रंग नहीं, चिता की राख से होली खेलते हैं Naga Sadhu, जानें क्या हैं ये अनूठी परंपरा

Written By नितिन शर्मा | Updated: Mar 02, 2024, 04:45 PM IST

Naga Sadhu शरीर पर भस्म लपेटकर दिन-रात सालों जप करते हैं. लेकिन एक दिन ऐसा होता है, जब नागा साधु मस्त मलंग होकर भस्म से ही होली खेलते हैं. Naga Sadhu की रहस्यमयी दुनिया की आखिरी कड़ी में आइए जानते हैं इनकी होली आम लोगों से कैस अलग होती है.

देश और दुनिया में होली (Holi Festival) रंग और गुलाल की होती है, लेकिन नागा साधुओं (Naga Sadhu Real Life) की होली कुछ अलग होती है. सांसारिक मोह-माया से दूर ये नागा साधु (Naga Sadhu) भी होली मनाते हैं लेकिन बिलकुल अलग तरीके से.

होली से कुछ दिन पहले ही नागा भारी संख्या में मोक्ष की नगरी काशी में जमा होते हैं. यहां शिव भक्त नागा अपनी होली मनाते हैं. इनकी होली खेलने की अनूठी परंपरा है और यहां नागा साधु चिता की भस्म से होली खेलते हैं. आइए जानते हैं ''नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया'' में कैसे नागा साधु और शिव भक्त श्मशान की राख से तैयार भस्म से होली खेलते हैं. होली से पहले मणिकर्णिका घाट पर मसान की होली खेली जाती है. 


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मोक्ष की नगरी कही जाने वाली काशी में नागा साधु अद्भुत, अकल्पनीय और बेमिसाल होली खेलते हैं. वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर ​होरियारों की हुड़दंग और जोश त्योहार शुरू होने से पहले ही दिखने लगता है. काशी के मर्णिकर्णिका घाट में रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भस्म या मसान होली खेली जाती है, जहां नागा साधु एकत्र होकर भस्म और मसान से होली खेली जाती है. इसे यह भगवान शिव का त्योहार मानते हैं. 

जलती चिता की भस्म से खेलते हैं होली

नागा साधु रंगों के त्योहार होली पर जलती चिता की राख से होली खेलते हैं. यह होली श्मशान में खेली जाती है. जहां राख को उड़ाने के साथ ही एक दूसरे को लेप की तरह लगाया जाता है. इसके लिए अलग-अलग अखाड़ों में रहने वाले नागा महा श्मशान मर्णिकर्णिका घाट पर सुबह एकत्र होने लगते हैं. यहां शिव भक्त अड़भंगी अंदाज से फागुवा गीत गाते हैं और जन्म और मृत्यु दोनों का ही उत्सव मनाते. मध्याह्न में बाबा के स्नान का वक्त होता है तो इस वक्त यहां नागा साधुओं का उत्साह अपने चरम पर होता है.


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आखिर क्यों मनाई जाती है भस्म होली और परंपरा

हिंदू वेदपुराण और शास्त्रों के अनुसार, होली के त्योहार पर बाबा विश्वनाथ देवी देवता, यक्ष, गन्धर्व से लेकर भगवान शिव के भक्त भूत, प्रेत, पिशाच और अदृश्य शक्तियां यहां होली खेलती हैं. इन्हें बाबा इंसानों के बीच जाने से रोककर रखते हैं. माना जाता है कि भगवान शिव अपने सभी भूत प्रेम और शक्तियों के साथ होली खेलने घाट पर आते हैं. महादेव शिवशंभू अपने गणों के साथ चिता की राख से होली खेलने आते हैं. इसी दिन से चिता की राख से होली खेलने की परंपरा शुरू हुई. हर साल यहां नागा साधु आकर होली खेलते हैं. 

चिताओं की राख का किया जाता है इस्तेमाल

मणिकर्णिका घाट को सबसे बड़ा श्मशान घाट माना जाता है. यही वजह है कि होली के त्योहार पर नागा साधु यहां होली खेलने पहुंचते हैं और रंगों की जगह चिता, हवनकुंड और यज्ञ की राख से होली खेली जाती है.यह परंपरा यहां हजारों सालों से चली आ रही है. 

 Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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