डीएनए हिंदी: सावन में नाग पंचमी का बड़ा ही महत्व है. नाग पंचमी सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. इस दिन नाग देवता की विधि विधान से पूजा की जाती है. हिंदू धर्म के देवताओं के बीच नागों को एक विशेष स्थान दिया गया है. भगवान शिव से लेकर विष्णु जी तक नाग हर दम जुड़े रहे. यही वजह है कि नागों पूजा करना शुभ होता है. नाग की पूजा अर्चना करने से कुंडली के काल सर्प दोष से लेकर सर्प दंश से छुटकारा मिल जाता है.
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हर जगहों पर अलग तरीके से की जाती है पूजा
नाग पंचमी को देश के अलग अलग हिस्सों में अपने अपने तरीके से मनाया जाता है. दक्षिण भारत में नाग पंचमी के दिन लकड़ी की चौकी पर सांपों की प्रतिमा बनाकर उन्हें दूध और अर्पित किया जाता है. वहीं कुछ जगहों पर दीवार पर गेरू लगाकर पूजन का स्थान बनाया जाता है. यहां दीवार पर कच्चे दूध में कोयला घिसकर दीवार पर सांपों की आकृति बनाई जाती है. इसकी पूजा अर्चना की जाती है.
इन नागों की पूजा करने से कालसर्प और सर्प दंश से मिलेगा छुटकारा
कुंडली में कालसर्प और सर्प दंश योग व्यक्ति के जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित करता है. ऐसी स्थिति में नाग पंचमी पर इन नागों की पूजा करने से इन दोनों ही दोषों से मुक्ति मिल जाती है. हर काम में सफलता प्राप्त होती है. अगर आप भी कालसर्प दोष से पीड़ित हैं तो नाग पंचमी के दिन कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, र्कोटक, धनंजय, तक्षक और वासुकि नाग की पूजा अर्चना करें. ऐसा करने से जीवन पटरी पर आ जाएगा.
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नाग पंचमी पर ऐसे करें पूजा
नाग पंचमी पर नागों की पूजा अर्चना शुभ माना जाता है. कालसर्प और सर्प दंश झेल रहे लोगों को नागपंचमी के दिन पूजा जरूर करनी चाहिए, जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष नहीं प्रभावित कर रहा हैं. उन्हें भी पूजा करनी चाहिए. इसकी वजह नागों का सीधा संबंध राहु से होता है. ऐसे में नाग पंचमी के दिन पूजा करने पर आपका राहु भी शांत होता है. हालांकि पूजा करने से पहले राहु सर्प मुख जरूर देख लें. उसी के हिसाब से पूजा अर्चना करें.
कुंडली में देख लें काल सर्प मुख
ज्योतिषाचार्य प्रीतिका मोजुमदार के अनुसार, अगर आपकी कुंडली में राहु सर्प का मुख और केतु सर्प की पूंछ है तो मुख की तरफ से पूजा करें. ऐसे में सबसे पहले एक वर्ग बना लें. इस वर्ग में ईशान कोण यानि उत्तर-पूर्व दिशा में वासुकि नाग की पूजा करें. पूर्व में तक्षक की, दक्षिण-पूर्व में कालिय की और दक्षिण में मणिभद्र नाग की पूजा करें. वहीं दक्षिण-पश्चिम में ऐरावत की, पश्चिम में ध्रतराष्ट्र की और उत्तर-पश्चिम में कर्कोटक की पूजा करें. वहीं उत्तर में धनंजय नाग की पूजा करनी चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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