Vivah Panchami Katha: सच्चा प्यार चाहिए तो आज के दिन पढ़ें रामचरितमानस की चौपाई और सुनें राम सीता के स्वयंवर की कथा

Written By सुमन अग्रवाल | Updated: Nov 28, 2022, 11:23 AM IST

Vivah Panchami Ram Sita Marriage Katha: विवाह पंचमी के दिन ये कथा जरूर सुनें और प्यार पाने के लिए चौपाई भी जरूर पढ़ें

डीएनए हिंदी: Vivah Panchami Ram Sita Marriage Katha- विवाह पंचमी का दिन प्रेमी प्रेमिका और शादी शुदा दंपती के लिए बहुत ही खास है, आज के दिन अगर कुछ उपाय किए जाएं तो आपको आपका प्रेम मिल जाएगा. साथ ही शादी से जुड़ी अगर कोई बाधा है तो वो भी दूर हो जाएगी. अगर आप किसी को दिलों जान से चाहते हैं तो आपको सच्चा प्यार मिल जाएगा. विवाह पंचमी के दिन रामचरितमानस से इस दोहे का पाठ जरूर करें और आज के दिन राम सीता की विवाह से जुड़ी ये कथा भी सुनें 

जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू, सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू' रामचर‍ित मानस के इस चौपाई का पाठ दांपत्‍य जीवन को सुखमय बनाने के लिए जरूर करें. इसके अलावा इस चौपाई का पाठ करने से आपको मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति होगी. इसका मतलब है कि अगर आप किसी को सच्चे मन से चाहेंगे, तो वह आपको अवश्य मिलेगा. यह सीता-स्वयंवर से संबंधित प्रसंग है. सीता राम को चाह रही हैं, किंतु कभी आंशका होती है कि कहीं वे स्वयंवर की शर्त को पूरा करने से चुक न जाएं. शंका स्वाभाविक है, पर शीघ्र उन्हें अपने प्रेम, चाह, स्नेह पर पूरा भरोसा हो जाता है. ईश्वर को पाने के लिए सच्ची श्रद्धा, अनन्य भक्ति, पूर्ण विश्वास एवं गहरी आस्था चाहिए, तभी उनके दर्शन हो सकते हैं. राम सीता ने पति पत्नी के रूप में एक मिसाल कायम की है.

माता सीता और भगवान राम के विवाह की कथा (Vivah Panchami Kath in Hindi)

हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन विवाह पंचमी का पर्व मनाया जाता है. विवाह पंचमी तिथि पर भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था. इस साल 28 नवंबर 2022 को विवाह पंचमी है. आज के दिन विधि विधान के साथ धूमधाम से इनका विवाह हुआ था. इस दिन सभी को इनके विवाह से जुड़ी ये कथा जरूर सुननी चाहिए. 

प्रचलित कथाओं के अनुसार, एक बार राजा जनक हल चला रहे थे, उस समय उन्हें धरती से एक कन्या की प्राप्ति हुई इस कन्या का नाम ही उन्होंने सीता रखा, राजा जनक देवी सीता को पुत्र रूप में पाकर अति प्रसन्न हुए और बहुत ही प्रेम के साथ उन्होंने माता सीता का पालन-पोषण किया. एक बार माता सीता ने भगवान शिव का धनुष उठा लिया, इस धनुष को उठाने का सामर्थ्य परशुराम जी के अलावा किसी और में नहीं था. ये देख राजा जनक समझ गए कि ये कोई साधारण बालिका नहीं है और उन्होंने उसी समय निर्णय लिया कि जो भी शिव जी के इस धनुष को उठा लेगा उसी के साथ वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे

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जब देवी सीता विवाह के योग्य हुई तो राजा जनक ने उनके लिए स्वयंवर रखा और यह घोषणा कर दी कि जो भी इस धनुष को उठाकर प्रत्युंचा चढ़ा देगा वे उसी के साथ अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे. महर्षि वशिष्ठ के साथ भगवान राम और लक्ष्मण जी भी स्वयंवर में उपस्थित थे. स्वयंवर आरंभ होने के बाद कोई भी उस धनुष को उठा नहीं पाया तो राजा जनक अत्यंत निराश हुए और बोले कि क्या कोई भी ऐसा नहीं है जो मेरी पुत्री के योग्य हो, तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की आज्ञा दी. उनकी आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और धनुष टूट गया. तब राजा जनक ने श्री राम जी से सीता का विवाह करा दिया। इस प्रकार माता सीता और भगवान राम का विवाह हो गया। आज भी उन्हें एक आदर्श दंपत्ति माना जाता है

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 


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