Sawan Puja 2022: MP के इस शिवलिंग का हर साल बढ़ता है आकार, जानिए इसके पीछे की अद्भुत कहानी

| Updated: Jul 19, 2022, 10:15 AM IST

Madhyapradesh के खजुराहो में एक ऐसा शिवलिंग है जिसका आकार हर साल बढ़ता है, जानिए इस शिवलिंग के पीछे की कहानी और क्या है इसका महत्व

डीएनए हिंदी: सावन (Sawan 2022) के महीने में भोलेनाथ (Lord Shiva) के भक्त उनके दर्शन करने के लिए दूर दूर जाते हैं. कई लोग तो 12 ज्योर्तिलिंगों के दर्शन भी करते हैं. सावन में शिवलिंगों का दर्शन करना बहुत ही शुभ माना जाता है. मान्यता है कि अगर इनके दर्शन किए तो मन इच्छा का फल प्राप्त होता है. मध्यप्रदेश (MP Shivling) में शिवलिंग तो कई हैं लेकिन खजुराहो में स्थित एक शिवलिंग है जो बहुत ही खास है.

आपको सुनकर चौंक जाएंगे कि इस शिवलिंग का आकार हर साल बढ़ता जाता है. आईए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं 

लगातार बढ़ने वाला शिवलिंग (Shivling turns bigger every year)

खजुराहो एक पर्यटन स्थल है और यहां शिव का प्राचीन मंदिर मातंगेश्‍वर है.इस मंदिर में जो शिवलिंग (Old Shivling) है उसका आकार काफी बड़ा है और खास बात है कि यह हर साल बढ़ता जाता है. इसकी ऊंचाई 9 मीटर है. इस शिवलिंग के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं.कहा जा रहा है कि यहां के इस शिवलिंग का आकार हर साल करीब एक इंच बढ़ता है. इस शिवलिंग को हर साल इंच टेप से नापा जाता है, जिससे इसके आकार के बढ़ने की पुष्टि होती है.इस शिवलिंग को लेकर यह भी दावा किया जाता है कि जितना यह शिवलिंग धरती के ऊपर है,उतना ही नीचे भी है. 

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मान्यता है कि इस मंदिर का ऊपरी हिस्‍सा स्‍वर्ग और निचला हिस्‍सा पाताल में है.यह मंदिर लक्ष्‍मण मंदिर के पास स्थित है और 35 फीट वर्गाकार है.मंदिर का गर्भगृह भी वर्गाकार है.इस मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब की तरफ है.इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि इसका निर्माण 900 से 925 ईसवीं के आसपास किया गया था तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अब तक इसका आकार कितना बढ़ गया होगा.  

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सावन में लगता है भक्तों का तांता (Pilgrims visit in Every Sawan)

सावन के महीने में इस मंदिर में शिव भक्तों का तांता लगा रहता है. शिव के भक्त बड़ी ही भक्ति से पूजा अर्चना करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी भी होती हैं. इस मंदिर को लेकर पौराणिक कथा है कि भगवान शिव के पास पन्ना रत्न था, जिसे उन्होंने युधिष्ठिर को दिया था.युधिष्ठिर से वह मणि मतंग ऋषि के पास पहुंची और उन्होंने उसे राजा हर्षवर्मन को दे दिया.राजा हर्षवर्मन ने इस मणि को जमीन में गाड़ दिया.जिससे यह शिवलिंग इस मणि के ऊपर प्रकट हुआ है. मतंग ऋषि के रत्न के कारण ही इसका नाम मातंगेश्वर महादेव (Matangeshwar Mahadev) पड़ा.

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