हमारे सुख-दुख का सारथी, जो किसी भी कठिन परिस्थिति में हमारे साथ मजबूती से खड़ा रहता है या कोई कुछ भी साझा करने के बारे में नहीं सोच सकता, दोस्ती ही सही रिश्ता है. कहते हैं दोस्ती का कोई दिन नहीं होता, हर दिन फ्रेंडशिप डे होता है.
दोस्ती जिंदगी का सबसे अनमोल रिश्ता है. इस अनमोल दिन को मनाने के लिए हर साल अगस्त के पहले रविवार को फ्रेंडशिप डे के रूप में मनाया जाता है. इस साल भारत में यह दिन 4 अगस्त को मनाया जाएगा. आइए इस फ्रेंडशिप डे के मौके पर पौराणिक काल की गहरी दोस्ती के बारे में जानें.
श्रीकृष्ण- सुदामा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन में सांदीपनि मुनि के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त की थी. उसी समय उनकी मित्रता सुदामा से हुई जो एक ब्राह्मण परिवार से थे. सुदामा बहुत गरीब थे जबकि श्रीकृष्ण राजपरिवार से थे. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने आश्रम छोड़ दिया. सुदामा की स्थिति दिन-ब-दिन गरीबी की ओर बढ़ती जा रही थी.
इसी तरह एक बार सुदामा की पत्नी जिद करने लगी कि श्रीकृष्ण के पास जाकर मदद मांगो. उसी समय सुदामा ने श्रीकृष्ण से मिलने जाने का निश्चय किया. सुदामा के द्वारका पहुंचने पर द्वारपालों ने उन्हें रोक दिया. उन्होंने कहा कि मैं श्रीकृष्ण का बचपन का मित्र हूं. द्वारपाल ने अंदर जाकर कहा कि साधु आपको बालमित्र बुला रहे हैं. अपना नाम सुनते ही श्री कृष्ण नंगे पैर दरवाजे की ओर दौड़ पड़े. श्रीकृष्ण ने सुदामा को कसकर गले लगा लिया. सुदामा को महल में ले जाकर श्रीकृष्ण ने पूछा कि मेरे लिए क्या लाए हो. सुदामा उनके लिए कच्चा पोहा लेकर गए थे. श्रीकृष्ण ने उनके सामने ही चाव से पोहा खाया. सुदामा बिना कोई मदद मांगे घर वापस चले गए.
लौटते समय सुदामा सोच रहे थे कि वह अपनी पत्नी से क्या कहे. लेकिन घर पहुंचकर सामने का दृश्य देखकर सुदामा की आंखें फटी की फटी रह गईं. एक टूटी हुई झोपड़ी का सुन्दर महल नजर आया. उसमें से एक सुन्दर स्त्री निकली, वह सुदामा की पत्नी थी. उन्होंने कहा कि यह आपके बाल मित्र के कारण संभव हो सका. सुदामा अपने मित्र को याद करके रोने लगे. यह स्पष्ट हो गया कि एक सच्चा मित्र बिना कुछ कहे ही दिल की बात कैसे जान लेता है.
श्रीराम और सुग्रीव
त्रेता युग में जब हनुमान के कारण श्री राम और सुग्रीव में मित्रता हो गई, तब श्री राम ने वादा किया कि वह बाली से सुग्रीव का राज्य वापस दिलाएंगे. उस समय सुग्रीव ने देवी सीता की खोज में सहायता करने का वचन दिया. श्रीराम ने बलि का वध करके अपना वचन पूरा किया और सुग्रीव को राजा बनाया. लेकिन, राजा बनने के बाद सुग्रीव अपना वादा भूल गया. तब लक्ष्मण ने क्रोधित होकर उन्हें उनका वादा याद दिलाया. तब सुग्रीव ने देवी सीता की खोज में सहायता की. उनकी दोस्ती से हमें एक बात हमेशा सीखने को मिलती है कि हमें दोस्ती में किया हुआ वादा कभी नहीं भूलना चाहिए.
कर्ण- दुर्योधन
महाभारत में दुर्योधन और कर्ण अच्छे मित्र थे. लेकिन जब दुर्योधन ने बुरा काम किया, तब भी कर्ण ने उसे ऐसा करने से नहीं रोका. सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र को गलत कार्य करने से रोकता है. लेकिन युद्ध में किसी सहयोगी की मदद करते समय गलतियों पर ध्यान नहीं दिया जाता. महाभारत में दुर्योधन की गलतियों ने उसके पूरे वंश को नष्ट कर दिया. कर्ण धर्म और अधर्म को जानता था लेकिन फिर भी उसने अपने मित्र दुर्योधन को अधर्म करने से नहीं रोका, इस प्रकार उसने न केवल अपने मित्र को बल्कि स्वयं को भी नष्ट कर लिया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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