हमें रोज हर देवी के स्वरूप और उनकी शक्तियों के बारे में बताती है.

डीएनए हिंदी: Maa Kushmanda Power of Love and Acceptance- BK Yogesh- नवरात्रि के चौथे दिन (Nvaratri Foruth Day) देवी कूष्मांडा का पूजन होता है. कूष्मांडा शब्द कुष और अंड से मिलकर बना है. कुष अर्थात गर्माहट और अंड अर्थात जिसमें ब्रह्माण्ड को रचने की शक्ति हो. इस रूप में परमात्मा शिव की ही शक्ति है. अपनी मंद मुस्कराहट द्वारा ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण, देवी कूष्मांडा के नाम से प्रसिद्ध है. मां कूष्मांडा प्रख्यात वैष्णों देवी का ही स्वरूप हैं, मां वैष्णो नारी शक्ति का प्रतीक हैं, जो शिव से ज्ञान और योग की शक्ति प्राप्त कर आसुरी दैत्यों रूपी विषय विकारों का विनाश कर सद्गुणों को धारण करतीं और करातीं हैं. ब्रह्माकुमारीज की सीनियर राजयोगा टीचर बीके उषा हमें बताती हैं कि कैसे यह देवी हमें प्रेम करना और सभी को स्वीकार करना सिखाती हैं. 

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Power of Love and Acceptance 

डीटैचमेंट, लेट गो और पावर ऑफ टॉलरेट के बाद ये चौथी शक्ति हमारे अंदर आने लगती है. देवी हमें सिखाती हैं कि कैसे हर किसी को , जो जैसा भी है उसे स्वीकार करना चाहिए, उसे प्रेम से अपनाना चाहिए, किसी के बारे में नेगेटिव संकल्प चलाने से उस व्यक्ति तक हमारी वाइव्रेशन पहुंचती है. भले ही वो व्यक्ति हमारे हिसाब से नहीं चल रहा लेकिन हमें उसके व्यवहार को स्वीकार करना आना चाहिए, हमारे जीवन में ऐसी परिस्थितियां आती हैं जब हमारे हिसाब से कुछ सही नहीं हो रहा होता है, फिर भी हर हालातों को स्वीकार करके जीवन जीना और सही माइने में जीना ही शक्ति का प्रतीक है. 

क्या है देवी की कथा

जब सृष्टि पर कलयुग के समय चारों ओर अज्ञान का अंधकार होता है,तब ज्ञान सूर्य निराकार परमपिता परमात्मा शिव,ज्ञान की ऊष्मा से अज्ञानता को समाप्त कर ज्ञान की किरणों से विश्व को प्रकाशित करते हैं. सत्यम शिवम् सुंदरम शिव पिता अपने भाग्यशाली रथ जिन्हें वह प्रजापिता ब्रह्मा नाम देते हैं.  ज्ञान का कलश नारी शक्ति को प्रदान करते हैं, जो शिव शक्ति कहलाती हैं. इसीलिए इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा यानी आदि शक्ति कहा जाता है

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नारी शक्ति का प्रतीक हैं देवी

जिस नारी को अबला या ढोल गंवार, शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी कहकर, सम्बोधित किया गया, उसे ही शिव पिता ज्ञान के प्रकाश द्वारा उसकी सुषुप्त आतंरिक शक्तियों को जाग्रत करके सबला और स्वर्ग का द्वार बनाते हैं. उसे वन्दे मातरम् कहकर सम्बोधित करते हैं. परमात्मा शिव सबसे पहले हम मनुष्यात्माओं को "पवित्र भव, योगी भव" का वरदान देते हैं. वह अपनी ज्ञान मुरली द्वारा स्पष्ट करते हैं कि मुख्य रूप से काम विकार के कारण ही कभी देवी-देवता कहलाने वाली मनुष्यात्माएं, पतित-विकारी मनुष्यात्माएं बन गए. इसलिए श्रीमद्भागवत गीता में भी काम और क्रोध को नर्क का द्वार कहा गया है

नारी शक्ति का ही शास्त्रों में गायन है - यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति). अर्थात जहां नारी शक्ति की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां नारी शक्ति की पूजा नहीं होती अपितु भोग-विलास की वस्तु या जड़ वस्तु माना जाता है, वहाँ किये गये समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं. तो आईए देवी की पूजा ही नहीं करें बल्कि उस शक्ति को अपने जीवन में घारण भी करें 

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है

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