डीएनए हिंदीः हिंदू धर्म मे श्राद्ध का अलग महत्व है. पितृपक्ष (Pitru Paksha 2022) के दौरान पितरों की आत्मा की संतुष्टि और उनका आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध किया जाता है. मान्यता है इस दौरान पितर कौओं के रूप में पृथ्वी पर आकर परिजनों द्वारा किए गए श्राद्ध का भोजन ग्रहण करते हैं. इसलिए कहा जाता है पितृपक्ष में कौओं को भोजन अवश्य देना चाहिए इससे श्राद्ध का भोजन सीधा पितरों तक पहुंचता है लेकिन पिछले कुछ सालों से कौओं की संख्या में कमी आई है जिसके कारण श्राद्धपक्ष (Shradh 2022) में कौओं को भोजन कराना काफी मुश्किल हो गया है.
आम दिनों में दो-चार कौए लोगों के घरों के आस पास दिख जाते हैं लेकिन श्राद्ध पक्ष में ढूंढने पर भी कहीं कौए नजर नहीं आ रहे हैं. आमतौर पर पीपल के पेड़ पर या अन्य स्थानों पर कौए दिखाई देते थे उस दौरान हाथ मे भोजन लेकर कौओं को आवाज देने पर कौए आकर भोजन कर लिया करते थे. लेकिन अब कौओं के न आने पर भी लोग छत की मुंडेर या मंदिर के छत पर उनके लिए भोजन डाल देते हैं और श्राद्ध की परंपरा निभाते हैं.
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लुप्त हो रहे हैं कौए
जानकारों की मानें तो शहरों की बढ़ती आबादी और खेतों में फसल उगाने के लिए पेस्टीसाइड के बढ़ते प्रयोग से जीवों में संकट गहरा रहा है. पेस्टीसाइड भोजन करने वाले जीवों की मृत्यु के बाद उन्हें चील या कौए खा लेते हैं जिसके कारण उनकी भी मौत हो जाती है. इसी वजह से कौओं की संख्या में कमी आ रही है औऱ वह धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं.
कौए को मिला था यमराज का वरदान
माना जाता है कि पूर्वजों को अन्न और जल कौओं के माध्यम से ही प्राप्त होता है इसलिए पितृपक्ष के दौरान कौओं को भोजन देना अनिवार्य माना जाता है. गरुड़ पुराण में कौए को यमराज का संदेश वाहक बताया गया है. कौओं को यमराज ने एक विशेष वरदान दिया था.
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कहा जाता है कि कौओं को यह वरदान मिला था कि उनको भोजन कराने से पूर्वजों की आत्मा को शांति व तृप्ति मिलेगी. इसलिए पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध में कौओं को भोजन दिया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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