डीएनए हिंदी- अमरनाथ को हिन्दू समाज का सबसे प्रमुख तीर्थ स्थल माना जाता है. अमरनाथ में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग बनता है, लगभग एक महीने चलने वाली अमरनाथ यात्रा के दौरान लाखों श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन करने दूर दूर से पहुंचते हैं,ये यात्रा आसान भी नहीं होती, इस यात्रा का एक धार्मिक महत्व भी है, यही नहीं इसके पीछे शिव-पार्वती की एक कहानी भी है.चलिए आज हम आपको यात्रा के पीछे की कहानी से रू-ब-रू कराते हैं. (Amarnath Yatra 2022)
अमरनाथ यात्रा का धार्मिक महत्व (Amarnath Yatra Religious Significance)
बाबा अमरनाथ की प्रमुख विशेषता यहां मौजूद पवित्र गुफा में प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है और इसके दर्शन करने का काफी महत्व है. गुफा के ऊपर से बर्फ के पानी की बूंदे टपकती है. जिससे बनने वाले लगभग 10 फुट के पवित्र शिवलिंग के दर्शन करने के लिए यहां लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं.आषाढ़ की पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे श्रावण माह में पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं. चन्द्रमा के घटने बढ़ने के साथ-साथ बर्फ से बने शिवलिंग के आकार में परिवर्तन होता है और अमावस्या तक शिवलिंग धीरे-धीरे छोटा होता जाता है.अमरनाथ की गुफा में भगवान शिव ने अमरत्व का रहस्य बताया था.
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मई से अक्टूबर के दौरान बर्फ लिंगम सिकुड़ जाता है और चाँद की कलाओं के साथ बड़ा होता है . इसका अलावा और भी दो 2 बर्फीले आकार है जो शिव और पार्वती को दर्शाती है .
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यात्रा के पीछे की रोचक कहानी (Kahani of Amarnath Yatra)
बताया जाता है कि भगवान शिव जब माता पार्वती को कथा सुनाने ले जा रहे थे तब उन्होंने अमरनाथ गुफा से लगभग 96 किलोमिटर दूर स्थित पहलगाव में भगवान शिव ने आराम किया था. उन्होंने अपने बैल नंदी को भी इसी जगह छोड़ा था. जिसके बाद उन्होंने छोटे-छोटे नागों को अनंतनाग में छोड़ दिया था.इसी तरह कपाल के चन्दन को चंदनबाड़ी में तथा पिस्सुओं को पिस्सू टापू पर तथा शेषनाग को शेषनाग पर छोड़ा था.अमरनाथ यात्रा के दौरान यह सभी स्थल रास्ते में आते है एवं इनके दर्शन करना किस्मत वालों को ही मिलता है. अमरनाथ के यात्रा का महत्व जितना समझा जाए उतना कम है.अमरनाथ यात्रा को लेकर कई पौराणिक कथाएं भी है.
मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव ने मां पार्वती को एक कहानी या मंत्र सुनाया था.यह कहानी/मंत्र अमरता प्रदान करने वाला था.भगवान शिव नहीं चाहते थे कि कोई इस कहानी को सुने इसलिए उन्होंने एक जगह चुनी और उस ओर चल पड़े.रास्ते में उन्होंने अपना बैल नंदी, अपने सर्प, अपना चांद, पुत्र गणेश समेत सब कुछ त्याग दिया.उन्होंने पंचतत्वों का भी त्याग कर दिया.वे नहीं चाहते थे कि कोई प्राणी इस राज को जाने अन्यथा प्रकृति का संतुलन बिगड़ सकता है.शिव,मां पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा पहुंचे और कथा सुनाई.हालांकि भगवान शिव ने ये सुनिश्चित किया था कि वहां कोई नहीं था लेकिन फिर भी वहां एक पक्षी (शुक) था जो उनकी बातों को गौर से सुन रहा था. (Shiv Parvati Kahani)
शिव ने पार्वती से कहा कि वे बीच बीच में हुंकार भरती रहें ताकि शिव कथा अनवरत सुनाते रहें.लेकिन पार्वती को बीच कथा में ही नींद आ गई लेकिन शुक पक्षी हुंकार भरता रहा.थोड़ी देर में शिव को अंदाजा हो गया कि कोई और हुंकार दे रहा है.शिव उस पक्षी को मारने के लिए उसके पीछे गए तो वह पक्षी जो अब बेहद ज्ञानी हो चुका था वह माया के बल पर व्यास जी की पत्नी के गर्भ में चला गया. 12 साल तक जन्म नहीं हुआ तो भगवान विष्णु ने उन्हें बाहर आने को कहा.इसके बाद वह पक्षी शुकदेव के रूप में पैदा हुए और सन्यासी बन गया. (Yatra kahani in hindi)
अक्सर अमरनाथ गुफा में एक कबूतरों का जोड़ा भी दिखाई देता है.माना जाता है कि ये कबूतर भी अमर हैं.कोई इन्हें शिव का गण बताता है तो किसी का मानना है कि इन्होंने भी अमरकथा सुनी है.हैरानी इस बात की है कि दूर-दूर तक बर्फ और ठंड का मौसम होता है.कोई पशु-पक्षी दिखाई नहीं देता लेकिन ये जोड़ा वहां अक्सर होता है.हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक इस गुफा में आने वाले लोगों को मृत्यु का भय नहीं रहता और मोक्ष की प्राप्ति होती है.
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