Surya Uttarayan 2023: सूर्य का उत्तरायण होना क्यों है शुभ और महत्वपूर्ण? गीता के 8वें अध्याय में श्रीकृष्ण ने जानें क्या बताया है

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Jan 14, 2023, 09:25 AM IST

प्रतीकात्मक तस्वीर

Uttarayan 2023: उत्तरायण को देवताओं का दिन भी कहते हैं. उत्तरायण का न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी विशेष महत्व होता है.

डीएनए हिंदी: सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति (Makar Sankranti 2023) के रूप में मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के आठवें अध्याय में सूर्य उत्तरायण के महत्व को बताया है. मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं. जब सूर्य की गति दक्षिण की ओर से उत्तर की ओर होती है तो उसे उत्तरायण और जब उत्तर की ओर से दक्षिण की ओर होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है. शास्त्रों में सूर्य उत्तरायण काल को बहुत ही शुभ माना गया है. सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में होते हैं, तब उसे उत्तरायण कहा जाता है.

भारत में यह त्योहार सभी क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. गुजरात के लोग मकर संक्रांति को उत्तरायण (Uttarayan 2023) के रूप में मनाते हैं. उत्तरायण को बहुत ही शुभ माना जाता है. उत्तरायण (Uttarayan) का बहुत ही महत्व होता है इसे देवताओं का दिन भी कहते हैं. उत्तरायण (Uttarayan) का न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी विशेष महत्व होता है. तो चलिए उत्तरायण (Uttarayan 2023) से जुड़ी विशेष बातों के बारे में जानते हैं. 

सूर्य की इस स्थिति को कहते हैं उत्तरायण

सूर्य की दो स्थिति होती है इनमें से एक उत्तरायण (Uttarayan) और दूसरी दक्षिणायन होती है. यह दोनों ही 6-6 महीने की होती है. सूर्य जब उत्तर दिशा में गमन करते हुए मकर राशि से मिथुन राशि में भ्रमण करता है तो इसे उत्तरायण (Uttarayan) और दक्षिण की दिशा में कर्क से धनु में भ्रमण करते को दक्षिणायन (Dakshinayana) कहते हैं. उत्तरायण के दौरान दिन बड़े और रात छोटी होने लगती है जबकि दक्षिणायन में दिन छोटे और रात बड़ी होती है. 

यह भी पढ़ें - साल 2023 में किन राशियों को नहीं परेशान करेगी शनि की साढ़े साती, क्या है उपाय  

सूर्य का उत्तरी गोलार्ध में आना होता है शुभ

पृथ्वी दो गोलार्ध उत्तरी और दक्षिणि गोलार्ध में बंटी हुई है. भारत पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में है ऐसे में जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध में होने से यहां दिन बड़े होते हैं और फसलें को सूर्य का प्रकाश मिलने से वह जल्दी पक जाती हैं. समुद्रा का पानी भी भाप बनकर बारिश के रूप में गिरता है. इन कारणों से भी उत्तरायण को शुभ माना जाता है. 

देवताओं का दिन (Devtao Ka Din)

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा जाता है जबकि दक्षिणायन को देवताओं की रात कहते हैं. उत्तरायण के दौरान दिन में अधिक समय तक पृथ्वी पर सूर्य प्रकाश रहता है इसलिए इसे शुभ माना जाता है. मकर संक्रांति पर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने को अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का त्योहार माना जाता है. इस दौरान सूर्यदेव की पूजा का विशेष महत्व होता है. 

यह भी पढ़ें - Lohri Festival 2023: लोहड़ी से जुड़ी इन परंपराओं के बिना अधूरा रह जाएगा त्योहार, जानें किन परंपराओं का होता है खास महत्व

उत्तरायण को माना जाता है पुण्य काल (Punya Kaal)

उत्तरायण को देवताओं का समय माना जाता है साथ ही इसे पुण्य काल भी कहा जाता है. इस दौरान पुण्य के कार्य करना बहुत ही शुभ होता है. दान, यज्ञ जैसे मांगलिक कार्य इन दिनों शुभ माने जाते हैं. उत्तरायण काल में शरीर त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. 

श्रीकृष्ण ने बताया उत्तरायण का महत्व
गीता के 8वें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण द्वारा सूर्य उत्तरायण के महत्व का स्पष्ट उल्लेख मिलता है. श्रीकृष्ण कहते हैं- 'हे भरतश्रेष्ठ! ऐसे लोग जिन्हें ब्रह्म का बोध हो गया हो, अग्निमय ज्योति देवता के प्रभाव से जब छह माह सूर्य उत्तरायण होते हैं, दिन के प्रकाश में अपना शरीर त्यागते हैं, पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है. ऐसे योगी जो रात के अंधकार में, कृष्णपक्ष में और धूम्र देवता के प्रभाव से दक्षिणायन में अपने शरीर का त्याग करते हैं, वे चंद्र लोक में जाकर पुन: जन्म पाते हैं.

वहीं वेद-शास्त्रों के अनुसार, प्रकाश में अपना शरीर त्यागने वाले व्यक्तियों को पुन: जन्म नहीं लेना पड़ता है, जबकि अंधकार में मृत्यु को प्राप्त करने वाला व्यक्ति पुन: जन्म लेता है. यहां प्रकाश और अंधकार का तात्पर्य सूर्य उत्तरायण एवं दक्षिणायन से है. यही कारण है कि सूर्य के उत्तरायण के महत्व के कारण ही भीष्म ने अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति यानी कि सूर्य उत्तरायण के दिन को चुना था. छांदोग्य उपनिषद में भी सूर्य उत्तरायण के महत्व का वर्णन मिलता है.

इसलिए भीष्म पितामह ने भी उत्तरायण में त्यागे थे प्राण
महाभारत का युद्ध जिस समय हो रहा था उस दौरान सूर्य दक्षिणायन में था. भीष्म पितामह ने बाणों के शैय्या पर लेटे हुए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था क्योंकि उत्तरायण में प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. जब सूर्य मकर संक्रांति के दिन उत्तरायण हुए थे उसके बाद ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Uttarayan 2023 Uttarayan makar sankranti 2023 makar sankranti 2023 date Makar Sankranti