Pitru Paksha 2022: देवी सीता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान, जानें उस जगह का नाम और महत्व

Written By ऋतु सिंह | Updated: Sep 10, 2022, 03:11 PM IST

देवी सीता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान, जानें उस जगह का नाम और महत्व

Devi Sita Dhashrath Shraddha: क्या आपको पता है कि देवी सीता ने अपने ससुर राजा दशरत का श्राद्ध किया था? इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है, चलिए जानें.

डीएनए हिंदीः भगवान श्रीराम के रहते हुए भी देवी सीता ने अपने ससुर का गया में श्राद्ध किया था. ऐसा क्या वजह थी कि देवी को अपने पति भगवान राम के रहने के बाद भी अपने ससुर का पिंडदान करना पड़ा था, चलिए जानें. 

हिंदू धर्म में पितृपक्ष के दौरान पिंडदान का विशेष महत्व होता है और मान्यता है कि पुत्र ही माता-पिता का पिंडदान करता है. उसके न रहने पर ये अधिकार नाती-पोते पत्नी या बहू को होता है. तो मां सीता ने किन परिस्थितियों में अपने ससुर का पिंडदान किया और किस स्थान पर किया चलिए इसके बारे में पूरी जानकारी दें.

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गया में माता सीता ने किया था पिंडदान
पितृपक्ष हरिद्वार, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर सहित कई स्थान पर किया जाता हैं, मान्यता है कि यहां श्रद्धापूर्वक पिंडदान करने से पूर्वज को मोक्ष मिल जाता है. लेकिन गया में पिंडदान करने का महत्व अधिक बताया जाता है.

गयाजी में पिंडदान करने का जिक्र रमायण में भी किया गया है. गयाजी में किए गए श्राद्ध की महिमा का गुणगान भगवान राम ने भी किया है. यहां माता सीता ने भी अपने ससुर राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था. मान्यता है कि एक परिवार से कोई एक ही 'गया' करता है. गया करने का मतलब होता है, गया में पितरों को पिंडदान करना.

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वाल्मिकी रामायण में जिक्र है कि सीता ने राजा दशरथ का पिंडदान किया था और राजा दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिला था. वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे. वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने के लिए श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चले गए थे.


तभी सीता ने दशरथ का पिंडदान गयाजी में किया था. स्थल पुराण की एक पौराणिक कहानी के मुताबिक राजा दशरथ की मौत के बाद भरत और शत्रुघ्न ने अंतिम संस्कार की हर विधि को पूरा किया था. लेकिन राजा दशरथ को सबसे ज्यादा प्यार अपने बड़े बेटे राम से था इसलिए अंतिम संस्कार के बाद उनकी चिता की बची हुई राख उड़ते-उड़ते गया में नदी के पास पहुंची.

उस वक्त राम और लक्ष्मण वहां मौजूद नहीं थे और सीता नदी के किनारे बैठी विचार कर रहीं थी. तभी सीता को राजा दशरथ की छवि दिखाई दी पर सीता को यह समझने में ज़रा सी भी देर नहीं लगी कि राजा दशरथ की आत्मा राख के ज़रिए उनसे कुछ कहना चाहती है. राजा ने सीता से अपने पास समय कम होने की बात कहते हुए अपने पिंडदान करने की विनती की. उधर दोपहर हो गई थी. पिंडदान का कुतप समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी.

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पिंडदान के साक्षी बनें थे ये

सीता ने राजा दशरथ की राख को मिलाकर अपने हाथों में उठा लिया. इस दौरान उन्होने वहां मौजूद फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को इस पिंडदान का साक्षी बनाया. पिंडदान करने के बाद जैसै ही श्रीराम और लक्ष्मण सीता के करीब आए,तब सीता ने उन्हें ये सारी बात बताई. लेकिन राम को सीता की बातों पर यकीन नहीं हुआ. जिसके बाद सीता ने पिंडदान में साक्षी बने पांचों जीवों को बुलाया.

लेकिन राम को गुस्से में देखकर फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी और ब्राह्मण ने झूठ बोलते हुए ऐसी किसी भी बात से इंकार कर दिया. जबकि अक्षय वट ने सच बोलते हुए सीता का साथ दिया. तब गुस्से में आकर सीता ने झूठ बोलने वाले चारों जीवों को श्राप दे दिया. जबकि अक्षय वट को वरदान देते हुए कहा कि तुम हमेशा पूजनीय रहोगे और जो लोग भी पिंडदान करने के लिए गया आएंगे. उनकी पूजा अक्षय वट की पूजा करने के बाद ही सफल होगी.

 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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