डीएनए हिंदी: अयोध्या में श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा के लिए तैयारियां जोर शोर से चल रही है. इसको लेकर देश भर में उत्साह का माहौल है. हर कोई भगवान श्रीराम के पूजन की तैयारी कर रहा है. इसबीच अयोध्या राम मंदिर में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही उनकी पूजा अर्चना विधि विधान के साथ रामानंदी परंपरा से होगी. इसके लिए पूरा शेड्यूल तैयार कर लिया गया है. भगवान की पूजा से लेकर उन्हें भोग प्रसाद लगाने और दर्शनों की विशेष तैयारी कर ली गई है. हालांकि इसमें साफ कर दिया गया है कि भक्त अपनी तरफ से भगवान को कोई प्रसाद नहीं चढ़ाएंगे. उन्हें दर्शन के बाद ट्रस्ट की तरफ से प्रसाद वितरण किया जाएगा.
रामानंदी परंपरा से होगी श्रीराम की पूजा
श्री राम जन्मभूमि ट्रस्ट के अनुसार, श्रीराम की पूजा अर्चना रामानंदी परंपरा से ही की जाएगी. बताया जाता है कि अयोध्या के ज्यादातर मंदिरों में रामानंदी परंपरा प्रद्धती से ही पूजा की जाती है. अयोध्या में श्री राम की रामानंदी परंपरा से पूजा की एक प्रचलित कथा है. बताया जाता है आज से पूर्व 14वीं शताब्दी में स्वामी रामानंदाचार्य के धार्मिक प्रचार-प्रसार से हिंदू धर्म पर होने वाले मुगलकालीन आक्रांताओं के हमलों से बचाने की मुहिम चलाई गई थी. रामानंदाचार्य ने वैष्णव, शाक्त और शैव इन तीनों धार्मिक परंपराओं को प्रचार अभियान का साधन बनाया है. इसमें श्री राम और माता सीता को अपना ईष्ट आराध्य मानकर पूजा की जाती है.
दक्षिण के वैष्णव संत स्वामी रामानुजाचार्य की पूजा परंपरा में भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी को ईष्ट आराध्य माना जाता है. श्री राम और माता सीता को इन्हीं का अवतार माना जाता है. यही वजह है कि अयोध्या के तोताद्रि मठ, कौशलेश सदन और अशर्फी भवन सहित ज्यादातर मठों में रामानुजाचार्य परंपरा से भी पूजा होती है. रामानंदाचार्य प्रयागराज के रहने वाले थे और काशी में संन्यासी जीवन बिताया था. इसलिए वह परंपरा को उत्तर भारत में स्थान मिला.
यह है श्री राम के जगाने से लेकर शयन का पूरा विधि विधान
रामानंदी परंपरा में रामलला की पूजन पद्धति अलग भाव की रहती है. 32 साल साल से वह इसी पद्धती से श्री राम की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. यहां राम की बालक स्वरूप में पूजा होती है. पूजन में लालन-पालन, खान-पान और पसंद का ध्यान रखा जाता है. पुजारी के अनुसार, प्रभु श्री राम के बाल स्वरूप को शयन से उठाने के बाद चंदन और शहद से स्नान कराया जाएगा. दोपहर के समय विश्राम और शाम के समय भाग आरती के बाद शयन तक की कुल 16 मंत्रों की प्रक्रिया पूरी कराई जाएगी. भगवान श्रीराम के अनुष्ठान उनके बाल स्वरूप को ध्यान में रखकर संरक्षक बनकर किए जाते हैं. इसे भव्य रूप देने की तैयारी की जा रही है.
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