Chaturmas 2023: 19 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, इस बार 4 नहीं 5 महीने का होगा चातुर्मास, जानिए शुभ तिथि और महत्व 

Written By डीएनए हिंदी वेब डेस्क | Updated: May 20, 2023, 03:17 PM IST

19 साल बाद बन रहा दुर्लभ संयोग, इस बार 4 नहीं 5 महीने का होगा चातुर्मास

Chaturmas 2023 Date: इस बार चातुर्मास 4 नहीं बल्कि 5 महीने का होगा, ऐसा दुर्लभ सयोंग सालों बाद बन रहा है. यहां जानिए कब से होगा शुरू...

डीएनए हिंदी: हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास शुरू (Chaturmas 2023) हो जाता है. चातुर्मास हर साल देवशयनी एकादशी से शुरू होती है और देवोत्थान एकादशी पर समाप्त होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पूरे चार माह के लिए योग निद्रा में होते हैं. लेकिन इस बार भगवान विष्णु 5 महीने तक योगनिद्रा में रहेंगे. ऐसे में। इस दौरान इस दौरान गृह प्रवेश, मुंडन,विवाह, जनेऊ संस्कार आदि जैसे शुभ-मांगलिक कार्य नहीं होंगे. आइए जानते हैं इस बार कब से शुरू हो रहा है चातुर्मास और कब होगा इसका समापन...

कब से कब तक चलेगा चातुर्मास

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, इस बार अधिकमास के चलते चातुर्मास की अवधि एक महीने अधिक होगी. इसलिए इस बार चातुर्मास 148 दिन का होगा और 29 जून 2023 से शुरू होकर 23 नवंबर 2023 तक रहेगा.

क्या है चातुर्मास का महत्व

चातुर्मास में ही भगवान शिव का सबसे प्रिय महीना सावन   आता है और इस 4 महीने की अवधि में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक मास लगते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में तप, साधना और उपवास रखने से बहुत जल्दी लाभ मिलता है. साथ ही चातुर्मास आषाढ़ शुक्ल की एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तक चलता है. 

नहीं होंगे मांगलिक कार्य

साथ ही चातुर्मास के दौरान विवाह, मुंडन, जनेऊ संस्कार, विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण जैसे मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इसके अलावा इस दौरान सभी कार्य शुभ मुहूर्त और तिथि पर किए जाते हैं. साथ ही भगवान विष्णु के शयन मुद्रा में जाने के कारण कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है. 

इसके अलावा शास्त्रों में बताया गया है कि हर शुभ कार्य में भगवान विष्णु समेत सभी देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है और इन महीनों में सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस कम हो जाता है. यही कारण है कि चातुर्मास के दौरान संतजन यात्रा नहीं करते हैं और वह अपने आश्रम या मंदिर में व्रत और साधना का पालन करते हैं. साथ ही इस अवधि में यात्राएं रोककर संत एक ही स्थान पर रहकर व्रत, ध्यान और तप करते हैं.