नागा बनने की अन्तिम प्रक्रिया में करना होता है खुद का पिंडदान, नागा साध्वियों के लिए ये 1 नियम है अलग

Written By नितिन शर्मा | Updated: Feb 29, 2024, 02:08 PM IST

Naga Sadhu बनने की प्रक्रिया बहुत ही कठिन है. महिला और पुरुष दोनों के लिए ही समान नियम होते हैं, बस महिलाओं के लिए एक नियम अलग होता है. Naga Sadhu की रहस्यमयी दुनिया की दूसरी कड़ी में इसी बारे में जानते हैं.

Naga Sadhu अक्सर पहाड़ की कुंद्राओं और अखाड़ों में ही रहते हैं. वे जब भी बाहर निकलते हैं तो वो झुंड में ही निकलते हैं. माघी मेला,  कुंभ से लेकर महाकुंभ (Mahakumbh) तक में नागा साधुओं के स्नान से लेकर उनके सड़क पर निकलने और ठहरने तक के लिए अलग व्यवस्था की जाती है. इनके शाही स्नान का आयोजन हमेशा पहले होता है. नागा साधु और साध्वियों (Naga Sadhu) के लिए अलग-अलग स्नान होते हैं. शाही व्यवस्था में शामिल होने से पहले नागाओं को एक कठिन दौर और परीक्षा से गुजरना होता है. पुरुष हों या महिला नागा, इन्हें समान रूप से नागा बनने के लिए कई परीक्षाओं के दौर से गुजरना होता है.  

यही कारण है कि ये आम संत समाज से अलग होते हैं और इनकी दीक्षा अखाड़ों में होती है. संतों के 13 अखाड़ों में 7अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं. जबकि 3 महिला नागाओं के लिए हैं. तो चलिए आज की कड़ी में आपको "नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया' से मिलवाएंगें और ये भी जानेंगे कि वो एक नियम क्या है जो महिलाओं के लिए अलग है. 

Naga Sadhu बनने की क्या है प्रक्रिया

7 अखाड़े ही नागा साधु बनाते हैं. इसमें जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा शामिल हैं. नागा साधु बनने की प्रक्रिया कठिन और 12 साल लंबी होती है. नागा साधुओं के पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में लगभग 6 साल लगते हैं. इस दौरान नए सदस्य एक लंगोट के अलावा कुछ नहीं पहनते. कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट भी त्याग देते हैं और जीवन भर नग्न  रहते हैं.


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जांच पड़ताल के बाद ही अखाड़े में मिलता है प्रवेश

अच्छी तरह जांच-पड़ताल के बाद ही नागा बनाने के लिए अखाड़े किसी को चुनते हैं. जो नागा बनना चाहता है उसे पहले लंबे समय तक ब्रह्मचारी के रूप में रहना होता है, फिर उसे महापुरुष तथा फिर अवधूत बनाया जाता है. अन्तिम प्रक्रिया महाकुंभ के दौरान होती है जिसमें उसका खुद का पिण्डदान तथा दण्डी संस्कार आदि कराया जाता है. इसे बिजवान कहा जाता है.

नागा साध्वी भी होती हैं शिव योगी

दरअसल नागा साधुओं की तरह ही महिला नागा साध्वियों का जीवन पूरी तरह से भगवान शिव को समर्पित होता है. यह दिन की शुरुआत पूजा पाठ और जप तप से करती हैं. पुरुष साधुओं की तरह ही यह भी भगवान शिव के शस्त्र और त्रिशूल को रखती हैं, जब एक महिला नागा साधु बन जाती है. तब सभी साधु और साध्वियां उन्हें माता कहकर पुकारते हैं. महिला नागा साधु माई बाड़ा अखाड़ा  से बनती हें. 


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महिला नागाओं के लिए अलग है ये नियम 

नागा साध्वी बनने के लिए महिलाओं को  पुरुषों के विपरीत अपने बाल तक मुंडवाने पड़ते हैं.  और इन्हें पुरुष नागाओं की तरह बिना वस्त्र के रहने की इजाजत नहीं होती है. नागा साध्वियों को एक गेरूआ बिना सिला हुआ वस्त्र धारण करना होता है. इससे वह अपने शरीर को ढंक सकती हैं. 

ये 3 अखाड़े बनाते हैं नागा ​साध्वी

माई बाड़ा एक अखाड़ा है. इसमें महिला नागा साधु रहती हैं. इसे 2013 के प्रयागराज कुंभ में विस्तृत रूप देकर दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा का नाम दे दिया गया है. यहां महिला नागा साध्वियों को दीक्षा दी जाती है. महिला साध्वियों को वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों ही सम्प्रदायों के अखाड़े नागा बनाते हैं. इनमें महिला नागा साध्वियों को अपने मस्तक पर एक तिलक लगाना होता है. 

नागा साधुओं के बाद कुंभ में स्नान करती हैं नागा साध्वी

कुंभ में सबसे पहले स्नान की अनुमति सिर्फ नागा साधुओं (Naga Sadhu) को होती है. इनके स्नान के बाद नागा साध्वी इसमें स्नान करती हैं. उन्हें अपना गेरुआ वस्त्र धारण करने के साथ ही स्नान करना होता है. इसके बाद वह अपने पूरे झुंड के साथ जप तप पर चली जाती हैं.

 Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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