डीएनए हिंदी: मंगलमूर्ति और विघ्नहर्ता गणपति का जन्म (Ganpati Janam) का जन्मोत्सव यानी गणेश चतुर्थी 31 अगस्त को मनाई जाएगी. इस बार गणपति की पूजा विशेष फल प्राप्त होगा क्योंकि गणेश चतुर्थी का शुभारंभ बुधवार से हो रहा है और बुधवार गणपति जी का दिन होता है. दिन पांच खास योग का संयोग बन रहा है.
इस दिन सबसे बड़ा योग बुधवार है. साथ ही चित्रा नक्षत्र, रवि, शुक्ल और ब्रह्मयोग का संयोग होना भी इस दिन के महत्व को बढ़ा रहा है. भादौ माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था. आइए जानते हैं मंगलमूर्ति के जन्म से जुड़ी कहानी के बारे में.
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उबटन से उत्पन्न हुए थे गणपति भगवान
शिवपुराण के अनुसार भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के उबटन से हुआ था. देवी ने अपने शरीर पर हल्दी का उबटन लगाया. उस उबटन को उतारने के बाद उसे इकट्ठा कर उससे एक पुतला बना दिया. फिर उस पुतले में प्राण डालें. इस तरह गणपति का जन्म हुआ. इसके बाद माता पार्वती ने लंबोदर को आदेश दिया कि तुम द्वार पर बैठो और किसी को अंदर आने मत देना.
कुछ देर बाद महादेव जब घर आए तो भगवान गणेश ने उन्हें प्रवेश करने से रोक दिया. जिससे भगवान शिव क्रोधित हो उठे. दोनों के बीच युद्ध हो गया. इस लड़ाई में शिवजी ने अपने त्रिशूल से गणपति की गर्दन काट दी. इसके बाद जब माता पार्वती ने अपने बेटे को इस हालत में देखा तो वह विलाप करने लगीं. देवी ने भोलेनाथ से कहा कि आपने मेरे संतान का सिर क्यों काटा. महादेव ने पूछा कि यह आपका पुत्र कैसे हो सकता है.
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जिसके बाद देवी पार्वती ने उन्हें पूरा किस्सा बताया और बेटे का सिर वापस लाने को कहा. तब भगवान शिव ने कहा कि मैं इसमें प्राण डाल दूंगा, लेकिन इसके लिए सिर की आवश्यकता होगी. जिसके बाद उन्होंने गरुड़ से कहा कि उत्तर दिशा में जाइए. वहां जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे का सिर ले आइए.
गरुड़ को भटकते हुए काफी समय हो गया. आखिरी में उन्हें एक हथिनी दिखी जो अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी. गरुड़ उस बच्चे का सिर ले आए. जिसके बाद महादेव ने वह सिर गणेश के शरीर से जोड़ दिया. उसमें प्राण डाल दिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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