डीएनए हिंदीः पौष मास की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी का व्रत आज यानी सोमवार 02 जनवरी 2023 को रखा जा रहा है. इसे वैकुंठ एकादशी के नाम से भी जाना जता है. मान्यता है कि इस एक मात्र एकादशी का करने भर से ही हजारों साल की तपस्या के समान फल की प्राप्ति होती है.
पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की दीर्घायु और स्वस्थ स्वास्थ्य हेतु रखा जाता है. वैसे तो यह व्रत साल में दो बार रखा जाता है. पहली पुत्रदा एकादशी पौष मास में पड़ती है और दूसरी सावन मास में. एकादशी व्रत को तभी पूर्ण माना जाता है जब इसकी कथा का वाचन या श्रवण किया जाए. तो चलिए जानें पुत्रदा एकादशी की कथा क्या है.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)
धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताते हैं. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- पौष मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं. इसमें भगवान नारायण की पूजा होती है. भगवान कृष्ण कहते हैं- इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है. मैं एक कथा कहता हूं सो तुम (युधिष्ठिर) ध्यानपूर्वक सुनो.
भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नामक राजा का राज्य था. राजा बहुत दयालु स्वभाव का था. लेकिन उसे कोई संतान नहीं थी, जिस कारण राजा और उसकी पत्नी हमेशा चिंतित रहते थे. राजा को सदैव यह विचार आता था कि उसकी मृत्यु के बाद उसका और पूर्वजों का पिंडदान कौन करेगा. बिना संतान के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका पाऊंगा. राजा इस चिंता को लेकर दिन रात दुखी रहता था.
एक दिन राजा अपने घोड़े पर चढ़कर वन की ओर गए. वन में एक सरोवर के पास राजा ने मुनियों को देखा और उन्हें दंडवत प्रणाम कर वहीं बैठ गए. राजा को देख मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं. तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो. राजा ने कहा, महाराज आप कौन हैं और किसलिए यहां आए हैं.
मुनि ने कहा, हे राजन! आज संतान प्राप्ति वाली एकादशी ‘पुत्रदा एकादशी’ है. हम विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं. यह सुनकर राजा ने मुनियों से कहा कि, महाराज मुझे भी कोई संतान नहीं है. यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो संतान का वरदान दीजिए. मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इस व्रत को करें. इस व्रत को करने से भगवान की कृपा से आपके घर में अवश्य ही पुत्र का जन्म होगा.
मुनि की बातें सुनकर राजा ने उसी दिन विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का व्रत किया और अगले दिन पारण करने और मुनियों को प्रणाम कर वापस महल आ गए. कुछ समय बीतने के बाद रानी गर्भवती हो गई और नौ महीने बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया.
श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर से बोले- हे राजन! संतान प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए. जो व्यक्ति व्रत रख कर इस माहात्म्य कथा को पढ़ता या सुनता है उसे संतान की प्राप्ति होती है और अंत वह स्वर्ग को प्राप्त करता है.
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