Pitru Paksha 2023: इस स्थिति में महिलाएं भी कर सकती हैं पितरों का श्राद्ध, ये है पिंडदान की विधि

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: Sep 20, 2023, 07:08 PM IST

महिलाएं भी कर सकती हैं पितरों का श्राद्ध, ये है पिंडदान की विधि

Shradh Niyam: गरुड़ पुराण के अनुसार, कुछ विशेष स्थिति में महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं. यहां जानिए इसके बारे में..

डीएनए हिंदीः हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक पितृपक्ष रहता है और इस दौरान पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इस दौरान पितर धरती पर आते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. ऐसी मान्यता है कि पिता या पुत्र ही पितरों का पिंडदान या श्राद्ध कर सकते हैं. लेकिन ऐसा नहीं (Pitru Paksha 2023) है, कुछ विशेष परिस्थियों में महिलाएं भी पिंडदान कर सकती हैं. इसका वर्णन गरुड़ पुराण में मिलता है. बता दें कि गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाले कई नियम बताए गए हैं, जिनमें पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण से भी जुड़े कई नियम बताए गए हैं. आइए जानते हैं उन विशेष परिस्थितियों के बारे में, जब महिलाएं भी पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान कर सकती हैं...

महिलाएं कब कर सकती हैं पिंडदान

गरुड़ पुराण के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति के पुत्र नहीं हैं तो ऐसे में परिवार की महिलाएं भी अपने पूर्वजों का श्राद्ध या पिंडदान कर सकती हैं. पुत्र न होने के बावजूद महिलाएं सच्चे मन से पितरों का पिंडदान करती हैं तो पितरों का आशीर्वाद जरूर मिलता है. इतना ही नहीं, पिंडदान के दौरान अगर घर के पुरुष किसी कारणवश वहां मौजूद नहीं हैं तो इस स्थिति में भी महिलाएं श्राद्ध या पिंडदान कर सकती हैं.

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माता सीता ने भी किया था पिंडदान

शास्त्रों में इस बात का प्रमाण मिलता है कि पुरुष के उपस्थित न होने पर फल्गु तट पर स्थित सीता कुंड के पास माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. मान्यताओं के अनुसार माता सीता ने इस पिंडदान का साक्षी फल्गु नदी, केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष को बनाया था.

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जान लें पिंडदान की विधि (Pind Daan Vidhi)

पिंडदान का अर्थ होता है अपने पितरों को भोजन का दान देना और पिंडदान के दौरान मृतक व्यक्ति के निमित्त जौ या चावल के आटे को गूंथ कर गोल आकृति वाले पिंड बनाए जाते हैं. इसलिए ही इसे पिंडदान कहा जाता है. बता दें कि पितृ पक्ष के दौरान भोजन के पांच अंश अपने पितरों के लिए निकालने का विधान है. मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज गाय, कुत्ता, कुआं, चींटी या देवताओं के रूप में आकर हमारे द्वारा दान किया गया भोजन ग्रहण करते हैं.(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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