डीएनए हिंदीः देवभूमि में उत्तराखंड स्थित जोशीमठ धाम केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम का मुख्यद्वार है और अब ये दरक रहा है. जोशीमठ में बढ़ते ही जा रहे भूस्खलन से शहर के नष्ट होने का ही नहीं, इस बात का भी डर है कि अगर कई युगों पहले हुई भविष्यवाणी अगर सच हुई तो केदारनाथ और बद्रीनाथ भी लुप्त हो जाएंगे.
केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिर में मौजूद कई धार्मिक ग्रंथों में कुछ ऐसी घटनाएं होने की भविष्यवाणी का जिक्र है जो युगों पहले हो चुकी है. इन ग्रंथाें में उल्लेखित है कि जोशीमठ के नरसिंह मंदिर की मूर्ति धीरे-धीरे खंडित हो जाएगी और बद्रीनाथ व केदारनाथ जैसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल लुप्त हो जाएंगे.
बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम हो जाएंगे लुप्त
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक समय जब केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे हिंदुओं के मुख्य तीर्थ स्थल गुप्त हो जाएंगे तब भविष्य बद्रीनाथ नाम के एक नए तीर्थ का जन्म होगा.
जोशीमठ में कलियुग की भविष्यवाणी
जोशीमठ में स्थित नृसिंह मंदिर जहां भगवान बद्रीनाथ की शीतकालीन गद्दी है. यहां मंदिर में भगवान नृसिंह की एक प्राचीन मूर्ति है. भगवान नृसिंह की मूर्ति को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. दरअसल नृसिंह भगवान का एक बाजू सामान्य है जबकि दूसरा बाजू काफी पतला है और यह साल दर साल और पतला होता जा रहा है.
मान्यता है कि जिस दिन नृसिंह भगवान का पतला हो रहा हाथ टूट जाएगा उस दिन बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा. नर नारायण पर्वत एक हो जाएंगे. भगवान बद्रीनाथ के भक्त भगवान बद्रीनाथ के दर्शन उस मंदिर में नहीं कर पाएंगे जहां पर वर्तमान में भगवान बद्रीनाथ भक्तों को दर्शन दे रहे हैं. क्योंकि नर-नारायण पर्वत के मिल जाने से बद्रीनाथ धाम लुप्त हो जाएगा. इसके बाद से भगवान बद्रीनाथ के दर्शन भक्तों को भविष्य बद्री में मिल सकेगा.
भविष्य ब्रदी में होगा कभी भगवान का दर्शन
जोशीमठ से बद्रीनाथ का मार्ग जब नर नारायण पर्वत के मिल जाने से बंद हो जाएगा तब भगवान बद्रीनाथ भक्तों को भविष्य बद्री में दर्शन देंगे. यहां एक शिला है जिस पर अभी अस्पष्ट आकृति है कहते हैं कि भगवान की यह आकृति धीरे-धीरे उभर रही है. जिस दिन यह आकृति पूरी तरह से उभर कर आ जाएगी उस समय से बद्रीनाथ भगवान भविष्य बद्री में ही भक्तों को दर्शन देंगे.
रामायण और महाभारत काल से है इस पवित्र धाम का अस्तित्व
रामायण और महाभारत काल से ही केदारनाथ धाम के अस्तित्व माना जाता है. रामायण काल में हनुमानजी का आगमन हुआ था. लक्ष्मणजी जब मेघनाद के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए थे तब हनुमानजी संजीवनी बूटी की खोज में यहां आए थे.
हनुमानजी को रोकने के लिए रावण ने कालनेमि नामक असुर को भेजा. हनुमानजी ने जोशीमठ में ही कालनेमि का वध किया था. जहां पर कालनेमि को हनुमानजी ने मारा था वहां की जमीन आज भी लाल कीचड़ जैसी दिखती है.
महाभारत के युद्ध में महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडवों को इसी तीर्थ स्थल पर पूजा-पाठ करने की सलाह दी थी. देवतागण भी इसी तीर्थ स्थल पर भगवान शिव के दर्शन के लिए यात्रा करते हैं. महान धर्मगुरु आदिशंकराचार्य, राजा विक्रमादित्य, राजामिहिर भोज ने भी इस चमत्कारी तीर्थस्थल का जीर्णोद्धार कराया था.
बद्रीनाथ के विषय में यह बताया जाता है कि इस पवित्र धाम की स्थापना भगवान विष्णु के द्वारा की गई थी. इसी स्थान पर भगवान विष्णु 6 महीने के लिए आराम करते हैं. यही कारण है कि सृष्टि का बैकुंठ धाम भी कहा जाता है. साथ ही यह मान्यता भी है कि यह स्थान माता पार्वती एवं भगवान शिव का पहला निवास स्थान था.
इस तीर्थ स्थल का महत्व
बद्रीनाथ धाम में जिस मंदिर में लाखों श्रद्धालु दर्शन करते हैं, उस मंदिर को 15वीं शताब्दी में गढ़वाल के शासक द्वारा बनवाया गया था. मान्यता है कि जो भक्त केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम में भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही वह जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं. इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने भी यहां स्वर्ण कलश और छतरी दान किया था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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