डीएनए हिंदी: आज नवरात्रि का छठा दिन है. इस दिन मां दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इनकी पूजा से व्यक्ति को अपनी सभी इंद्रियों को वश में करने की शक्ति प्राप्त होती है. धर्म शास्त्रों की मानें तो ऋषि कात्यायन के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण ही माता का नाम कात्यायनी पड़ा. सच्चे मन से माता की पूजा करने से रोग, शोक और भय से छुटकारा मिलता है.
माता के इसी स्वरूप में महिषासुर दानव का वध किया था, इसलिए मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है. सच्चे मन से माता की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं दूर होती हैं. यह दिन खास तौर पर विवाह योग्य कन्याओं के लिए बेहद शुभ माना जाता है, माता की पूजा-अर्चना करने से मनोकामना की पूर्ति होती है.
ऐसे करें देवी की पूजा (Chaitra Navratri 2022 Maa Katyayani Puja Vidhi)
- सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नानादि कर सभी नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं.
- फिर देवी की तस्वीर या मूर्ति को एक चौकी पर स्थापित करें.
- एक पुष्प हाथ में लें और मां के मंत्र का जाप करें.
- इसके बाद फूल को मां के चरणों में चढ़ाएं.
- देवी को लाल वस्त्र, 3 हल्दी की गांठ, पीले फूल, फल, आदि अर्पित करें.
- मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं. इससे मां प्रसन्न हो जाती हैं.
- इसके बाद दुर्गा चालिसा का पाठ करें.
- मां के मंत्रों का जाप करें और आरती का पाठ करें.
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देवी कात्यायनी का मंत्र (Maa Katyayani Mantra)
कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते॥
चन्द्रहासोज्जवलकरा शाईलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां कात्यायनी की स्तुति (Maa Katyayani Stuti)
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कात्यायनी की कथा (Chaitra Navratri 2022 Maa Katyayani Vrat Katha)
पौराणिक कथाओं अनुसार, एक प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती जगदम्बा को पुत्री के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की थी. कठिन तपस्या के पश्चात् महर्षि कात्यायन के यहां देवी जगदम्बा ने पुत्री रूप में जन्म लिया और वे मां कात्यायनी कहलाईं. इनका प्रमुख गुण खोज करना था. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं. कहा जाता है कि नवरात्रि के दिन इनकी पूजा करने से साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है.
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