Ravivar ke Upay: रविवार के दिन इन उपायों को आजमाने से ही प्रसन्न हो जाएंगे सूर्यदेव, हर काम में मिलेगी सफलता

नितिन शर्मा | Updated:Sep 22, 2024, 08:57 AM IST

ग्रहों के राजा सूर्यदेव का कुंडली में उच्च स्थान पर होना बेहद शुभ होता है. अगर आप जीवन में कष्ट या तरक्की के बीच बाधा से जूझ रहे हैं तो सूर्यदेव के इन उपायों को आजमा सकते हैं. 

अक्सर लोग रविवार के दिन को छुट्टी के रूप लेते हैं. हिंदू धर्म में यह दिन ग्रहों के राजा सूर्यदेव को समर्पित होता है. इस दिन सूर्यदेव को जल देने के साथ ही पूजा अर्चना और कुछ उपाय करने से सूर्यभगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इन्हें करने मात्र से किस्मत चमक जाती है. हर काम में सफलता मिलने के साथ ही व्यक्ति शिखर पर पहुंच जाता है. आइए जानते हैं वो आसान से उपाय, जिन्हें करने से प्रसन्न हो जाएंगे सूर्यदेव...

सूर्योष्टकम का पाठ करें

धार्मिंक मान्यताओं के अनुसार, अगर नौकरी या करियर से संबंधित समस्याओं से परेशान हैं तो रविवार के दिन सूर्योष्टकम का पाठ करें. यह बेहद लाभकारी सिद्ध होता है. इस पाठ को करने से पूर्व व्यक्ति को सुबह उठकर स्नान करना चाहिए. इसके बाद जल में रोली, लालचंदन और लाल पुष्प पानी में डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें. ज्योतिषाचार्य के अनुसार, जो भी व्यक्ति इस पाठ को नियमित रूप से करता है. उस व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. 

सूर्यदेव के इन मंत्रों का करें जाप

ॐ घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः 
ॐ सूर्याय नम: 
ॐ घृणि सूर्याय नम: 
ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ 

यह है श्री सूर्याष्टकम्

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥1॥

सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥2॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥3॥

त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥4॥

बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥5॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥6॥

तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥8॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम्।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत्॥9॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता॥10॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति॥11॥

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.)  

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