Ram Mandir: क्षमा याचना कर गण्डकी नदी से निकाला गया रामलला की मूर्ति के लिए पत्थर, 6.5 करोड़ साल पुराना पाषाण है बहुत खास 

ऋतु सिंह | Updated:Jan 30, 2023, 10:32 AM IST

Ram Mandir: क्षमा याचना कर गण्डकी नदी से निकला गया रामलला की मूर्ति के लिए ये पत्थर

रामलल्ला के दर्शन साल 2024 में आम जनता के लिए खोल दिए जाएंगें और मंदिर निर्माण के क्रम में एक और अध्याय रामलल्ला की प्रतिमा से भी जुड़ने जा रहा है.

डीएनए हिंदीः अयोध्या में बन रहे भगवान राम के मन्दिर में रामलला के बाल स्वरूप की मूर्ति को बनाने के लिए साढ़े 6 करोड़ साल पुराने पत्थर को अयाेध्या लाया जा रहा है. ये पत्थर भी कोई सामान्य नहीं है, बल्कि इसका  ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व जानकर आप हैरान रह जाएंगे. बता दें कि ये पत्थर नेपाल के म्याग्दी जिला के बेनी से पूजा पाठ और पूरे विधि विधान अयोध्या ले जाया जा रहा है.

रामल्ला की प्रतिमा के लिए काली गण्डकी नदी के किनारे से पत्थर निकाला गया है और बता दें कि गण्डकी नदी नेपाल की पवित्र नदी है जो दामोदर कुण्ड से निकल कर भारत में गंगा नदी में मिलती है. इसी नदी किनारे से शालिग्राम के पत्थर मिलते हैं. इन पत्थरों की आयु करोड़ों वर्ष बताई जाती है और ये सिर्फ यहीं पाए जाते हैं.

अयोध्या में राम के मन्दिर में रामलला के बाल मूर्ति लगाने के लिए भी इसी दुर्लभ पत्थर को चुना गया है और इस पत्थर को लाने से पहले विधिवत पूजा-पाठ और क्षमा याचना भी की गई है, क्योंकि ये कोई आम पत्थर नहीं है बल्कि उसका ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है. नेपाल के म्याग्दी जिला के बेनी से पूरे विधि विधान और हजारों लोगों की श्रद्धा के बीच उस पवित्र पत्थर को अयोध्या ले जाया जा रहा है.

रामलल्ला की प्रतिमा के लिए इस पत्थर को लाने से पहले म्याग्दी में पहले शास्त्र सम्मत क्षमापूजा की गई, फिर जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल विशेषज्ञों की देखरेख में पत्थर की खुदाई की गई. अब उसे बड़े ट्रक से इसे पूरे राजकीय सम्मान के साथ आयोध्या लाया जा रहा है.

करीब सात महीने पहले नेपाल के पूर्व उपप्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री बिमलेन्द्र निधि ने राम मन्दिर निर्माण ट्रस्ट के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था, उसी समय से इसकी तैयारी शुरू कर दी गई थी. सांसद निधि ने ट्रस्ट के सामने यह प्रस्ताव रखा कि अयोध्याधाम में जब भगवान श्रीराम का इतना भव्य मन्दिर का निर्माण हो ही रहा है तो जनकपुर के तरफ से और नेपाल के तरफ से इसमें कुछ ना कुछ योगदान होना ही चाहिए.

मिथिला में बेटियों की शादी में ही कुछ देने की परम्परा नहीं है, बल्कि शादी के बाद भी अगर बेटी के घर में कोई शुभ कार्य हो रहा हो या कोई पर्व त्यौहार हो रहा हो तो आज भी मायके से हर पर्व त्यौहार और शुभ कार्य में कुछ ना कुछ संदेश किसी ना किसी रूप में दिया जाता है. इसी परम्परा के तहत बिमलेन्द्र निधि ने भारत सरकार के समक्ष भी यह इच्छा जताई और अयोध्या में बनने वाले राममंदिर में जनकपुर का और नेपाल का कोई अंश रहे इसके लिए प्रयास किया.

भारत सरकार और राममंदिर ट्रस्ट की तरफ से हरी झण्डी मिलते ही हिन्दू स्वयंसेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद नेपाल के साथ समन्वय करते हुए यह तय किया गया कि चूंकि अयोध्या का मंदिर दो हजार वर्षों के लिए किया जा रहा है तो इसमें लगने वाली मूर्ति उससे अधिक साल तक चलने वाले पत्थर से ही बनेगी. इसके लिए नेपाल सरकार ने कैबिनेट बैठक से काली गण्डकी नदी के किनारे रहे शालीग्राम के पत्थर को भेजने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी. इस तरह के पत्थर को ढूंढने के लिए नेपाल सरकार ने जियोलॉजिकल और आर्किलॉजिकल सहित वाटर कल्चर को जानने समझने वाले विशेषज्ञों की एक टीम भेजकर पत्थर का चयन किया.

पत्थर को वहां से उठाने से पहले विधि विधान के हिसाब से पहले क्षमा पूजा की गई, फिर क्रेन के सहारे पत्थर को ट्रक पर लादा गया. एक पत्थर का वजन 27 टन बताया गया है, जबकि दूसरे पत्थर का वजन 14 टन है. पोखरा में गण्डकी प्रदेश सरकार के तरफ से मुख्यमंत्री खगराज अधिकारी ने इसे जनकपुरधाम के जानकी मंदिर के महन्थ को विधिपूर्वक हस्तांतरित किया है. हस्तांतरण करने से पहले मुख्यमंत्री और प्रदेश के अन्य मंत्रियों ने इस शालिग्राम पत्थर का जलाभिषेक किया. नेपाल के तरफ से अयोध्या के राम मंदिर को यह पत्थर समर्पित किए जाने पर सभी काफी उत्साहित दिखे.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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