डीएनए हिंदीः मां ब्रह्माचारिणी के नाम में ही उनकी शक्तियों की महिमा का वर्णन मिलता है. ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली. अर्थात तप का आचरण करने वाली शक्ति को हम बार-बार नमन करते हैं. माता के इस स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होती है. जीवन के कठिन से कठिन समय में भी इंसान अपने पथ से विचलित नहीं होता है. आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी के इस स्वरूप के बारे में और पूजा विधि, मंत्र और महत्व…
ऐसा है मां का स्वरूप
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित ब्रह्मचारिणी आंतरिक जागरण का प्रतिनिधित्व करती हैं. मां सृष्टि में ऊर्जा के प्रवाह, कार्यकुशलता और आंतरिक शक्ति में विस्तार की जननी हैं. ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं. इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे में कमंडल है. यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त हैं. भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं. ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है. अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं.
माता ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
माता ब्रह्मचारिणी को तप की देवी माना जाता है. हजारों वर्षों कठिन तपस्य करने के बाद माता का नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था. तपस्या की इस अवधि में उन्होंने कई सालों तक निराहार व्रत किया था, जिससे देवों के देव महादेव प्रसन्न हुए थे. शिवजी ने प्रसन्न होकर माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया था.
यह है मां ब्रह्मचारिणी देवी का पूजा मंत्र…
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
दधाना कपाभ्यामक्षमालाकमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा.
मां ब्रह्मचारिणी का पसंदीदा भोग
देवी का पसंदीदा भोग चीनी और मिश्री है, इसलिए मां को भोग में चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग जरूर लगाएं. इसके अलावा मां ब्रह्मचारिणी को दूध और दूध से बने व्यंजन अति प्रिय होते हैं. ऐसे में आप उन्हें दूध से बने व्यंजनों का भोग लगा सकते हैं.
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है. सुबह शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की उपासना करें और मां की पूजा में पीले या सफेद रंग के वस्त्र का उपयोग करें. माता का सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं, इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें. माता को दूध से बनी चीजों का ही भोग लगाएं. इसके साथ ही मन में माता के मंत्र या जयकारे लगाते रहें. इसके बाद पान-सुपारी भेंट करने के बाद प्रदक्षिणा करें. फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें. घी और कपूर से बने दीपक से माता की आरती उतारें और दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें. पाठ करने के बाद सच्चे मन से माता के जयकारे लगाएं. इससे माता की असीम अनुकंपा प्राप्त होगी.
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करना बहुत सरल है और उससे भी सरल है इनको प्रसन्न करना. मां ब्रह्मचारिणी को सच्ची श्रद्धा से अगर बुलाया जाए तो वह तुरंत आ जाती हैं. मां दुर्गा का यह स्वरूप अनंत फल देने वाला माना गया है. मां की पूजा करने से ज्ञान की वृद्धि होती है और सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है. माता ब्रह्मचारिणी ने अपने तप के माध्यम से ही हजारों राक्षसों का अंत किया था. तप करने से इनको असीम शक्ति प्राप्त हुई थी. मां अपने भक्तों पर हमेशा कृपा बनाए रखती हैं और आशीर्वाद देती हैं.
माता के आशीर्वाद से हर कार्य पूरे हो जाते हैं और परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है. माता की आराधना करने से जीवन में संयम, बल, सात्विक, आत्मविश्वास की वृद्धि होती है. माता की शक्ति के प्रभाव से तन-मन के सभी दोष दूर होते हैं और जीवन में उत्साह व उमंग के साथ-साथ धैर्य व साहस का समावेश होता है. मां दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप दिव्य और अलौकिक प्रकाश लेकर आता है.
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता.
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता.
ब्रह्मा जी के मन भाती हो.
ज्ञान सभी को सिखलाती हो.
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा.
जिसको जपे सकल संसारा.
जय गायत्री वेद की माता.
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता.
कमी कोई रहने न पाए.
कोई भी दुख सहने न पाए.
उसकी विरति रहे ठिकाने.
जो तेरी महिमा को जाने.
रुद्राक्ष की माला ले कर.
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर.
आलस छोड़ करे गुणगाना.
मां तुम उसको सुख पहुंचाना.
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम.
पूर्ण करो सब मेरे काम.
भक्त तेरे चरणों का पुजारी.
रखना लाज मेरी महतारी.
ऐसे पड़ा ब्रह्मचारिणी की उत्पति कथा
हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा. उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है. अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न कर लिया. इनके इसी रूप की पूजा और स्तवन दूसरे नवरात्र पर किया जाता है.
हजारों वर्षों तक की थी मां ने तपस्या
आचार्य बालकृष्ण मिश्रा के मुताबिक, देवी ब्रह्मचारिणी भगवती दुर्गा की नव शक्तियों में इनका दूसरा रूप माना जाता है. शास्त्रों में ऐसा उल्लेख आया है कि माता ब्रह्मचारिणी पूर्व जन्म में राजा हिमालय के घर मैना के गर्भ से उत्पन्न हुईं. देवर्षि नारद के कहने पर माता ब्रम्हचारिणी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में जाकर हजारों वर्ष केवल फल का खाकर कठिन तपस्या की. पुनः शिव को विशेष प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मचारिणी ने 3000 वर्ष तक वृक्षों से गिरे सूखे पत्तों को खाकर कठिन तपस्या की.
अनेक सिद्धि होती हैं प्राप्त
ब्रह्मचारिणी मां की उपासना एवं आराधना करने से भक्तों को अनेक प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती हैं, जैसे तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार इत्यादि की वृद्धि होती है. इनकी कृपा से भक्तों को सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है एवं जीवन की अनेक प्रकार की परेशानियां भी समाप्त हो जाती हैं. माता ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला, बाएं हाथ में कमंडल.