Navratri : आज 7वें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा, पढें स्त्रोत-बीज मंत्र, लगाएं ये भोग

Written By ऋतु सिंह | Updated: Oct 02, 2022, 07:00 AM IST

नवरात्रि में आज 7वें दिन मां कालरात्रि की करें ऐसे पूजा

Navratri Day 7: ननवरात्रि में आज रविवार को 7वें दिन देवी कालरात्रि की पूजा होती है. मां की पूजा से भूत-पिशाच सहित अन्य बुरी चीजों से छुटकारा जाता है.

डीएनए हिंदीः नवरात्रि के सप्तमी तिथि को मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा करने का विधान है. आज दुर्गा पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की आंखों की पट्टियां भी खोली जाएंगी. मान्यता है कि मां का काले स्वरूप के कारण ही इनका नाम कालरात्रि पड़ा. इन्हें तमाम आसुरिक शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है. कालरात्रि होने के कारण ऐसा विश्वास है कि ये अपने उपासकों को काल से भी बचाती हैं अर्थात् उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती. 

इन्हें सभी सिद्धियों की भी देवी कहा जाता है, इसलिए सभी तंत्र मंत्र के उपासक इस दिन इनकी विशेष रूप से पूजा करते हैं. इनके नाम के उच्चारण मात्र से ही भूत, प्रेत, राक्षस, दानव और सभी पैशाचिक शक्तियां भाग जाती हैं. माना जाता है कि इस दिन इनकी पूजा करने वाले साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित होता है. इनकी पूजा में गुड़ के भोग का विशेष महत्व है.

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मां कालरात्रि का स्वरूप

मां कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और चार हाथ हैं. ऊपर वाला दाहिना हाथ वरद मुद्रा में और नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है. वहीं बाई ओर का एक हाथ में लोहे का कांटा लिया हुआ है और एक में खड़ग लिए हुए है. वहीं मां का वाहन गधा है.

मां कालरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. पूजा के समय मां को फूल, सिंदूर, कुमकुम, रोली आदि चढ़ाएं. इसके साथ ही नींबू से बना हुआ माला पहनाएं और फिर गुड़ या इससे बनी हुई चीजों का भोग लगाएं. इसके बाद कपूर, घी का दीपक आदि जलाकर मंत्र का जाप करें. इसके बाद दुर्गा चालीसा, दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के बाद विधिवत तरीके से कालरात्रि मां की आरती कर लें और अपनी भूल चूक के लिए क्षमा मांग लें.

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मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

स्तोत्र मंत्र

हीं कालरात्रि श्रींकराली चक्लींकल्याणी कलावती.

कालमाताकलिदर्पध्नीकमदींशकृपन्विता॥

कामबीजजपान्दाकमबीजस्वरूपिणी.

कुमतिघन्कुलीनार्तिनशिनीकुल कामिनी॥

क्लीं हिं श्रींमंत्रवर्णेनकालकण्टकघातिनी.

कृपामयीकृपाधाराकृपापाराकृपागमा॥
 

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