हिंदू धर्म की तिथि से लेकर व्रत में एकादशी का बड़ा महत्व है. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से जीवन में पाप और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है. व्यक्ति की आर्थिंक स्थिति में सुधार होता है. परिवार पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. इससे जीवन से कष्टों का निवारण होता है. साथ ही पापों से मुक्ति मिल जाती है. इन्हीं में आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का और भी बड़ा महत्व होता है. इसे पापांकुश एकादशी कहा जाता है. इस एकादशी पर व्रत करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन विष्णु चालीसा के पाठ करने का बड़ा महत्व है. आइए जानते हैं पापांकुशा एकादशी कब है और इसकी विष्णु चालीसा का पाठ...
इस दिन है पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi 2024 Date)
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी तिथि पापांकुशा एकादशी कहा जाता है. इस दिन व्रत करना बेहद शुभदायक होता है. इस साल पापांकुशा एकादशी की तिथि 13 अक्टूबर की सुबह 9 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर अगले दिन 14 अक्टूबर की सुबह 6 बजकर 41 मिनट पर खत्म होगी. ऐसे में 14 अक्टूबर को ही पापांकुशा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की जाएगी. इसके साथ ही व्रत का संकल्प लें.
विष्णु चालीसा पाठ से मिलती है कृपा (Vishnu Chalisa Blessings)
भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति के लिए पापांकुशा एकादशी पर पूजा अर्चना और व्रत संकल्प के साथ ही विष्णाु चालीसा का पाठ जरूर करें. इससे भगवान विष्णु के साथ ही मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. विष्णु चालीसा के पाठ को परम कल्याणकारी माना जाता है. इससे सभी कष्ट और संकट दूर हो जाते हैं.
श्री विष्णु चालीसा (Vishnu Chalisa)
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय.
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय.
चौपाई
नमो विष्णु भगवान खरारी.
कष्ट नशावन अखिल बिहारी..
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी.
त्रिभुवन फैल रही उजियारी..
सुन्दर रूप मनोहर सूरत.
सरल स्वभाव मोहनी मूरत..
तन पर पीतांबर अति सोहत.
बैजन्ती माला मन मोहत..
शंख चक्र कर गदा बिराजे.
देखत दैत्य असुर दल भाजे..
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे.
काम क्रोध मद लोभ न छाजे..
संतभक्त सज्जन मनरंजन.
दनुज असुर दुष्टन दल गंजन..
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन.
दोष मिटाय करत जन सज्जन..
पाप काट भव सिंधु उतारण.
कष्ट नाशकर भक्त उबारण..
करत अनेक रूप प्रभु धारण.
केवल आप भक्ति के कारण..
धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा.
तब तुम रूप राम का धारा..
भार उतार असुर दल मारा.
रावण आदिक को संहारा..
आप वराह रूप बनाया.
हरण्याक्ष को मार गिराया..
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया.
चौदह रतनन को निकलाया..
अमिलख असुरन द्वंद मचाया.
रूप मोहनी आप दिखाया..
देवन को अमृत पान कराया.
असुरन को छवि से बहलाया..
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया.
मंद्राचल गिरि तुरत उठाया..
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया.
भस्मासुर को रूप दिखाया..
वेदन को जब असुर डुबाया.
कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया..
मोहित बनकर खलहि नचाया.
उसही कर से भस्म कराया..
असुर जलंधर अति बलदाई.
शंकर से उन कीन्ह लडाई..
हार पार शिव सकल बनाई.
कीन सती से छल खल जाई..
सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी.
बतलाई सब विपत कहानी..
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी.
वृन्दा की सब सुरति भुलानी..
देखत तीन दनुज शैतानी.
वृन्दा आय तुम्हें लपटानी..
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी.
हना असुर उर शिव शैतानी..
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे.
हिरणाकुश आदिक खल मारे..
गणिका और अजामिल तारे.
बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे..
हरहु सकल संताप हमारे.
कृपा करहु हरि सिरजन हारे..
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे.
दीन बन्धु भक्तन हितकारे..
चहत आपका सेवक दर्शन.
करहु दया अपनी मधुसूदन..
जानूं नहीं योग्य जप पूजन.
होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन..
शीलदया सन्तोष सुलक्षण.
विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण..
करहुं आपका किस विधि पूजन.
कुमति विलोक होत दुख भीषण..
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण.
कौन भांति मैं करहु समर्पण..
सुर मुनि करत सदा सेवकाई.
हर्षित रहत परम गति पाई..
दीन दुखिन पर सदा सहाई.
निज जन जान लेव अपनाई..
पाप दोष संताप नशाओ.
भव-बंधन से मुक्त कराओ..
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ.
निज चरनन का दास बनाओ..
निगम सदा ये विनय सुनावै.
पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै..
(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)
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