Pitru Paksha 2022: पितृपक्ष का किस्सा जुड़ता है कर्ण से, मृत्यु के बाद 15 दिन के लिए धरती पर आए थे सूर्यपुत्र

डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated:Sep 12, 2022, 04:31 PM IST

दानवीर कर्ण से जुड़ा है पितृपक्ष का इतिहास

महाभारत के समय मे कर्ण की मृत्यु के बाद देवराज इंद्र ने पितरों को भोजन कराने के लिए कर्ण को अनुमति दी तब से पितृपक्ष की शुरुआत हुई.यह है पूरा इतिहास

डीएनए हिंदीः पितृपक्ष के समय में लोग अपने पितरों को याद कर उनकी आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना करते हैं. इस (Pitru Paksha 2022) दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण जैसे महत्वपूर्ण कर्म किए जाते हैं. माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पूर्वज अलग अलग रूप में धरती पर अपने परिवार के पास आते हैं और प्रसन्न होने पर परिवार को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. पितृपक्ष (Pitru Paksha) का दिन पितरों को समर्पित होता है इस दौरान पितरों को पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण करने की प्रथा सदियों से चली आ रही है. 

पितृपक्ष 15 दिनों तक चलता है यह भादप्रद की पूर्णिमा से शुरू हो कर कृष्ण पक्ष को अमावश्या को समाप्त होता है. इस दौरान 15 दिनों के लिए पूर्वज अन्न-जल ग्रहण करने पृथ्वी पर आते हैं. 

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दानवीर कर्ण से जुड़ा है पितृपक्ष का इतिहास 

महाभारत (Mahabaharata)  में युद्ध के दौरान जब दानवीर कर्ण  (Danveer Karn) की मृत्यु हो गई तब स्वर्ग में उन्हें भोजन के स्थान पर खाने के लिए सोना और आभूषण दिया गया. दानवीर कर्ण ने अपने जीवन मे बहुत दान किया था इसलिए कर्ण को दानवीर कर्ण कहा जाता है. स्वर्ग में भोजन के स्थान पर सोना व आभूषण देख कर्ण निराश हो गए और देवराज इंद्र से इसका कारण पूछा. देवराज इंद्र ने जवाब देते हुए कहा कि आपने अपने पूरे जीवन मे सिर्फ सोना और आभूषण दान किया लेकिन कभी आपने अपने पितरों को अन्न-जल दान नही किया इसलिए आपको भोजन में सोना और आभूषण ही दिया जा रहा है.

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कर्ण ने कहा कि मैं अपने पूर्वजों के बारे में नही जानता इसलिए मैंने कभी पितरों को भोजन दान नही किया. यह सुनकर देवराज इंद्र ने कर्ण को 15 दिन के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी साथ ही अपने पूर्वजों को भोजन दान करने की आज्ञा दी तब से इस 15 दिन की अवधि को पितृपक्ष के रूप में पितरों को अन्न-जल दान करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण समय माना जाने लगा. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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