डीएनए हिंदी : पितृपक्ष के दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध व पिंडदान किया जाता है. इस दौरान पितरों का श्राद्ध करने से परिवार में यश, कीर्ति, सफलता और धन-धान्य आदि बना रहता है. कहा जाता है कि श्राद्ध करने से पितरों के ऋण से मुक्ति मिलती है. अमूमन पितृपक्ष (Pitru paksha 2022) के दौरान पिंडदान, श्राद्ध आदि का काम पुरुष ही करते हैं लेकिन कुछ विशेष स्थिति में यह कार्य महिलाएं भी करती हैं. श्राद्ध पितरों को संतुष्ट करने के लिए किया जाता है. पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध (shradh) करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
गरुड़ पुराण में श्राद्ध के महत्व और उससे जुड़े कुछ नियम बताए गए हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार विशेष स्थिति में महिलाएं भी श्राद्ध व पिंडदान कर सकती हैं.
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इस स्थिति में महिलाएं करती हैं श्राद्ध व पिंडदान
गरुड़ पुराण के अनुसार अगर किसी व्यक्ति का कोई पुत्र नही होता है तो इस स्थिति में परिवार की महिलाएं अपने पितरों का श्राद्ध व पिंडदान कर सकती हैं. इस स्थिति में पुत्री, पत्नी और बहू पितरों का श्राद्ध कर सकती हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार पुत्र न होने की स्थिति में अगर पुत्री सच्ची श्रद्धा से अपने पितरों का श्राद्ध करती है तो पितृ उसे स्वीकार कर लेते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
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श्राद्ध करते समय महिलाएं रखें इन खास बातों का ध्यान
श्राद्ध कर्म करते समय महिलाओं को सफेद व पीले रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध कर्म करना चाहिए. कुश, जल और काले तिल के साथ तर्पण न करें. अगर श्राद्ध की तिथि याद नहीं है तो बुजुर्ग महिला और पुरुष का नवमी को और बच्चों का पंचमी में श्राद्ध करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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