डीएनए हिंदीः प्रथम दिन नवरात्रि का देवी शैलपुत्री का होता है. घटस्थापन के बाद मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा-अर्चना और आरती के साथ देवी के भोग औ कथा के बारे मे चलिए, विस्तार से जानें. शैल का अर्थ है हिमालय और पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है.
पार्वती के रूप में इन्हें भगवान् शंकर की पत्नी के रूप में भी जाना जाता है. वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है.
मां शैलपुत्री का स्वरूप :
माता आदि शक्ति ने अपने इस रूप में शैल हिमालय के घर जन्म लिया था, इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प होता है .
माँ दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ में देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक पढ़ें-
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी.
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ..
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च.
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ..
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:.
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ..
मां शैलपुत्री का मंत्र:
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्.
वृषारूढ़ां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
अर्थात् मैं मनोवांछित लाभ के लिये अपने मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली, वृष पर सवार रहने वाली, शूलधारिणी और यशस्विनी मां शैलपुत्री की वंदना करता हूं.
मंत्र - या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
मां शैलपुत्री का भोग :
मां शैलपुत्री के चरणों में गौघृत अर्पित करने से भक्तों को आरोग्य और दीर्घ आयुका आशीर्वाद मिलता है और उनका मन एवं शरीर दोनों ही निरोगी रहता है.इसके साथ ही गौघृत का अखंड दीपक भी जलाते हैं |
मां शैलपुत्री की आरती:
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा मूर्ति .
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥1॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को .
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥2॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै.
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥3॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी .
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥4॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती .
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥5॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती .
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥6॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू.
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥7॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी.
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥8॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती .
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥9॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै .
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥10॥
देवी शैलपुत्री की कथा
एक बार राजा प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया जिसमें शिवजी को निमंत्रण नहीं दिया. इस बात की जानकारी सती को हुई, तो उनका मन विकल हो उठा. उन्होंने भगवान शिव को इस बारे में बताया. तब शंकर जी ने कहा कि प्रजापति दक्ष उनसे किसी कारण से नाराज हैं, इसलिए यज्ञ में नहीं बुलाए हैं. बिना निमंत्रण वहां जाना ठीक नहीं है.
सती नहीं मानीं और उस यज्ञ में चली गईं. वहां जाने पर उनको अपनी गलती का एहसास हुआ क्योंकि सभी लोग उनको अनदेखा कर रहे थे, कोई ठीक से बात भी नहीं कर रहा था. मां ने बस प्रेम से उनको गले लगाया. लोगों के इस व्यवहार से सती और दुखी हो गईं.
वहां पर उनका और उनके पति भगवान शंकर का तिरस्कार हो रहा था. दक्ष ने उनको कटु वचन भी बोले. तब सती का मन क्रोध से भर गया. शिव जी के रोकने के बाद भी वह अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने आई थीं. क्रोध और ग्लानि के वशीभूत उन्होंने स्वयं को उस यज्ञ की अग्नि में जलाकर भस्म कर दिया.
इससे शंकर जी भी उद्वेलित हो गए और उन्होंने उस यज्ञ को भी तहस नहस कर दिया. फिर वही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लीं. वही ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं. उनको पार्वती और हैमवती नाम से भी जाना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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